भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

बीमारी का इलाज कराने भोपाल आये थे इक़बाल, नवाब ने दिया था वज़ीफ़ा

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी, ये गुलसितां हमारा।

इस मशहूर कौमी तराने को लिखने वाले अज़ीमुश्शान शायर अल्लामा इक़बाल कभी अपनी सख्त अलील तबियत के इलाज के लिए भोपाल तशरीफ लाये थे। उन्हें भोपाल की आबोहवा बहुत रास आई थी। जो जगह आज इक़बाल मैदान के नाम से जानी जाती है वो नवाबी दौर में खिरनी वाले मैदान के नाम से जानी जाती थी। इसी मैदान के इर्द गिर्द रियाज़ मंजि़ल और शीश महल में अल्लामा इक़बाल ने कय़ाम किया था। इस दौरान इक़बाल ने कई बेमिसाल नज़्में लिखी थीं जो उनकी किताब जर्बे कलीम में शामिल हैं। दरअसल अल्लामा इक़बाल के सर सैयद अहमद के पौते डॉ. सर रास मसूद से बहुत अच्छे मिरासिम थे। दोनो एक दूसरे पे जान छिड़कते थे। अल्लामा इक़बाल 1935 और 1936 में तीन बार भोपाल आये थे। उस वक्त सर रास मसूद भोपाल रियासत में एजुकेशन मिनिस्टर थे। वो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े हुए थे। भोपाल की मशहूर हस्ती ममनून हसन खां जो अस्सी की दहाई में बीडीए के चेयरमेन रहे, ने अल्लामा इक़बाल के भोपाल कय़ाम के वक्त उनकी बड़ी खिदमत करी। ममनून साहब उस वक्त सर रास मसूद के प्राइवेट सेक्रेटरी थे। सर रास मसूद ने उन्हें अल्लामा को असिस्ट करने की अहम जि़म्मेदारी दी थी। अल्लामा ने अपनी बीमारी के दौरान कई शेर ममनून हसन ख़ाँ से लिखवाए थे। इक़बाल भोपाल की खूबसूरती और आबोहवा से बहुत मुतास्सिर थे। उन्होंने भोपाल के हुस्न के बारे में एक नज़्म भी रियाज़ मंजि़ल में अपने कय़ाम के दौरान लिखी थी।



रियासते भोपाल के वज़ीरे आज़म सर राजा अवधनारायण बिसारिया अल्लामा इक़बाल के बड़े शैदाई थे। वो भी उनसे मिलने और अयादत (बीमार का हाल पूछना) के लिए शीश महल आते थे। सन 1935 में अल्लामा इक़बाल लगातार चार महीने भोपाल में रहे। सर रास मसूद ने उनकी बीमारी के लिए भोपाल में बिजली का इलाज कराने का मशवरा दिया था। भोपाल में सैयद नज़ीर नियाज़ी और डॉ. जमीयत ने उनका इलाज किया। उन्होंने नाबीना हकीम का इलाज भी लिया। दो साल के वक्फे में अल्लामा बिजली के इलाज के लिए तीन दफे भोपाल आये। लेकिन तिबियाई इलाज में फ़ायदा बहुत देर से होता था और अल्लामा फौरन फायदा चाहते थे। लेकिन मेडिकल साइंस भी इस मामले में नाकाम साबित हुई। इस बीच अल्लामा इकबाल की शरीके हयात भी चल बसीं थी। उनकी वकालत भी नही चल रही थी। उनकी माली हालत बहुत खराब हो गई थी। यहां तक कि उनका रोज़मर्रा का खर्च उठाना भी मुश्किल हो गया था। जब ये बात भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां को मालूम हूई तो उन्होंने पांच सौ रुपये माहाना वज़ीफ़ा ताजि़न्दगी देने का हुक्म जारी किया। अपने इलाज के लिए अल्लामा भोपाल के बड़े ममनून थे। उन्हें काफी फायदा भी हुआ था। आखिरकार 21 अप्रेल 1938 को लाहौर में अल्लामा इक़बाल का इंतक़ाल हो गया। बताते हैं उन्हें गले की कोई रहस्यमय बीमारी थी जिससे उनकी आवाज़ बैठ गई थी।

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