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न्यायपालिका शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत का अनुपालन करे – लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला


जयपुर । लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Lok Sabha Speaker Om Birla) ने न्यायपालिका (Judiciary) को नसीहत देते हुए कहा है कि (Advising that) उसे अपने संवैधानिक मैनडेट का प्रयोग करते समय (While Exercising His Constitutional Mandate) सभी संस्थाओं के बीच (Among All Institutions) संविधान द्वारा प्रदत्त (Provided by the Constitution) शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत (Principle of Separation and Balance of Powers) का अनुपालन करना चाहिए (Should Follow) ।


राजस्थान विधान सभा में आयोजित अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 83वें सम्मेलन के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि हमारे देश में विधान मंडलों ने न्यायपालिका की शक्तियों और अधिकारों का सदैव सम्मान किया है। हमारे विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि न्यायपालिका के साथ उनके संबंध संविधान की मर्यादा और भावना के अनुरूप रहे, लेकिन इसके साथ ही न्यायपालिका से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने संवैधानिक मैनडेट का प्रयोग करते समय सभी संस्थाओं के बीच संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत का अनुपालन करे।

बिरला ने आगे कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका- तीनों ही अपनी शक्तियां तथा क्षेत्राधिकार संविधान से प्राप्त करते हैं। प्रत्येक अंग को एक दूसरे का और क्षेत्राधिकार का ध्यान रखते हुए आपसी सामंजस्य, विश्वास और सौहार्द के साथ कार्य करना चाहिए। बिरला ने देश भर से आए विभिन्न राज्यों के विधान सभाओं और विधान परिषदों के अध्यक्षों को संबोधित करने के दौरान भारत को मिली जी-20 की अध्यक्षता का जिक्र करते हुए कहा कि भारत विश्व भर में लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है। लोकतंत्र की हमारी अवधारणा पश्चिम से नहीं ली गई है।

ऐतिहासिक प्रमाण है कि भारत में लोकतंत्र प्राचीन काल से विद्यमान है और विचारशील प्रतिनिधि निकाय और लोकतान्त्रिक संस्थाओं के साक्ष्य हमारे देश में मौजूद हैं। अपनी जी-20 ग्रुप की अध्यक्षता में भी भारत वैश्विक मंचों पर अपने प्राचीनतम लोकतंत्र एवं सांस्कृतिक विविधता के विषय को मजबूती से प्रस्तुत करेगा। जी-20 के साथ इन देशों की संसदों का पी-20 सम्मेलन भी हम आयोजित करने जा रहे हैं जिसमें हमें अपनी समृद्ध लोकतान्त्रिक विरासत को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा।
इसके साथ ही उन्होंने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संसद और विधान मंडलों को अधिक प्रभावी, उत्तरदायी और उत्पादकतायुक्त बनाने की आवश्यकता पर भी जोर देते हुए कहा कि पीठासीन अधिकारी के रूप में हमारा दायित्व है कि हम विधान मंडलों में जनप्रतिनिधियों के माध्यम से नागरिकों की आशाओं, अपेक्षाओं और उनके अभावों, कठिनाइयों की अभिव्यक्ति होने का पर्याप्त अवसर दें।

बिरला ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि आम जनमानस में विधायिकाओं एवं जनप्रतिनिधियों के बारे में प्रश्न चिन्ह है। हमें इस प्रश्न चिन्ह को भी सुलझाना है और विधान मंडलों की इमेज और प्रोडक्टिविटी को और बेहतर बनाना है। विधान मंडलों में होने वाली चर्चा अधिक अनुशासित, सारगर्भित और गरिमामयी होनी चाहिए। हमारी संसद और विधान सभाओं को अधिक प्रभावी, जवाबदेह और उत्पादक बनाने के लिए, हमारे सिस्टम में अधिकतम सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाया जाना चाहिए।

बदलते परिप्रेक्ष्य में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग हमारे राज्य विधान मंडलों ने किया है जिसके कारण हमारी सभाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है। लेकिन इन माध्यमों के कारण जनता हमारे सदनों की कार्यवाही को देखती है जिससे इस संबंध में नकारात्मक चर्चा भी हुई है। अत: हम सबका दायित्व है कि हम लोकतान्त्रिक संस्थाओं के प्रति लोक आस्था और विश्वास को बढ़ाएं। हमें संचार तकनीक का उपयोग जनप्रतिनिधियों के कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए भी करना होगा। हमारे रिसर्च और इनोवेशन सेंटर सर्वश्रेष्ठ हों जिनका लाभ हमारे जनप्रतिनिधियों को मिले।

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