इंदौर न्यूज़ (Indore News)

शहरभर की उषाराजे की संपत्तियां भूमाफियाओं ने हड़पीं


जिन पर खासगी संपत्तियां बेचने का आरोप लगाया उन्होंने खुद को लुटाया…
जिसके नाम पर था इंदौर का चप्पा-चप्पा… सरकार ने सौंपे तीन-तीन पैलेस, वो माणिकबाग के एक छोटी सी जमीन पर बने बंगले में सिमटी

इंदौर। खासगी ट्रस्ट के कर्ताधर्ता महारानी उषाराजे के पति सतीश मल्होत्रा को जहां ट्रस्ट की जमीनें खरीदने-बेचने का अपराधी बताया जा रहा है, वहीं हकीकत यह है कि महारानी और मल्होत्रा ने इंदौर की अपनी अरबों रुपए की जायदाद को न केवल लुटा दिया, बल्कि उनकी संपत्ति पर भी आम लोगों ने कब्जे कर लिए। लेकिन उन्होंने जब अपनी जमीनों पर आम लोगों का आशियाना देखा तो अदालत तक का रुख नहीं किया। यहां तक कि अपने लालबाग पैलेस को भी शासन को दान में दे दिया। इसके अलावा बंटवारे के बाद उन्हें भारत सरकार से मिली इंदौर की अधिकांश संपत्तियों पर या तो शासन ने या फिर भूमाफियाओं ने कब्जे कर रखे हैं।

राजा-महाराजाओं से उनकी रियासतें छीनने के बाद भारत सरकार ने 30 अक्टूबर 1948 को एक कोविनेंट, यानी समझौता पत्र तैयार कर राजा-महाराजाओं द्वारा दावा की गई संपत्तियों को उनके स्वामित्व के रूप में सौंप दिया था। इनमें उनके पैलेस से लेकर बड़ी तादाद में कृषि भूमियां और भवन उन्हें दिए गए थे। इसी कोविनेंट के जरिए महाराजा यशवंतराव होलकर को राजबाड़ा, माणिकबाग पैलेस के साथ ही यशवंत निवास पैलेस, लालबाग पैलेस जहां स्वामित्व के तौर पर सौंपे, वहीं लालबाग पैलेस से लेकर भंवरकुआं तक और भंवरकुआं से लेकर फलबाग तक की पूरी जमीन उन्हें सौंप दीं। इसमें सुदामानगर, द्वारकापुरी, उषानगर सुखनिवास, कैट रोड, हवा बंगला, फूटी कोठी तक का इलाका शामिल था। इसके अलावा इमामबाड़ा, लक्कडख़ाना, अंबारीखाना, भोईखाना की बिल्डिंग भी उन्हें सौंपी गई, लेकिन सुदामानगर से लेकर द्वारकापुरी तक की जमीनें औने-पौने दाम में जहां लोगों ने खरीद लीं, वहीं कई जमीनों पर राजस्व अभिलेखों में उनका स्वामित्व कायम है, लेकिन आम लोगों ने उन पर कब्जा कर रखा है। इसके लिए कभी महारानी या उनके पति ने न तो कोई कानूनी लड़ाई लड़ी और न ही कब्जेदारों को हटाने का प्रयास किया। भारत सरकार द्वारा बनाए गए कोविनेंट में साफ उल्लेख है कि कोई भी राज्य सरकार उनसे उनके कोविनेंट की संपत्तियों का हक नहीं छीन सकती, लेकिन उसके बावजूद उनकी संपत्तियों पर न केवल लगातार कब्जे होते रहे, बल्कि शासन ने भी उनके पैलेस अधिगृहीत कर लिए। वर्तमान में महारानी के पास केवल माणिकबाग में अपना घर और कार्यालय की भूमि मौजूद है, जहां वे इंदौर प्रवास के दौरान विश्राम करती हैं।

इंदौर की हाउस होल्ड प्रापर्टी का स्वामित्व भी महाराज का
कोविनेंट में जिला प्रशासन के अधीन हाउस होल्ड डिपार्टमेंट की सारी संपत्तियां होलकरों को सौंपी गई थीं, जिनमें 2 गेस्ट हाउस, एबी रोड का राजेन्द्र भवन एवं इंदौर होटल के साथ ही बड़ी तादाद में संपत्तियां दी गई थीं। लेकिन इनमें से अधिकांश संपत्तियां या तो जिला प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लीं या फिर महाराजा यशवंतराव होलकर की वारिस महारानी उषाराजे ने बेच दीं।

फ्रांस के दो पैलेस भी महारानी की संपत्ति में
बंटवारे के वक्त महाराजा यशवंतराव होलकर के फ्रांस में दो पैलेस थे। इनमें से एक का नाम शांति विलास तो दूसरे का नाम उषा विलास था। दोनों ही पैलेस का स्वामित्व कोविनेंट में भारत सरकार ने स्वीकार किया।

रेलवे का सैलून भी महाराज के नाम
महारानी के भ्रमण के लिए रेलवे का एक विशेष कोच बनाया गया था। यह सैलून इंदौर के रेलवे स्टेशन की ब्रॉडगेज और मीटरगेज लाइन पर रहता था। कोविनेंट में उन्हें उक्त सैलून का स्वामित्व सौंपा गया, लेकिन आज वो सैलून नदारद है।

विमान भी दिया था महाराज को
विभाजन के वक्त एक विमान भी महाराज के पास था, जिसका स्वामित्व भारत सरकार ने स्वीकारते हुए उन्हें उसकी सुपुर्दगी सौंपी थी। कई दिनों तक यह विमान इंदौर में ही पड़ा रहा और बाद में इसके पुर्जे-पुर्जे कबाड़े में बिक गए।

महाराज ने अपनी सारी संपत्ति अपनी बेटी को सौंपी … ट्रस्ट भी बनाया
कोविनेंट में मिली सारी संपत्ति महाराजा यशवंतराव होलकर ने अपनी पुत्र उषाराजे को सौंप दी और उषाराजे ने बाद में उक्त संपत्तियों का एक ट्रस्ट भी बना दिया, जिसका संचालन उनके पति सतीश मल्होत्रा करते रहे। इस संपत्ति से भी उन्होंने कभी कमाई की परवाह नहीं की। जो भी व्यक्ति जिस परिस्थिति में आया और जिसने जितना दाम लगाया उतने दामों पर उसे बेचकर वे मुक्त होते रहे।

राजस्व अभिलेखों में अभी भी इंदौर की ढेरों संपत्तियों पर महारानी का नाम दर्ज
जिला प्रशासन के राजस्व अभिलेखों में अभी भी इंदौर की संपत्तियों पर महारानी का नाम दर्ज है, लेकिन उक्त भूमि पर भूमाफियाओं ने कब्जे कर बड़ी तादाद मेें लोगों को बसा दिया है। इसके अलावा अभी भी स्वामित्व के कई प्रकरण न्यायालयों में चल रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा भी महारानी को उनके स्वामित्व की भूमि पर कब्जा दिलाए जाने के कोई प्रयास नहीं किए जाते हैं। इस कारण भी वे औने-पौने दामों में संपत्तियां बेचने को मजबूर रहीं।

पुणे में महारानी की 41 गांवों की 3702 एकड़ भूमि पर भी माफियाओं के कब्जे
कोविनेंट के जरिए ही महारानी को पुणे के चांदवड़ में 41 गांवों की 3702 एकड़ भूमि का स्वामित्व मिला था, लेकिन इसके भी कई हिस्सों पर भूमाफियाओं ने कब्जे कर लिए और कानूनी सहायता न मिल पाने के कारण उक्त भूमि भी या तो औने-पौने दामों में कब्जेधारियों ने खरीद ली या फिर कब्जे के आधार पर लोगों ने अपने नामांतरण करा लिए। चांदवड़ का पैलेस भी महारानी को कोविनेंट के जरिए मिला था। इसके अलावा हैदराबाद राज्य के 6 गांवों की 1205 एकड़ भूमि भी भारत सरकार ने महाराजा यशवंतराव होलकर को दी थी। पुणे का होलकरवाड़ा भी महारानी के स्वामित्व में ही रहा है, लेकिन अधिकांश संपत्तियां विवादों में घिरी हुई हैं।

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