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भारत की पहली मूक बधिर वकील, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में की बहस; हो रही तारीफ

नई दिल्ली। कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तबीयत से उछालो यारो। इन लाइनों को सारा सनी ने साकार किया है। मूक बधिर सारा सनी देश की पहली ऐसी वकील हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बहस की है।

सारा सनी मूलरूप से बेंगलुरु की रहने वाली हैं। हाल ही में सारा सनी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुईं और उन्होंने एक सांकेतिक भाषा दुभाषिया की मदद से अदालत की कार्यवाही को लाइव देखा और भाग लिया। सारा की ओर से पेश एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड संचिता ऐन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से अपील की थी कि दुभाषिया को अनुमति दी जाए ताकि सारा कोर्ट की कार्यवाही को समझ सकें। इसके बाद पूरे दिन कोर्ट रूम में दुभाषिये सौरभ रॉय चौधरी ने सांकेतिक भाषा के जरिए सारा को कार्यवाही समझाई।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने की सराहना
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दुभाषिये की ओर से किए गए प्रयासों की सराहना की और कहा कि यह एक स्वागत योग्य कदम है। एओआर संचिता ऐन ने मीडिया को बताया कि सारा एक प्रतिभाशाली लड़की है और वह अपने सपनों को साकार करना चाहती है। संचिता ने कहा कि मैं उन्हें हर संभव तरीके से मदद दे रही हूं। मुझे हमेशा लगता है कि भारत में बधिरों के लिए इस तरह का बुनियादी ढांचा विकसित होना चाहिए।


सीखी कोर्ट में कैसे होती है बहस?
संचिता ने कहा कि भारत में दुभाषिया की नियुक्ति आसान और लागत प्रभावी बात नहीं है। उन्होंने कहा कि सारा सनी मेघालय हाईकोर्ट में पेश हुईं। उन्होंने कहा कि वह बहुत खुश थी कि उन्होंने अदालती कार्यवाही में भाग लिया। सुनवाई के तुरंत बाद संचिता ने सारा के हवाले से कहा कि व्याख्या (लेक्चर) की मदद से मैंने सीखा है कि आत्मविश्वास के साथ बहस कैसे की जाती है?

दुभाषिए की ये होती है फीस
संचिता ने यह भी बताया कि अदालती कार्यवाही की व्याख्या करने के लिए दो दुभाषियों की आवश्यकता होती है, क्योंकि कोई केवल एक घंटे तक संकेतों के माध्यम से चीजों को समझा सकता है। साथ ही उन्होंने बताया कि दुभाषिया एक घंटे के लिए करीब 1000 रुपये चार्ज करता है।

सारा का सपना साकार
उधर सारा ने दुभाषिए की मदद से बताया कि यह मेरे लिए एक सपना साकार होने जैसा है। सारा ने कहा कि मेरी हमारे देश की न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत में एक मामले के लिए पेश होने की बहुत इच्छा थी, जिसकी मैंने इतनी जल्दी उम्मीद नहीं की थी और वह भी भारत के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में पूरा हुआ। इससे मुझे आत्मविश्वास और हिम्मत मिली है। मैं उन अन्य लोगों के लिए एक आदर्श बनना चाहती हूं जो विशेष रूप से असक्षम हैं।

सारा सनी ने कहा कि वह संवैधानिक कानून, विकलांगता कानून और मानवाधिकार कानून की बेहतर समझ हासिल करना चाहती हैं, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रोत्साहित और प्रेरित कर सकें।

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