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बेटियों के पक्ष में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए क्या है

नई दिल्ली। बिलासपुर हाई कोर्ट ने पिता पर आश्रित विवाहित बेटियों को कोल इंडिया में अनुकंपा पर नौकरी पाने का रास्ता खोल दिया। कोर्ट ने महिला की याचिका पर कोल इंडिया को आदेश दिया कि वो मृतक पिता की जगह पर विवाहित बेटी को उचित नौकरी दे। छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायलय ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि किसी महिला के साथ विवाहित और अविवाहित के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पुत्री अविवाहित हो या अविवाहित, वह पिता पर आश्रित होती है।

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला
इससे पहले भी कई राज्यों की उच्च अदालतें विवाहित बेटियों के लिए अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने का समर्थन कर चुकी हैं। वहीं, कई राज्यों ने तो इस संबंध में नियम बना दिए हैं। मसलन, मद्रास हाईकोर्ट ने 2015 के अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि अगर नौकरी रहते पिता की मौत हो जाए तो विवाहित बेटी भी अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने की अधिकारी होती है। हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि महिला को पिता की जगह नौकरी पाने के लिए अपने बहन-भाइयों से अनापत्ति प्रामण पत्र (No-Objection Certificate) देना होगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी 2015 में कर दिया था कि मृतक आश्रित कोटे के तहत बेटी के शादीशुदा होने के आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मृतक आश्रित सेवा नियमावली 1974 के नियम 2(सी) (3) को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने नियमावली में बेटी के लिए प्रयोग किए गए अविवाहित शब्द को संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के विपरीत माना। अदालत ने कहा कि विवाहित बेटी को नियुक्ति न देना लिंगभेद करना है क्योंकि पुत्र के विवाहित होने पर नियुक्ति में प्रतिबंध नहीं है।

कोलकाता हाई कोर्ट की शर्त
वहीं, कोलकाता हाई कोर्ट ने सितंबर 2017 में कहा था कि विवाहित बेटी को अनुकंपा पर नौकरी पाने के अधिकार से पूरी तरह वंचित कर देना संवैधानिक रूप से बिल्कुल अवैध है। हाई कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने कहा था कि अगर किसी विवाहित बेटी की मां और उसके पिता को सरकारी नौकरी है और सेवा में रहते ही उनकी मौत हो जाती है तो बेटी को उनकी जगह अनुकंपा पर नौकरी पाने का अधिकार है, बशर्ते वो साबित कर दे कि वो माता-पिता की कमाई पर ही आश्रित थी। उसे यह भी आश्वासन देना होगा कि वो नौकरी पाने पर अन्य आश्रितों का ख्याल रखेगी।

‘बेटे-बेटियों में भेदभाव नहीं चलेगा’
भोपाल हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने अक्टूबर, 2018 में कहा था कि स्त्री और पुरुष में भेद नहीं किया जा सकता। यदि विवाहित बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है तो विवाहित बेटी को भी इसका अधिकार देना ही होगा। मध्य प्रदेश सरकार की नीति पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह लिंग के आधार पर भेदभाव है। कोर्ट ने नौ पन्ने के फैसले में कहा कि बेटा विवाहित हो या अविवाहित, उसे अनुकंपा नियुक्ति पाने का अधिकार होता है लेकिन बेटी से सिर्फ इसलिए यह अधिकार छीन लिया जाए कि वह विवाहित है, यह सही नहीं है।

‘पिता की नौकरी पर बराबर अधिकार’
वहीं, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने भी पिछले साल अप्रैल में आदेश दिया था कि विवाहित बेटियों को भी अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी देने पर विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि विवाहित बेटियों को भी विवाहित बेटों की तरह ही अपने माता-पिता का परिवार माना जाए। तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि अगर विवाहित बेटा या विवाहित बेटी अपने सरकारी नौकरी प्राप्त पिता पर आश्रित है तो सेवारत पिता की मौत के बाद दोनों अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने के बराबर के अधिकारी हैं।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
इसी वर्ष अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला दिया था। कोर्ट ने कहा है कि पिता के पैतृक की संपत्ति में बेटी का बेटे के बराबर हक है, थोड़ा सा भी कम नहीं। उसने कहा कि बेटी जन्म के साथ ही पिता की संपत्ति में बराबर का हकददार हो जाती है। देश की सर्वोच्च अदालत की तीन जजों की पीठ ने आज स्पष्ट कर दिया कि भले ही पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू होने से पहले हो गई हो, फिर भी बेटियों को माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा। देश की सर्वोच्च अदालत ने अपनी अहम टिप्पणी में कहा था, ‘बेटियां हमेशा बेटियां रहती हैं। बेटे तो बस विवाह तक ही बेटे रहते हैं।’

सरकारों ने भी उठाए कदम
ऐसा नहीं है कि सिर्फ अदालतों ने ही विवाहित बेटियों के अधिकारों के हक में बोला। कई राज्य सरकारों ने भी अपने यहां कानून बनाकर सरकारी कर्मचारियों की विवाहित बेटियों को अनुकंपा पर नौकरी देने का प्रावधान कर दिया है। पिछले साल ही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने महिला अधिकारों के संरक्षण की दिशा में बड़ा फैसला लिया था। योगी सरकार ने सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली- 1947 के रूल C(3) में संशोधन की अनुमति दे दी।

उससे पहले बिहार सरकार ने दिसंबर 2014 में फैसला लिया था कि पुत्र न रहने पर विवाहित पुत्री भी सरकारी सेवक की मौत पर अनुकंपा पर नौकरी पाने की हकदार होगी। इस मसले पर काफी मंथन और विधि विभाग से परामर्श के बाद सरकार ने आदेश जारी कर दिया। अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से संबंधित ऐसे मामले भी सरकार के पास आए, जहां मृत सरकारी सेवक के परिवार में विधवा पत्नी या विधुर पति के अतिरिक्त कोई नहीं होते। संतान के रूप में मात्र पुत्री होने के कारण विवाहित बेटी की शादी होने पर, ऐसी परिस्थिति में मृत सरकारी सेवक के आश्रित की देखभाल करने की जिम्मेदारी शादीशुदा पुत्री पर आ जाती है। मगर शादीशुदा पुत्री के नियोजन में नहीं रहने के कारण मृत सरकारी सेवक के आश्रित के सामने विषम आर्थिक स्थिति पैदा हो जाती है।

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