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पिछले साल बिगड़े मौसम के कारण गई 1700 लोगों की जान, CSE की रिपोर्ट में हुआ खुलाला

नई दिल्ली। मौसम बिगड़ने (bad weather) की वजह से 2021 में देश (country) के 1,700 नागरिक (citizens) मारे गए। इनमें सबसे ज्यादा 350 महाराष्ट्र (Maximum 350 Maharashtra) के थे तो 223 ओडिशा और 191 मध्य प्रदेश (191 Madhya Pradesh) के। सबसे ज्यादा मौतें बिजली गिरने, चक्रवात, भीषण गर्मी, बाढ़ और भूस्खलन से हुईं।

विश्व पर्यावरण दिवस पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘भारत के पर्यावरण की स्थिति 2022’ में यह आंकड़े सामने रखे गए। साथ ही इस रिपोर्ट के अनुसार इस साल देश में प्राकृतिक आपदा को बढ़ाने वाले हालात भी पर्यावरण को नुकसान से बढ़ रहे हैं।


बढ़ रहीं गर्मी की भीषणता
2012 से 2021 के दशक में भारत ने तापमान में सर्वाधिक वृद्धि देखी। 15 में से 11 सबसे गर्म वर्ष बीते डेढ़ दशक में दर्ज हुए। 2022 मे भी मार्च महीना सबसे गर्म साबित हुए। इस वजह से राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और हरियाणा के लोगों को देश के 54 प्रतिशत लू से प्रभावित दिन सहने पड़े।

प्राकृतिक आपदाओं से खर्च में कुछ कमी
रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े खर्च में 30 प्रतिशत कमी आई है। 2021 के मुकाबले 2022 में 6 राज्यों व यूटी में यह कमी 50 प्रतिशत है तो 5 में 70 प्रतिशत तक।

जल क्षेत्र बढ़ा…7 राज्यों के लिए खतरा
भारत, चीन और नेपाल के बीच 25 ग्लेशियर झीलें व जलाशय हैं, जिनमें से अधिकतर का जल क्षेत्र गर्मी के साथ बढ़ रहा है। अकेले नेपाल में 2009 से इनका जल क्षेत्र 40 प्रतिशत बढ़ा है। इससे भारत के सात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) बिहार, हिमाचल प्रदेश, असम, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में अचानक बाढ़ के खतरे पैदा हुए हैं।

गंगा में प्रदूषण सुरक्षित स्तर से अधिक
नदियों में प्रदूषण पर निगरानी रख रहे 4 में से 3 निगरानी केंद्रों के अनुसार इनमें लेड, निकल, कैडमियम, आयरन, आर्सेनिक, क्रोमियम और कॉपर आदि सुरक्षित स्तर से अधिक मिल रहे हैं। हर चौथे केंद्र को 117 नदियों और उनकी सहायक में दो या दो से ज्यादा जहरीले तत्व मिले हैं। सबसे पवित्र कही जाने वाली गंगा के 33 में से 10 निगरानी केंद्रों ने पानी में प्रदूषण सुरक्षित स्तर के पार बताया है।

12 फीसदी रीसाइकल…68 फीसदी कचरा कहां जा रहा, पता नहीं
देश में 12 प्रतिशत प्लास्टिक रीसाइकल हो रहा है, तो 20 प्रतिशत जलाया जा रहा है। 2019-20 में देश में 35 लाख टन प्लास्टिक का कचरा निकला था। 68 प्रतिशत प्लास्टिक का क्या हो रहा है, कोई खबर नहीं है। अनुमान हैं कि इनसे कचरे व मलबे के ढेर बन रहे हैं तो इन्हें जमीन में भी गाड़ा जा रहा है। इससे मिट्टी में प्रदूषण बढ़ रहा है।

33 फीसदी में बढ़ा कटाव
1990 से 2018 के बीच भारत के करीब 33 प्रतिशत तट में कटाव देखने को मिला। पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 60 प्रतिशत तटों पर कटाव हुआ है। इसकी वजह मैंग्रोव जंगलों को काटा जाना, बंदरगाह निर्माण व आवागमन गतिविधियां बढ़ना, तटों के निकट बांध व अन्य निर्माण, समुद्र के पानी का स्तर बढ़ना, तटों पर खनन हैं।

जंगल: जलवायु परिवर्तन से हरियाली घटेगी, सूखेंगे पानी के स्रोत
भारत के 65 प्रतिशत जंगलों में 2030 तक जलवायु परिवर्तन का असर नजर आने लगेगा। यहां हरियाली कम होना, आग लगना, पानी के स्रोत सूखना प्रमुख नुकसान होंगे।
2050 तक देश के लगभाग सभी जंगल ‘क्लाइमेट हॉटस्पॉट’ बन चुके होंगे, यानी यहां जलवायु परिवर्तन का नुकसान होगा।

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