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जस्टिस यशवंत वर्मा महाभियोग से बचने के लिए उठा सकते हैं ये कदम, जानें क्या है विकल्प?

June 09, 2025

नई दिल्ली। केंद्र सरकार (Central government) ने संसद में (Parliament) जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव (Impeachment motion) लाकर उन्हें हटाने के लिए राजनीतिक दलों से चर्चा शुरू कर दी है। अब जस्टिस वर्मा के सामने महाभियोग से बचने का केवल एक ही विकल्प है। अगर वह प्रस्ताव आने से पहले ही इस्तीफा दे देते हैं तो महाभियोग से बच सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और हटाने के मामलों के जानकार लोगों का कहना है कि संसद में खुद का बचाव करने से बचने के लिए वह मौखिक रूप से ही इस्तीफे का ऐलान कर सकते हैं।


अगर वह खुद से ही इस्तीफा दे देते हैं तो रिटायर्ड हाई कोर्ट के जज की तरह ही उन्हें पेंशन और बाकी सुविधाएं मिलती रहेंगी। हालांकि अगर संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर उन्हें हटाना पड़ता है तो उन्हें पेंशन तक नहीं मिलेगी। संविधान के अनुच्छेद 217 के मुताबिक हाई कोर्ट के जज राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। इसमें किसी की मंजूरी की भी जरूरत नहीं होती है। इस्तीफा देने के लिए जज का पत्र ही काफी होता है।

अगर जज अपने पत्र में इस्तीफा देने की कोई तारीख बताता है तो उसतारीख से पहले उसके पास इस्तीफा वापस लेने का भी अधिकार होता है। सीजेआई रहते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखा था। जज इन्क्वायरी ऐक्ट 1968 के मुताबिक सदन में अगर किसी जज को हटाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो स्पीकर या फिर सदन का अध्यक्ष तीन सदस्यों की कमेटी बनाकर इस बात की भी जांच करा सकता है कि उसे किस बुनियाद पर हटाया गया है।

इस कमेटी में सीजेआई, 25 हाई कोर्ट में से किसी एक हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस शामिल होता है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने बुधवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने में सभी राजनीतिक दलों को साथ लेने के सरकार के संकल्प को रेखांकित करते हुए कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को ‘राजनीतिक चश्मे’ से नहीं देखा जा सकता।

केंद्रीय मंत्री रीजीजू ने कहा कि प्राथमिक उद्देश्य महाभियोग प्रस्ताव लाना है। उन्होंने उम्मीद जताई कि 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में दोनों सदनों में निष्कासन की कार्यवाही पारित हो जाएगी। मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी, जब वह दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे, जिसके कारण उनके घर के एक हिस्से में नकदी की जली हुई बोरियां मिलीं थीं।

न्यायाधीश ने नकदी के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से बात करने और उनके बयान दर्ज करने के बाद उन्हें दोषी ठहराया। माना जाता है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए संकेत दिया था, लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा अपनी जिद पर अड़े रहे। न्यायालय ने तब से उन्हें उनके मूल कैडर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। न्यायमूर्ति खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश की थी, जो उच्च न्यायपालिका के सदस्यों को सेवा से हटाने की प्रक्रिया है।

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