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अंतरराष्ट्रीय अदालत में रूस के खिलाफ भारतीय जज भंडारी ने भी किया वोट, जानें क्‍या हो सकता है असर

नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के 21 वें दिन अंतरराष्ट्रीय अदालत (International Court of Justice) ने रूस को तत्काल यूक्रेन पर हमला बंद करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि वह रूस के बलप्रयोग को लेकर काफी चिंतित है. अपने फैसले में ICJ के चीफ जस्टिस जोआन डोनोग्यू (Joan Donoghue) ने कहा कि रूसी संघ 24 फरवरी से यूक्रेन पर जारी मिलिट्री ऑपरेशन को तत्काल बंद कर दे. कोर्ट ने यह फैसला 13-2 की बहुमत से सुनाया है. बहुमत में ICJ में भारतीय जज दलवीर भंडारी ने भी अपना मत दिया. यानी दलवीर भंडारी ने रूस के खिलाफ अपना वोट दिया.



जस्टिस दलवीर भंडारी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत सरकार के सहयोग से जज बने थे. उन्हें जज बनाने में भारत की कई एजेंसियों का हाथ था. आईसीजे में सिर्फ दो जजों ने रूस के खिलाफ वोट नहीं दिए, वे थे चीन और रूस के जज.
भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस-यूक्रेन मामले में अब तक तटस्थ रहा है. रूस के साथ संवेदनशील संबंधों के कारण भारत रूस पर अपना रुख स्पष्ट नहीं कर रहा है लेकिन अंतरराष्टीय न्यायालय में भारतीय जज का पक्ष सरकार के पक्ष से बिल्कुल अलग है. इसलिए विश्लेषक इस बात का आकलन कर रहे हैं कि दलवीर भंडारी के इस कदम को किस रूप में देखा जाए. संयुक्त राष्ट्र में भारत ने किसी पक्ष को अपना वोट नहीं दिया था और स्पष्ट किया था कि रूस-यूक्रेन बातचीत के माध्यम से मामले का शांतिपूर्ण समाधान करें. हालांकि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले को जो देश मानने से इनकार कर देता है, उसका मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भेजा जाता है, लेकिन वहां रूस को वीटो का अधिकार प्राप्त है. यानी वह किसी भी फैसले को पलट सकता है.
यूक्रेन ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में आरोप लगाया है कि रूस ने यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुगांस्क में नरसंहार के झूठा आरोप का सहारा लेकर युद्ध को जायज ठहरा रहा है. इसलिए यूक्रेन ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से रूस को तत्काल मिलिट्री ऑपरेशन को रोकने का आदेश देने का आग्रह किया था. पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में यूक्रेन के प्रतिनिधि एंटोन कोरिनेविच (Anton Korynevych) ने अपनी दलील देते हुए कहा था कि कोर्ट को तत्काल रूस की कार्रवाई को रोकने में अपनी भूमिका निभाना चाहिए. रूस इस पूरी सुनवाई से अलग रहा. रूस ने 7 और 8 मार्च की सुनवाई से यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया था अंतरराष्ट्रीय कोर्ट को इस मामले में सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है क्योंकि यूक्रेन 1948 के नरसंहार सम्मेलन के दायरे से बाहर हो गया है.

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