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हंसराज हंस ने बहाई सूफियाना संगीत की सरिता, निहाल हुई तानसेन की देहरी

ग्वालियर। सूफी व पंजाबी लोक संगीत (Sufi and Punjabi folk music) के विश्व विख्यात गायक एवं सांसद पद्मश्री हंसराज हंस (Padma Shri Hansraj Hans) ने जब अपनी जादुई आवाज में सूफियाना कलाम (Sufiana Kalam), भजन व गीत सुनाए तो श्रोता झूमने को मजबूर हो गए। उनकी गायिकी के सूफियाना अंदाज ने सुधीय रसिकों से खूब तालियाँ बजबाईं और सुर सम्राट तानसेन की देहरी (Dehri of Sur Samrat Tansen) को मीठे मीठे रूहानी संगीत से निहाल कर दिया।

मौका था तानसेन समारोह की पूर्व संध्या पर पूर्व रंग “गमक” के तहत रविवार शाम को इंटक मैदान हजीरा पर सजी संगीत सभा का। सूफियाना अंदाज, हंसराज हंस के गायन में ही नहीं बल्कि मिजाज में भी झलक रहा था। उन्होंने सूफिज्म से बावस्ता अजमेर शरीफ के सूफी संत मोइद्दीन चिश्ती का कलाम “राखो मोर लाज हरी गरीब नवाज..” से अपने गायन का आगाज़ किया। इसके बाद उन्होंने जब राग “मालकोश” में प्रेम गीत “प्यार नहीं है सुर से जिसको वो मूरख इंसान नहीं..” सुनाया तो संपूर्ण प्रांगण प्रेममय हो गया।


इसी कड़ी में हंसराज हंस ने राग ” बैरागी’ पर आधारित नज़ीर अकबराबादी की ग़ज़ल सुनाकर माहौल को रूमानी बना दिया। ग़ज़ल के बोल थे “दिल में सनम का ..”। उन्होंने इस मौके पर मरहूम निदा फ़ाज़ली साहब और ग़ज़ल सम्राट स्व जगजीत सिंह को याद किया। उन्होंने निदा साहिब द्वारा रचित और जगजीत सिंह द्वारा गाए गए प्रसिद्ध कलाम “गरज बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला..” सुनाकर दोनों को स्वरांजलि अर्पित की।

हंसराज हंस के गायन में उनके साथ तबले पर जनाब सोनू व सोहेल, हारमोनियम व बेंजो पर जनाब चुन्ने खां, की-बोर्ड पर नरेश निर्मोही व गिटार पर राहुल ने कमाल की संगत की। कौरस गायन में सेमुअल मशीह, रघुवीर सिंह व जनाब कश्मीर मोहम्मद ने साथ दिया।

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया भी इस आयोजन के साक्षी बने। आरंभ में संभाग आयुक्त दीपक सिंह, कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह व संस्कृति संचालक अदिति सिंह सहित अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर गमक की सभा का शुभारंभ किया। संस्कृति संचालक ने पद्मश्री हंसराज हंस सहित सभी संगत कलाकारों का स्वागत किया।

इन प्रस्तुतियों ने भी बांधा समां
पद्मश्री हंसराज हंस ने इसके बाद अपनी मूल गायकी के खूब रंग बिखेरे। उन्होंने जब तेज रिदम के साथ कब्बाली ” सुनो महाराज जगत के बाली..” का गायन किया तो सर्द मौसम में गर्माहट दौड़ गई। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अमीर खुशरो का प्रसिद्ध कलाम ” छाप तिलक सब छीनी रे मो से नैना मिलाय के…” सुनाकर समा बांध दिया। सूफियाना कलामों का जादू बिखेरने के बाद उन्होंने अपनी गायिकी को बॉलीबुड फिल्मों की ओर मोड़ा और श्रोताओं की फरमाइश पर फ़िल्म कच्चे धागे का गीत “खाली दिल न यो जान भी दा माँग दा ‘इश्क दी गली विच कोई कोई लंघदा'” सुनाकर रसिकों में जोश भर दिया।

रसिकों पर संगीत का खुमार चढ़ा तो हंसराज पंजाबी लोक संगीत की ओर लौटे और “मैं तेरी खेर मांगा…” लोकगीत सुनाकर प्रांगण में पंजाबी लोक गायिकी की खुशबू बिखेर दी। उन्होंने सूफियाना गायिकी के सरताज नुसरत फतह अली की तर्ज पर सरगम पेश कर महफ़िल में चार चाँद लगा दिए। जैसे जैसे रात परवान चढ़ रही थी वैसे वैसे हंसराज हंस की गायिकी का सुरूर भी रसिकों के सिर चढ़कर बोल रहा था। उन्होंने अपना प्रसिद्धि गीत ”ऐ जो सिली – सिली आंदी है हवा…” गाया तो श्रोता झूम उठे। हंसराज हंस ने रसिकों के दिल की सुनकर “दिल चोरी साडा हो गया में की करिए….” गाना प्रस्तुत किया। इस गीत के साथ बड़ी संख्या में मौजूद संगीत प्रेमियों ने खूब संगत की। इसी क्रम में उन्होंने सुप्रसिद्ध गीत “टोटे टोटे हो गया” सुनाया। सूफियाना संगीत की यह रंगीन शाम लम्बे समय तक भुला नहीं पायेंगे। (एजेंसी, हि.स.)

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