भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

महेश परिमल: अख़बारी हेडिंग पर PHD करने वाला पहला पत्रकार

आज खां आपकी मुलाकात कराते हैं महेश परिमल साब से। 42 बरस हो गए इन्हें सहाफत के पेशे में। आज 65 बरस के हैं। एक्टिव जर्नलिज़्म तो अब छूट गया है। बाकी मुल्क भर के रोजऩामचों (अखबारों) में लिखते रहते हैं। हिंदी और हिंदुस्तानी ज़बान के लपक जानकार महेश परिमल इन शुस्ता (साफ) ज़बानों के नायाब जानकार हैं। जनाब ने आज से 28 बरस पेले जिस मौज़ू पे पीएचडी करी थी, इनका दावा है कि उस मौज़ू पे आज तलक किसी और सहाफी (पत्रकार) को डाक्टरेट नहीं मिली। इंन्ने रायपुर के पंडित रवि शंकर शुक्ल विवि से ‘हिंदी समाचार पत्रों में प्रयुक्त शीर्षकों का भाषिक विश्लेषणÓ सब्जेक्ट पे पीएचडी करी है। भाषा की रवानी, उसकी खूबसूरती और शिल्प को जानने वाले इन जैसे पत्रकार अब कम ही बचे हैं। 1980 में राजनांदगांव में हेंड कंपोजि़ंग से शुरु हुई परिमल जी की सहाफत का सफर बिलासपुर, रायपुर देशबन्धु में अपना हुनर दिखाने के बाद 1991 में देशबन्धु भोपाल तक आ गया। यहां इन्होंने दैनिक जागरण, नवभारत में लपक काम दिखाया। खास तौर से इन्हें इनके जानदार हेडिंग के लिए जाना जाता है।


एक बार नवभारत से रात दो बजे घर लौटते हुए इनकी स्कूटर खड़े ट्रक से टकरा गई। हादसे के बाद नवभारत से नाता टूटा और ये काम की तलाश में मुम्बई चले गए। वहां चाचा चौधरी टीवी सीरियल के दो एपिसोड लिखे ही थे कि उस ट्रक हादसे के चलते हुई हेड इंजुरी का असर इनकीं एक आंख में हुआ और उस आंख की रोशनी चली गई। परेशान परिमल जी साल 2001 में भोपाल लौट आये। काम नहीं था। फ्लेट की ईएमआई और दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च सामने था। मुसीबत में ये डेढ़ दो बरस डिप्रेशन में चले गए। इस बीच इनकीं शरीके हयात ने जि़म्मेदारी संभाली। साल 2002 में परिमल जी ने दैनिक भास्कर ज्वाइन किया। यहां इन्होंने 2019 तक लंबी पारी खेली। पांच बरस पेले इन्हें दिल का ज़बर दौरा पड़ा। भोपाल के एक अस्पताल में बायपास सर्जरी की गई। आज इनके फऱज़न्द आरुणि मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में आईटी इंजीनियर है। बिटिया मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज की इंडिया इंफोलाइन में काम करती हैं। परिमल जी एक शानदार फ्लेट में रहते हैं और रोज़ 10 किलोमीटर पैदल चल के अपनी फिटनेस बनाये हुए हैं।
अखबारों में आजकल भाषा का जो कबाड़ा हुआ जा रहा है उससे भाई भोत दुखी हैं। इनका केना है कि शीर्षक लिखने वाला यदि लफ्ज़़ों से गहरी और सच्ची दोस्ती रखे, तो लफ्ज़ उसका पूरा साथ देंगे, इससे एक बेहतरीन उन्वान(शीर्षक) हमारे सामने होगा। कम लफ्ज़़ों में ज़्यादा से ज़्यादा अभिव्यक्ति, शीर्षक का मूल मंत्र है। उनवान देने वाले को कई ज़बानों का इल्म हो, तो ये सोने पे सुहागा का काम करता है।

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