जयपुर। राजस्थान की राजनीति (Rajasthan Politics) ने रविवार को एक नया मोड़ ले लिया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के गुट के 70 से ज्यादा विधायक सचिन पायलट (Sachin Pilot) के खिलाफ खड़े हो गए। गहलोत खेमे के विधायक मुख्यमंत्री के नाम पर चर्चा करने के लिए राज्यमंत्री शांति धारीवाल के आवास पर जुटे। राज्य मंत्री प्रताप खाचरियावास ने बताया 92 विधायक एक साथ हैं। उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है। वह अपना नेता चुनना चाहते हैं। ये विधायक विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी (CP Joshi) को अपना इस्तीफा (Resignation) सौंपने की बात कह रहे हैं। उनकी एक ही मांग है। नया सीएम उन 101 विधायकों में से हो, जिन्होंने बगावत के दौरान सरकार बचाने में मदद की थी। उनमें से नहीं जो बागियों का हिस्सा थे। अगर 10-15 विधायकों की बात मानी जाएगी तो ज्यादातर विधायकों की बात क्यों नहीं मानी जा रही। इस तरह कहानी ट्विस्ट हो गई है। पायलट के सामने फिर गहलोत खड़े हो गए हैं। अब तक माना जा रहा था कि गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) बनने पर पायलट का सीएम बनने का रास्ता साफ है। सचिन ने ‘पायलट’ बनकर जब-जब उड़ना चाहा, अशोक गहलोत उनके सामने ब्रेकर बनते रहे हैं।
पायलट खेमे को क्या थी उम्मीद?
पायलट खेमा उम्मीद में बैठा था कि अगर अशोक गहलोत सीएम पद छोड़ते हैं तो यह कुर्सी उनके नेता को मिल जाएगी। कुर्सी की रस्साकशी में ही सचिन पायलट ने जुलाई 2020 में कांग्रेस (Congress) से बगावत की थी। तब कहा गया था कि उनकी बगावत के पीछे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का हाथ था। पायलट गुट का दावा था कि उनके पास कांग्रेस के 24 विधायकों का समर्थन था। तब बगावत को किसी तरह से खत्म किया जा सका था। सचिन पायलट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (state congress president) और डेप्युटी सीएम की कुर्सी छीन ली गई थी। उसके बाद से ही पायलट बिना किसी पद के राजस्थान में हैं।
यह बात पिछले राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Elections) की है। 2018 में यह हुआ था। तब कांग्रेस विपक्ष में थी। सचिन पायलट के हाथों में पार्टी की कमान थी। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। पायलट के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने 2018 का विधानसभा चुनाव जीता था। चुनाव के बाद अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। तभी से दोनों नेताओं की खींचतान चली आ रही है।
खींचतान बगावत में बदल गई
यह रस्साकशी बगावत तक पहुंच गई थी। बात जुलाई 2020 की है। सचिन पायलट अपने गुट के विधायकों के साथ हरियाणा के रिजॉर्ट में पहुंचे थे। 11 जुलाई को वह दिल्ली पहुंचे थे। लेकिन, कांग्रेस से दूरी बनाई थी। उनके साथ राजस्थान कांग्रेस के 24 बागी विधायक भी थे। बीजेपी के साथ मिलकर पायलट पर सरकार गिराने का आरोप लगा था। 13 जुलाई 2020 को कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी। इसके लिए कांग्रेस ने विधायकों को व्हिप जारी किया था। व्हिप पर दोनों के खेमों के दावे अलग-अलग थे। इस बैठक में पायलट खेमे के विधायक नहीं पहुंचे थे।
गहलोत ने दिखाई थी जादूगरी
सीएम अशोक गहलोत हर हाल में सत्ता अपने हाथ में रखना चाहते थे। उन्होंने शक्ति प्रदर्शन किया था। तब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में 107 विधायक पहुंचे थे। एक महीने तक सियासी घमासान जारी रहा। अंत में पायलट ने दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात की। तब कहीं जाकर विवाद खत्म हुआ था। सचिन पायलट को डेप्युटी सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोडना पड़ा था। इसे लेकर गहलोत सचिन पायलट को ताना देते रहे हैं।
2018 में जब पायलट के हाथों में राजस्थान कांग्रेस थी तब उनकी खूब चली थी। माना जाता है कि उनके कारण कई गहलोत समर्थकों को टिकट नहीं मिल पाया था। जब स्थितियों में बदलाव हुआ तो गहलोत ने भी वैसा ही किया। आज की तारीख में वह पायलट को किसी भी हाल में कुर्सी तक नहीं पहुंचने देना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होंने पायलट के इर्द-गिर्द पूरी बिसात बिछा दी।
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