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बदलाव की बयार में इंडिया से प्यारा है ‘हिन्दुस्थान’

– राजीव खंडेलवाल

देश में ही नहीं वरन विश्व में भारत के अभी तक के सर्वाधिक लोकप्रिय और किसी क्रिया-प्रतिक्रिया की चिंता किए बिना अनोखी शैली व कार्यपद्धति से कुछ असंभव (जैसे राम मंदिर का निर्माण, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 की समाप्ति) से लगते ठोस कार्य करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर न केवल स्वयं को ‘‘कर्तव्य बोध’’ का एहसास दिलाया, बल्कि सबको भी अपना कर्तव्य निभाने के लिए एक संदेश भी दिया। यह बात उनके भाषण से स्पष्ट रूप से झलकती भी है। अब तय आपको करना है कि ” मैं ” अपने कर्तव्य का पालन करने में सफल हूं अथवा विफल?

प्रधानमंत्री ने ‘कर्तव्य पथ’ के नामकरण व ‘सेंट्रल विस्टा एवेन्यू’ के उद्घाटन कार्यक्रम में एक नहीं तीन महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। प्रथम, ब्रिटिश इंडिया के जमाने की गुलामी की प्रतीक राजपथ वर्ष 1955 के पूर्व किंग्स-वे नाम से जानी जाती थी। इसका निर्माण वर्ष 1911 में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली करने के निर्णय के साथ प्रारंभ हुआ था, जो वर्ष 1920 में बनकर पूर्ण हुआ। किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में इसका नाम किंग्स-वे रखा गया था। आरंभिक रूप से यह सिर्फ राजाओं का ही रास्ता था। राजपथ रायसीना हिल स्थित ‘‘राष्ट्रपति भवन’’ को ‘‘इंडिया गेट’’ से जोड़ता है। यहां प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर भव्य प्रेरणात्मक राष्ट्रीय परेड का कार्यक्रम संपन्न होता है। इसमें भारतीय संस्कृति व ताकत का बखान व प्रदर्शन होता है। ‘‘राजपथ’’ को (गुलामी का प्रतीकात्मक नाम मानकर?) बदल कर राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत भारतीय नाम कर्तव्य पथ कर दिया है, जिस पर किसी भी नागरिक को कोई आपत्ति नहीं हो सकती है।

दूसरा उतना ही महत्वपूर्ण कार्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आजाद हिंद फौज के संस्थापक व स्वतंत्रता के पूर्व अखंड भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, नेताजी के नाम से मशहूर (आज के नेता जी नहीं) सुभाष चंद्र बोस की विशालकाय 28 फीट ऊंची मूर्ति की स्थापना उसी जगह पर की गई, जहां पर पूर्व में इंग्लैंड के ‘‘जॉर्ज पंचम’’ की मूर्ति थी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के 21 वर्ष बाद हटा कर दूसरी जगह ‘कोरोनेशन पार्क’ में विस्थापित कर दी गई थी। यहां यह याद रखने की बात है कि वहां पहले महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाने का बात कही जा रही थी, लेकिन अंतिम निर्णय न हो पाने के कारण लग नहीं पाई। इन दोनों कृत्यों को देश में न केवल गुलामी के चिह्न मिटाने के रूप में देखा गया बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व को जो सम्मान इस देश में मिलना चाहिए था, जिसके वे हकदार हैं, उसकी पूर्ति कुछ हद तक अवश्य इस प्रतिमा लगने से हुई है। ये दोनों भाव लिए कृत्य के लिए निश्चित रूप से प्रधानमंत्री जी साधुवाद व बधाई के पात्र हैं। इसके लिए देश उनका हमेशा ऋणी रहेगा।

तीसरा किंतु विवाद का महत्वपूर्ण कारण बना उद्घाटन के इस अवसर पर दिया गया कर्तव्य बोध का संदेश। प्रधानमंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में नाम परिवर्तन के जो कारण बताए और जो अर्थ मीडिया व राजनेता निकाल रहे हैं, वही विवाद का एक बड़ा कारण बनते जा रहा है। वास्तव में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जो प्रमुख बातें कहीं उसका लब्बो लुआब यही है कि कर्तव्य बोध के रूप में नए इतिहास का सृजन होगा। आज नई प्रेरणा व ऊर्जा मिली है। प्रधानमंत्री आगे कहते हैं राजपथ की आर्किटेक्चर और आत्मा भी बदली है। ‘‘गुलामी का प्रतीक राजपथ’’ अब इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है। गुलामी की एक और पहचान से मुक्ति के लिए मैं देशवासियों को बधाई देता हूं। अब समय आ गया है कि अंग्रेजों के जमाने की वर्ष 1860 की भारतीय दंड संहिता को बदला जाए। इंडिया और भारत की जगह हिन्दुस्थान नामकरण किया जाए। यह हमारी अस्मिता व संस्कृति की प्रतीक नहीं मूल पहचान है।

(लेखक, वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष हैं।)

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