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भारतीय एमएसएमई इकाइयों की चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा

-मगन भाई एच पटेल

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार को सकारात्मक चर्चा और आवश्यक निर्णय जरूरी है। पिछले 7 साल से मोदी सरकार विभिन्न अभियानों कार्यक्रमों और सुधारवादी उपायों के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, इनोवेशन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, वोकल फॉर लोकल जैसे कार्यक्रम संचालित कर रही है। किंतु इनकी सफलता के लिए और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण विषयों पर सरकार के चिंतन और कारगर निर्णय लेने की जरूरत है।

भारत में लगभग 7 करोड एमएसएमई इकाइयों को चीन से निर्मित सामानों की बिक्री से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। चीन अपने माल को भारत में बेचने के लिए कई अवैधानिक कृत्य कर रहा है। जिस पर भारत सरकार की अनदेखी होने से भारतीय एमएसएमई को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। चीन से आने वाले माल की अंडर इनवॉइस की जाती है। 100 रुपये का माल का बिल 25 रुपया बनाकर चीन से आयात हो रहा है। उसमें शुल्क की चोरी हो रही है। अंगड़िया के माध्यम से चोरी छुपे चीन की कंपनियां भुगतान प्राप्त करती हैं। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच रहा है। वहीं भारतीय उद्योग पतियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। चीन से इस तरह के माल के आयात के लिए अनुमति नहीं होने पर भारतीय व्यापारी सिंगापुर और अन्य बंदरगाहों के माध्यम से चीन का सामान मंगा कर भारतीय एमएसएमई और भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

चीन से जो माल आयात हो रहा है। उसमें चीनी मुद्रा में भी भुगतान किया जा रहा है। भारतीय व्यापारी और चीन के व्यापारी मिलकर अवैध व्यापार और अवैध भुगतान बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। पिछले दरवाजे से यह सारी गड़बड़ियां बड़े पैमाने पर हो रही हैं। भारतीय वाणिज्य विभाग को इस अवैध लेनदेन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।

कोरोना महामारी मैं लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां अब कहीं-कहीं सामान्य हो रही हैं । पिछले माह में कच्चे माल की कीमतों में विशेष रुप से आयरन स्टील नॉन फेरस मैटर प्लास्टिक खनिज और पेट्रोलियम की कीमतों में 25 से 40 फ़ीसदी तक की वृद्धि हुई है। जिसका असर एमएसएमई सेक्टर पर पड़ रहा है। इससे प्रतिस्पर्धा में भारतीय उद्योग जगत को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसका असर देश के 125 करोड़ नागरिकों पर पड़ रहा है। सरकार इसके दूरगामी परिणामों पर अभी तक विचार नहीं कर पा रही है । अन्यथा सरकार कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करती वर्तमान स्थिति में महंगाई के कारण सामाजिक विषमता और विडंबना देखने को मिल रही है। मध्यम वर्गीय परिवार और सामान्य वर्ग के नौकरी पेशा वाले परिवार अपने परिवार का पालन पोषण उचित तरीके से नहीं कर पा रहे हैं। आर्थिक संकट से उन्हें गुजारना पड़ रहा है।

रियल स्टेट के आवासीय फ्लैट की कीमतों में 15 से 20 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। एक लाख तक का वेतन पाने वाला मध्यम वर्गीय परिवार अथवा एक लाख महीने कमाने वाला परिवार फ्लैट खरीदने के लिए बैंक के ऋण की किस्त और ब्याज चुकाने में भी सक्षम नहीं हो पा रहा है। बच्चों का शिक्षा खर्च बैंक की किस्तें डीजल पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के कारण देश के 90 फ़ीसदी परिवार महंगाई की मार के शिकार हैं। लोग इमानदारी से दूर होते जा रहे हैं। किसी भी तरीके से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार अथवा अवैध काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

भारत में सस्ती श्रमिक मजदूरी असंगठित क्षेत्र में होने के कारण देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। स्वतंत्रता के बाद से लेकर अभी तक श्रमिकों की जीवन शैली को ऊपर उठाने के लिए श्रम शक्ति को लेबर इन पुट से नहीं जोड़ा गया है। जिसके कारण भारतीय श्रमिकों और मजदूरों की हालत विकसित देशों की तुलना में बहुत दयनीय है। अमेरिका जैसे देश में 15 मिनट काम करने वाले मजदूर को जो मजदूरी प्राप्त होती है। वह भारत में 2 दिन में 16 घंटे लगातार काम करने के बाद भी नहीं मिलती है। भारत की मानव शक्ति इनपुट बहुत कम है। भारतीय श्रमिकों की अर्थव्यवस्था और उनके रहन-सहन को किस तरीके से वर्तमान स्तर से उठा पाएंगे, यह सबसे बड़ी चिंता है। भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ था। तब एक डालर की विनिमय दर एक रुपए थी। आज डालर की विनिमय दर भारतीय रुपए में 75 रुपये है। विदेशी सामान को आयात करने और देश के उत्पादों का उचित ढंग से मूल्यांकन नहीं होने के कारण मूलभूत सुविधाओं के अभाव में भारतीय उद्योग जगत टेक्नोलॉजी क्वालिटी और वैल्यू एडिशन नहीं होने के कारण, बड़ी तेजी के साथ पिछड़ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है, तो डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर 35 डालर के बराबर लाना होगी। तभी भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के मुकाबले खड़ी हो पाएगी।

कोर सेक्टर के उत्पादों को प्राप्त करने के लिए पावर प्लांट , स्टील प्लांट, फर्टिलाइजर प्लांट, ऑटो क्षेत्र, असेंबली लाइन और हाईटेक मशीनों जैसे उत्पादों का आयात करके भारतीय व्यवस्था में रुपए का जो अवमूल्यन हुआ है। वह अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहा है। इस व्यवस्था को स्वदेशी बनाने के लिए मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को एक मिशन की तरह आयोजन करने की जरूरत है। इस पर सरकार का ध्यान नहीं है। पश्चिम एशिया के मध्य पूर्व के देशों में जहां रेगिस्तान है। वह पेट्रोलियम की प्राकृतिक संपदा के बल पर दुनिया की पहली पंक्ति की अर्थव्यवस्था वाले देशों में शामिल है। इसी तरीके से आयरन-स्टील तथा मेटल मिनरल्स तथा खनिज धातु जो पृथ्वी के भूगर्भ में है। इसमें बेहतर प्रबंधन करने एवं नीति बनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य किए जाने की जरूरत है। भारत में सौर ऊर्जा बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने के बाद भी इसका व्यापक उपयोग नहीं हो पा रहा है। भारत में अधिक से अधिक सौर ऊर्जा आधारित परियोजनाएं स्थापित कर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए भारत में युद्ध स्तरीय प्रयास करने की जरूरत है।

पेट्रोलियम पदार्थों का आयात भी घटेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। देश के औद्योगिक विकास को उत्पादन के क्षेत्र में वैल्यू एडिशन के अनुकूल गुणवत्ता के साथ जोड़ने से भारत की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत होगी । ग्रामीण विकास को सुदृढ़ करने के लिए तमिलनाडु जैसे प्रदेश में बुनियादी ढांचे में जो सुधार किया गया है। उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। प्रमुख शहरों मैं बुनियादी ढांचे में सुधार करने की जरूरत है। 40 से 50 किलोमीटर के दायरे में सड़कों के किनारे इंटरनेट बैंकिंग बिजली आपूर्ति एमएसएमई कुटीर उद्योग और स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने से ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकेगा। वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बड़े पैमाने पर वोकल फार लोकल की भावना से देश को अर्थव्यवस्था में मजबूती दी जा सकती है।

भारत में वर्तमान स्थिति में इंजीनियर फार्मेसिस्ट और स्नातक शिक्षा प्राप्त युवाओं को 12000 रुपया प्रति माह का भी वेतन नहीं मिल पा रहा है। जो हमारी उत्पादन के क्षेत्र में उदासीनता और विफलता को दर्शाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दूरदर्शी व्यक्तित्व हैं। उनके नेतृत्व में एक सक्षम टीम काम भी कर रही है। भारत के पास दुनिया का सबसे श्रेष्ठ और कुशल-जन-बल उपलब्ध है। वैश्विक परिस्थिति के अनुसार व्यापार और वाणिज्य के पैटर्न को प्राप्त करने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों की दिशा में भी काम करने की बड़ी जरूरत है। सरकार को उचित नीति तैयार करने और विभिन्न संगठनों से चर्चा करके भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए विचार विमर्श करने की और प्रभावी रूप से लागू करने की जरूरत है। सरकार की सही नीति देश को नई आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा सकती है।

लेखक ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन अहमदाबाद के अध्‍यक्ष हैं

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