खरी-खरी

गैरों पे करम… अपनों पे सितम…कब तक करते रहेंगे ऐसा जुलम

केवल सरकार के लिए ऐसा वाहियात संग्राम… जिनका न दीन है न ईमान…न जिन पर जनता है मेहरबान, उन्हें गले लगा रहे हो…जिन्होंने वर्षों साथ निभाया…भविष्य का सपना सजाया…बचपन से लेकर जवानी तक को खपाया… बुढ़ापे में भी अरमानों को नहीं गंवाया, उन्हें हिकारत देकर जीवनभर गालियां देने वाले, अपमान करने वाले, लांछन के हर दांव चलने वाले गद्दारों को अपना वफादार समझने की गलतियां दोहराती भाजपा आखिर यह कर क्या रही है…केवल आज के लिए कल को गंवाना…खुद के सामथ्र्य को दांव पर लगाना…उनके लांछनों के आगे सर झुकाना… दुश्मनों को बगल में बैठाना… सिद्धांतों को सूली पर लटकाना… उसूलों को मिट्टी में मिलाना किसे रास आएगा… कालिख पुते चेहरों को अपने चेहरों पर लगाकर आपके कार्यकर्ता कैसे जनता के बीच जाएंगे…और चलिए इस गम का बोझ यदि नेता और कार्यकर्ता निष्ठा और पार्टी से वफादारी की भीष्म प्रतिज्ञा के चलते उठा भी लेंगे तो आप उनसे वफादारी कैसे कर पाएंगे… जिन्होंने अपनी वफा न केवल निभाई है, बल्कि आपने आजमाई और उन्होंने साबित कर दिखाई… आज भाजपा इस देश की सबसे बड़ी पार्टी हो चुकी है…उसके पास अपने करोड़ों कार्यकर्ताओं और हजारों नेताओं की फौज है…उसके अपने समर्थको में हिन्दूवादी संगठन और संघ के नेता व कार्यकर्ता भी शामिल हैं, जो अब सत्ता में भी भागीदारी करने लगे हैं…ऐसे में उन गैरों को अपनाना…उनके भ्रष्टाचार पर अपनी मुहर लगाना… उनकी नीतियों और नीयत को अपना बनाना और अपनों के हक और अधिकार पर डाका डालना भाजपा जैसी सिद्धांतवादी, राष्ट्रवादी और राष्ट्रप्रेम रखने वाली पार्टी को शोभा तो देता ही नहीं है बल्कि उसे उन दलों की जमात में खड़ा कर देगा, जिन पर वो हमेशा उंगली उठाती रही… कहीं परिवारवाद तो कहीं भ्रष्टाचार की तोहमतें लगाती रही…वहीं जातिवाद और तुष्टिकरण के आरोप लगाती रही…यदि ऐसे ही नेताओं को मंत्री बनाओगे…बगल में बिठाओगे तो अपने ही सवालों का जवाब कैसे दे पाओगे…फडनवीस जिस अजीत पवार को चक्की पिसवाने की कसमें खा रहे थे, वे अब उनकी ही चक्की का आटा खाएंगे… जिस छगन भुजबल को ईडी के जरिए जेल भिजवा रहे थे… भ्रष्टाचारी और दुराचारी बता रहे थे, अब उसके आचरण पर तिलक लगाएंगे… जिस हारून मुसरिफ ने भ्रष्टाचार में करोड़ों कमाए… अपने ही घर में अरबों छिपाए… आज वो आपके दामन में अपना सर छुपाएंगे और आप उसे अपना बताएंगे तो कैसे ईमानदारी की कसमें खा पाएंगे… कब तक अपनों को धूप की तपिश में झुलसाएंगे और गद्दारों को मेहमान बनाकर घर लाएंगे… जिस दिन आपके अपने वफा छोडऩे लग जाएंगे उस दिन बेवफाई के मायने समझ में आएंगे…

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