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IARC का खुलासा: खुले में पड़े कचरे के ढेर बढ़ा रहे कैंसर का खतरा

नई दिल्‍ली (New Delhi)। दुनिया में प्रदूषण (pollution) एक ऐसी समस्‍या बन गया है जिससे निपटने के लिए आज भी कोई स्‍थाई समाधान नहीं मिल सका है। देश में अधिकांश लैंडफिल/डंपसाइट (landfill/dumpsite) या तो खुले डंपिंगयार्ड या अर्धनियंत्रित लैंडफिल हैं। अधिकांश अवैज्ञानिक रूप से डिजाइन और संचालित हैं। इसलिए स्थायी रूप से काम नहीं कर रहे हैं। ये ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम में उल्लिखित सैनिटरी लैंडफिलिंग के मानदंडों का पालन नहीं करते हैं। ये डंपसाइट मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) जैसी लैंडफिल गैसों के स्रोत हैं। इनसे उत्पन्न गैसें शहरों और आस-पास के इलाकों को गैस चैंबर के रूप में तब्दील कर रही हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं।

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि डंपसाइट से कार्बनिक यौगिकों में बेंजीन, फॉर्मलाडिहाइड और बेंजो(ए)पाइरीन जैसे रासायनिक तत्व उत्सर्जित होते हैं। ये आस-पास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक हैं। इनसे कैंसर तक का खतरा उत्पन्न होता है। जिन बड़े कचरे के ढेरों के नीचे लगातार आग सुलगती रहती है, वे आस-पास के पूरे क्षेत्र को खतरनाक रूप से प्रभावित करते हैं।



विशेषज्ञों के मुताबिक, हाल के वर्षों में डंपसाइट्स के हानिकारक प्रभावों के बावजूद देश में स्थित कई शहरों में डंपिंग साइट्स के करीब रहने वाले लोगों पर पड़ने वाले स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों पर अधिक शोध नहीं किया गया है। धीरे-धीरे सुलगने के कारण निकलने वाले डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे प्रदूषक मानव स्वास्थ्य के लिए धीमे जहर जैसे हैं। इसकी वजह से प्रजनन में कमी, फेफड़े संबंधी बीमारियां और डाइबिटीज का जोखिम बढ़ सकता है।

केंद्र सरकार की वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अंत: विषय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान ने एक अध्ययन में पाया कि सुलगते हुए बड़े कचरे के ढेरों से उत्सर्जित होने वाली डाइऑक्सिन विषाक्तता के समकक्ष है। इससे बच्चों को भी बहुत अधिक नुकसान हो सकता है। बच्चों के शरीर को सीसा, कैडमियम और धुएं पाए जाने वाली अन्य भारी धातुएं नुकसान पहुंचाती हैं, क्योंकि उनका तंत्रिका तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है।

इसके अलावा सुलगते कचरे के ढेरों से खासकर ठोस प्लास्टिक उत्पाद और टायरों के जलने से अन्य रसायनों के साथ बेंजीनयुक्त स्टाइरीन और ब्यूटाडाइन जैसे रसायन उत्सर्जित होते हैं, जो बेहद हानिकारक हैं। इन्हें कैंसर पैदा करने वाली श्रेणी में रखा गया है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक प्लास्टिकजनित प्रदूषण 2040 तक 80 फीसदी कम हो सकता है यदि देश और कंपनियां मौजूदा तकनीकों का उपयोग कर के सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों के अनुसार ठोस नीति बनाएं और बाजार में बदलाव करें। सर्कुलर इकोनॉमी एक ऐसी प्रणाली है, जिसका उद्देश्य कचरे को कम करना और पुन:उपयोग को बढ़ावा देना है। यह प्रणाली साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन:निर्माण और पुनर्चक्रण पर फोकस करती है। यह प्रदूषण, अपशिष्ट और कार्बन उत्सर्जन को भी कम करती है।

रिपोर्ट में सरकारों और व्यवसायों से समान रूप से प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया गया है। रिपोर्ट में गैर-पुनर्नवीनीकरण योग्य प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिए डिजाइन और सुरक्षा मानकों को स्थापित करने व लागू करने का सुझाव दिया गया है। निर्माताओं को माइक्रोप्लास्टिक्स को बहा देने वाले उत्पादों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान अपशिष्ट डंपिंग प्रथाओं के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिए घरों, बाजारों और रेस्तरां से निकलने वाले बायोडिग्रेडेबल कचरे को संपीड़ित (कंप्रेस्ड) बायोगैस संयंत्रों में परिवर्तित किया जा सकता है। ये काफी हद तक प्रदूषण को कम करेंगे और वर्तमान अपशिष्ट डंपिंग प्रथाओं के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को कम करेंगे।

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