भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

सुनी सुनाई : मंगलवार 21 दिसंबर 2021

भागवत से सहमत मुस्लिम अफसर
मप्र मंत्रालय में पदस्थ उपसचिव स्तर के अधिकारी नियाज खान कई कारणों से चर्चा में रहते हैं। कभी अंडरवल्र्ड पर उपन्यास लिखने की अनुमति मांगने, कभी अपने वरिष्ठ आईएएस से सीधे टकराने, कभी अंतरराष्ट्रीय विवादास्पद विषयों पर पुस्तकें लिखने के कारण। फिलहाल वे संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान का समर्थन करने के कारण चर्चा में हैं। उन्होंने भागवत के इस दावे से सहमति व्यक्त की है कि भारतीय मुसलमान बाहर से नहीं आए हैं। बाहर से आए मुस्लिम शासकों ने इन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर दिया था। नियाज खान ने मोहन भागवत की एक खबर को ट्वीट करते हुए लिखा है कि हम सभी भारतीयों का डीएनए एक ही है। इसलिए हम सब भाई हैं। नियाज ने दावा किया है कि दुनिया में भारतीय मुसलमान ही सबसे सहिष्णु हैं। यहां के मुसलमान अरब के मुसलमानों से अलग हैं जो इतने हिंसक हैं। नियाज की यह टिप्पणी फिलहाल नौकरशाही में चर्चा का विषय बनी हुई है।

संत और विधायक में फिर तनातनी
मप्र की राजनीति में संत रावतपुरा महाराज और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह का विवाद चर्चा का विषय रहा है। लगभग चार चुनावों में रावतपुरा महाराज ने गोविंद सिंह को चुनाव हराने का पूरा प्रयास किया, लेकिन नहीं हरा पाए तो उनसे समझौता कर लिया था। पिछले कुछ वर्षों से संत और विधायक का विवाद थमा हुआ था। लेकिन इस सप्ताह रावतपुरा धाम में भारतीय जनता पार्टी के तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर लगने के बाद डॉ. गोविंद सिंह तमतमाये हुए हैं। गोविंद सिंह का कहना है कि ऐसे समय में जबकि पंचायत चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू है। संत रावतपुरा महाराज को रावतपुरा धाम धार्मिक स्थल का उपयोग राजनीतिक पार्टी को नहीं करने देना चाहिए था। डॉ. गोविंद सिंह का आरोप है कि इस शिविर का खर्चा भी महाराज उठा रहे हैं। डॉ. गोविंद सिंह ने भाजपा और महाराज की शिकायत राज्य निर्वाचन आयोग ने कर दी है। इसी के साथ संत और विधायक का झगड़ा फिर से तूल पकड़ सकता है।

एक परिवार, तीन दलों से तीन विधायक
ग्वालियर में केवल महल ही अकेला नहीं है जिसके सदस्य अलग-अलग दलों से चुनाव लड़कर विधायक और सांसद बनते रहे हैं। ग्वालियर में एक और परिवार ऐसा है जिसके तीन सदस्य तीन अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़कर मप्र विधानसभा पहुंचे हैं। छात्र राजनीति से प्रदेश की राजनीति में आए गजराज सिंह सिकरवार की पहचान खांटी समाजवादी नेता की रही है। वे पहली बार जनता दल से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। उनके बेटे सत्यपाल सिंह सिकरवार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए। अब इसी परिवार के सतीश सिंह सिकरवार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के सदस्य हैं। खास बात यह है कि यह पूरा परिवार एक छत के नीचे रहता है और चुनाव में सभी मिलकर काम करते हैं।

महिला आईएएस का किसने किया शिकार!
प्रदेश में उद्यानिकी विभाग में भ्रष्टाचार आम बात है, लेकिन राज्य शासन ने जिस तरह से प्याज खरीदी मामले में उद्यानिकी संचालक को हटाकर उनके मूल विभाग भेज दिया है। साथ ही विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव को हटाकर पहले मंत्रालय में बिना काम के बैठा दिया फिर उन्हें मछली पालन जैसा ‘डीप लूप लाईन’ में भेज दिया है। इसको लेकर प्रशासनिक हलकों में चर्चा है कि क्या कल्पना श्रीवास्तव किसी षड्यंत्र की शिकार हुई हैं या फिर भ्रष्टाचार मामले की जांच कराने या भ्रष्टाचार में मिलीभगत के चलते उन्हें लूप लाईन किया गया है। हालांकि कल्पना श्रीवास्तव के रिटायरमेंट में लंबा समय है। कल्पना श्रीवास्तव पर की गई कार्रवाई को लेकर नौकरशाही में चर्चाओं का दौर गर्म है।

2013 बैच पर मेहरबान सरकार
प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था में लंबे समय बाद यह देखने को मिल रहा है कि राज्य सरकार नए नवेले अफसरों को फील्ड में उतार रही है। यदि कलेक्टरों की ही बात करें तो सरकार 2013 बैच के आईएएस अधिकारियों को कलेक्टरी से नवाज चुकी है। यूं तो 2013 बैच में सीधी भर्ती के 17 आईएएस अधिकारी हैं जिनमें से 14 को कलेक्टर बनाया जा चुका है, शेष अधिकारियों को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल चुकी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अभी भी 2009 बैच तक के कुछ अधिकारी ऐसे हैं, जो कलेक्टर बनने का इंतजार कर रहे हैं। खासकर प्रमोटी अधिकारी रिटायर्ड भी हो चुके हैं। 2011 बैच के ही सीधी भर्ती के 2 आईएएस अधिकारियों को अभी तक कलेक्टर नहीं बनाया गया है। इसी तरह 2012 बैच के भी कुछ अधिकारी कलेक्टर नहीं बन पाए हैं। जबकि प्रमोटी आईएएस की लंबी सूची है। जो कलेक्टर बनने के प्रतीक्षा कर रहे हैं। सरकार फिलहाल 2013 बैच के आईएएस अधिकारियों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान दिख रही है। इसको लेकर भी प्रशासनिक अंदरखाने चर्चा है।

और अंत में….
मप्र में अधिकांशत: राज्यपाल निजी विश्वविद्यालयों के कार्यक्रमों में जाने से परहेज करते हैं। प्रदेश में निजी विश्वविश्वविद्यालय खोलने वाले अधिकांश लोग बिल्डर, नेता या व्यवसायी हैं। राज्यपाल को बुलाकर यह अपने संस्थान की मार्केटिंग करते हैं। नये राज्यपाल मंगूभाई पटेल बिल्कुल अलग हैं। वे धड़ल्ले से निजी विश्वविद्यालयों के कार्यक्रमों में पहुंच रहे हैं। एक महिने में इंदौर में ऐसे दो कार्यक्रमों में उन्होंने शिरकत की है। मजेदार बात यह है कि राज्यपाल पहले जिस निजी विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में पहुंचे, वहां आयकर का छापा पड़ गया है।

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