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अगले पांच साल में AI खत्म कर देगा मानवता, इंसानों जैसे करेंगे राज; एक्सपर्ट ने कही ये बड़ी बात

  • April 10, 2025

    नई दिल्ली। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल आज हर क्षेत्र में होने लगा है और बहुत ही कम समय में इस टेक्नोलॉजी ने लोगों के दिल में अपनी जगह बनाई है, लेकिन धीरे-धीरे यह उस दिल को ही खत्म कर देगा जिसने इसे पनाह दी है। ऐसे हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि गूगल डीपमाइंड ने ऐसा दावा किया है।

    गूगल डीपमाइंड की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्टिफिशियल जेनरल इंटेलिजेंस, जिसे आम भाषा में मानव-समान बुद्धिमत्ता भी कहा जाता है, वर्ष 2030 तक अस्तित्व में आ सकती है और यह मानव जाति के स्थायी विनाश का कारण भी बन सकती है। शोध में कहा गया है, “AGI की विशाल संभावनाओं को देखते हुए, यह भी गंभीर नुकसान पहुंचाने वाली शक्ति बन सकती है।”

    AGI से जुड़े खतरों को लेकर शोधकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि यदि यह तकनीक सही दिशा में नहीं गई, तो इसके परिणाम “मानवता के पूर्ण विनाश” जैसे भी हो सकते हैं, हालांकि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि ऐसा विनाश कैसे होगा, लेकिन इसमें उन उपायों पर जोर दिया गया है जो AGI के खतरों को कम कर सकते हैं।


    चार तरह के प्रमुख खतरे

    • दुरुपयोग- जब कोई व्यक्ति या संस्था AI का प्रयोग दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए करे।
    • मूल्य असंतुलन- जब AI के उद्देश्यों और मानव मूल्यों के बीच सामंजस्य न हो।
    • गलतियां- जब AI अनजाने में गलत निर्णय ले जो व्यापक हानि पहुंचा सकते हैं।
    • संरचनात्मक जोखिम- AI के विकास के सामाजिक और वैश्विक ढांचे पर पड़ने वाले दुष्परिणाम। इन सभी जोखिमों से निपटने के लिए DeepMind ने एक व्यापक जोखिम शमन रणनीति अपनाने की बात कही है, जिसमें AI के दुरुपयोग को रोकना सबसे प्रमुख है।

    फरवरी 2025 में, DeepMind के सीईओ Demis Hassabis ने कहा था कि “मानव या उससे अधिक बुद्धिमान AGI अगले 5 से 10 वर्षों में उभरना शुरू हो जाएगा।” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि AGI के विकास की निगरानी के लिए एक संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्था बननी चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे विज्ञान अनुसंधान के लिए CERN और परमाणु गतिविधियों पर निगरानी के लिए IAEA का गठन किया गया था।

    हसाबिस का मानना है कि: “हमें AGI के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सहयोगात्मक संस्था की आवश्यकता है जो उच्च स्तरीय शोध पर केंद्रित हो और साथ ही ऐसी संस्था भी हो जो खतरनाक परियोजनाओं पर निगरानी रखे। इसके साथ ही एक वैश्विक नीति निकाय होना चाहिए जो यह तय करे कि इन प्रणालियों का उपयोग किस दिशा में किया जाए।”

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