जबलपुर न्यूज़ (Jabalpur News)

‘विधान’ संवारने, सियासी विधि से गुपचुप ‘सभा’

  • सूबे में विधान सभा चुनाव की हलचल

अग्निबाण चुनाव विशेष। विधानसभा चुनाव के संग्राम में अपने विधान को आजमाने की जुगत में सियासी विधियां लगना शुरू हो गर्इं हैं। दिल्ली से लेकर प्रदेश के राजधानी भोपाल तक टिकिट पक्की करने नेताजी गुपचुप सभा भी करने में जुटे हैं। जबलपुर की आठ विधानसभा में वर्ष 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस को 4-4 सीटों पर जनता ने भरोसा जताया था। दरअसल कुछ सीटों पर ये हैरान कर देने वाले नतीजे थे, लेकिन दोनों ही दलों ने इस पर चिंतन-मंथन शुरू करते हुए जनादेश को स्वीकार किया।

पूर्व विधान सभा में असंतोष, आशा, प्रत्याशा
पूर्व विधान सभा क्षेत्र की बात करें तो यहां से दूसरी बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया था, जबकि भाजपा के दिग्गज प्रत्याशी को परंपरागत सियासी द्वंद में परास्त किया। सियासी विश्लेषकों की मानें तो अब हालात कुछ बदले-बदले से हैं, कांग्रेस के किले में सेंध लग चुकी है, कुछ कलह और कुछ असंतोष के बादलों ने जीत के संभावित सूरज को ढंक दिया है। वहीं भाजपा खेमे में इस बार प्रत्याशी के बदलने की पूरी आंशका है, इसी के चलते कांग्रेस के तंबू में खलबली है, जो लाजिमी भी है।

उत्तर मध्य विधान सभा का बागी
अब बात करें उत्तर-मध्य विधानसभा की, यहां कांग्रेस ने लंबे अरसे बाद जीत का परचम लहराया जरूर था, लेकिन इस जीत का असल हकदार भाजपा से बागी प्रत्याशी था। जीत का गुब्बारा जो कांग्रेस ने फुलाया, उसकी सारी हवा भाजपा से बागी ने भरी थी। यदि भाजपा के बागी के वोट को भाजपा प्रत्याशी के साथ जोड़ दें, तो कांग्रेस चारों खाने चित्त नजर आएगी। लेकिन इस बार कुछ थोड़े कार्यों को कराकर वर्तमान विधायक फुल कॉन्फिडेंस में हैं, हालांकि यहां भी कुनबे में कलह और खींचतान से असल उम्मीदवार को जूझना ही पड़ेगा।


पश्चिम विधान सभा में कांटे का मुकाबला
पश्चिम विधान सभा क्षेत्र में कांग्रेस ने दूसरी बार लगातार जीत का परचम फहराया था, लेकिन ऐसा माना गया था कि यहां भी जीत की असल हकदार भाजपा ही रही। इस क्षेत्र में भाजपा से जिसे टिकिट दिया गया, उसे संगठन के जमीनी कार्यकतार्ओं ने नकार दिया, ऐसे में कांग्रेस को इसका सीधा फायदा मिल गया और जीत का सेहरा पंजे के प्रत्याशी से बंध गया। इस बार इस सीट पर कांटे का मुकाबला हो सकता है, क्योंकि एक ओर कांग्रेस से दो बार का विधायक होगा, वहीं दूसरी ओर निश्चित तौर पर भाजपा पूरी ताकत इस सीट को हथियाने में लगा देगी।

कैंट विधान सभा पर बीजेपी का सख्त पहरा
शहर के छावनी (कैंट) क्षेत्र में रची-बसी केंट विधान सभा भाजपा का गञ कही जा सकती है, यहां से विधान सभा अध्यक्ष के रूप में जन नेता रहे, भाजपा के वरिष्ठ नेता ने जो जडें जमाई हैं, उन्हें और मजबूत करते हुए मौजूदा विधायक दो बार से जीत का सेहरा पहन रहे हैं। इस क्षेत्र में कांग्रेस की कलह का सीधा लाभ भाजपा को मिलता आ रहा है। इस बार की विधानसभा चुनाव की जंग में यहां से कांग्रेस से युवा और नए चेहरे को उतारने की तैयारी समझ आ रही है, ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों को सीट बनाए रखने के लिए जुगत तो लगानी पड जाएगी, यह तय है।

बरगी विधान सभा में बीजेपी के लिए साख की लड़ाई
बरगी विधानसभा की बात करें तो इस क्षेत्र में भाजपा के विजयी रथ को थामकर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जिसके बाद विधायक ने विधान सभा क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में विकास कार्य कराकर उसे अपना विजयी किला बनाने भरसक प्रयास किए हैं। वाबजूद इसके इस क्षेत्र में कांग्रेस विधायक के खिलाफ असंतोष बरकरार है, हालांकि ये प्राय: सभी क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों के साथ एक सी बात है। इस विधान सभा पर दोबारा जीत का परचम लहराने संभव है कि भाजपा नए प्रत्याशी को मैदान में उतार सकती है।

पाटन विधान सभा कितना आसान
पाटन विधान सभा से भाजपा के दिग्गज नेता, मंत्री रह चुके ऐसे नेता विधायक हैं, जिन्हें सरकार में शीर्ष नेतृत्व में देखने की आस जबलपुर की जनता की रहती है। इस क्षेत्र से कांग्रेस को परास्त कर विधायक बने भाजपा के नेता ने क्षेत्र में हर संभव विकास कार्य कराए हैं, लेकिन उनकी सियासी बयानबाजियों ने सरकार के एक धडे को नाराज भी किया है, हांलाकि तर्क संगत और क्षेत्र के हित में बयान देने वाले नेता को क्षेत्र की जनता का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त है, ऐसे में शहर की किसी विधान सभा से भी इन्हें टिकिट मिलता है तो वे अपने सियासी कौशल से विजयश्री हासिल कर सकते हैं, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए।

पनागर विधान सभा में बीजेपी का परचम
पनागर विधानसभा से भाजपा के विधायक लगातार दो बार जीत का परचम लहरा रहे हैं। एक अलग (विशिष्ट) व्यक्तित्व के धनी और स्पष्टवादी नेता के रूप में उन्हें क्षेत्र की जनता का अपार आशीर्वाद मिला है, यही वजह है कि वे दो बार से विधायक रहते हुए क्षेत्र में असंतोष का कोई रास्ता भी नहीं छो? रहे हैं। विकास कार्य कराने विधायक की प्रशासन और शासन पर गहरी पैठ और अ?कर काम कराने की शैली उन्हें दूसरे विधायकों से अलग पहचान देती है, हालांकि इस क्षेत्र में कांग्रेसी कलह का भी भरपूर फायदा भाजपा को मिलता है।

‘सिहोराÓ सहकारिता के गढ़ में बीजेपी की साख
जबलपुर जिले की सिहोरा विधानसभा सीट शुरू से ही मध्य प्रदेश की प्रमुख सीटों में से एक रही है। वर्ष 1956 में गठन के बाद मध्य प्रदेश की इस विधान सभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है और कहा जाता है कि सहकारिता का उद्गम स्थल भी सिहोरा ही रहा है। पूर्व में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व श्रीमती मंजू राय ने किया और वे मंत्रिमंडल की कद्दावर सदस्य भी रहीं, लेकिन उसके बाद से इस क्षेत्र का कोई भी प्रतिनिधि मंत्रि मंडल में शामिल नहीं हो पाया। 2003 में उमा भारती सरकार बनने के साथ ही भाजपा ने यहां अपनी ज?ें मजबूत कर लीं। जहां 2003 में दिलीप दुबे क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए वहीं 2008, 2013 और 2018 में भी भाजपा की ही नंदनी मरावी निर्वाचित होकर विधान सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। यदि आने वाले चुनाव की बात की जाए तो यहां पर फिलहाल भाजपा ही मजबूत बनी हुई है। इसके पीछे एक कारण भी स्पष्ट दिखता है कि पिछले कई चुनाव में कांग्रेस ने प्रयोग करते हुए हर बार नया प्रत्याशी मैदान में उतारा लेकिन जीत का सेहरा उसके सिर पर नहीं बन सका। इस बार भी कांग्रेस का कोई मजबूत दावेदार फिलहाल सामने नजर नहीं आ रहा है और यही कारण है कि आने वाले चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर मुश्किलों का सामना करना पड सकता है।

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