- रीडेंसीफिकेशन पॉलिसी के तहत हाउसिंग बोर्ड कर सकेगा उपयोग, प्रशासन प्रोजेक्ट की तैयार करवा रहा है डीपीआर, लोनिवि के जर्जर कार्यालय और आवास टूटेंगे
- एलआईजी-शॉपिंग कॉम्प्लेक्स जैसे पुराने प्रोजेक्ट भी पाइप लाइन में
इंदौर (indore)। एक तरफ प्रशासन रेसीडेंसी एरिया का विस्तृत सर्वे करवा रहा है, ताकि खाली पड़ी जमीनों का उपयोग किया जा सके। वहीं हाउसिंग बोर्ड रीडेंसीफिकेशन पॉलिसी के तहत सरकारी विभागों के पुराने मकानों, ऑफिसों की जगह रेसीडेंसियल व कमर्शियल प्रोजेक्ट ला सकेगा। पलासिया स्थित लोक निर्माण विभाग के पुराने-जर्जर कार्यालयों और आवासों की जगह भी इस तरह के होटल, मॉल के प्रोजेक्ट लाए जा सकते हैं, जिस पर प्रशासन भी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवा रहा है। इसी तरह रेसीडेंसी क्षेत्र में स्थित खाली जमीन पर भी सरकारी अधिकारियों के लिए कैम्पस बनवाया जाएगा और अगर पलासिया के लोनिवि दफ्तर व आवास हटते हैं तो उन्हें भी अस्थायी रूप से यहां शिफ्ट किया जा सकेगा। रेसीडेंसी एरिया की भी एक हजार एकड़ से अधिक की जमीन का विस्तृत सर्वे बीते कई समय से चल रहा है।
मध्यप्रदेश शासन अभी अपनी सरकारी जमीनों की ऑनलाइन नीलामी भी कर रहा है और इसके लिए अलग से भू-प्रबंधन विभाग बना रखा है। कल भी कैबिनेट ने भोपाल में डीबी मॉल के सामने स्थित जमीन के अलावा अन्य प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। इंदौर में भी पिछेल दिनों निपानिया आदि जगह की जमीनों को ऑनलाइन नीलाम किया गया है। वहीं दूसरी तरफ रीडेंसीफिकेशन पॉलिसी के तहत हाउसिंग बोर्ड को ये अधिकार दिए गए कि वह पुरानी सरकारी बिल्डिंगों को तोडक़र नए प्रोजेक्ट ला सके। इंदौर में ही लोक निर्माण विभाग, स्वास्थ्य विभाग सहित तमाम सरकारी महकमों के पास बीच शहर में बेशकीमती जमीनें हैं, जिन पर जर्जर कार्यालय या आवास बने हैं। इन्हें हटाकर इनका उपयोग रेसीडेंशियल या कमर्शियल प्रोजेक्टों में किया जाएगा। हाउसिंग बोर्ड के आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला का कहना है कि भोपाल सहित प्रदेश के बड़े शहरों में हम रीडेंसीफिकेशन के तहत कुछ प्रोजेक्ट अमल में ला रहे हैं।
वहीं इंदौर के भी लोनिवि की जमीनों सहित अन्य प्रोजेक्ट पाइप लाइन में है। वहीं कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने भी पिछले दिनों ओल्ड पलासिया स्थित लोक निर्माण विभाग के कार्यालय, पुराने क्वार्टर की जमीनों का सर्वे शुरू करवाया और अब डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जा रही है। दरअसल रीडेंसीफिकेशन पॉलिसी वैसे तो पुरानी है, मगर पिछले दिनों उसमें संशोधन किया गया और 30 फीसदी जमीन निजी बिल्डर या डवलपर को देने के एवज में शेष 70 फीसदी जमीन पर प्रोजेक्ट निर्मित कराए जाते हैं। वैष्णव पोलिटेक्नीक से लेकर सियागंज सहित कई सरकारी जमीनों पर इस तरह की पॉलिसी को पूर्व में अमल में भी लाया गया है। लोक निर्माण विभाग के पास ओल्ड पलासिया में लगभग 10 एकड़ जमीन है, जहां पर मुख्य अभियंता से लेकर नेशनल हाईवे के भी दफ्तर बने हुए हैं। सडक़, ब्रिज सेल से लेकर पुरानी वर्कशॉप, गोदाम और लगभग 150 छोटे-बड़े क्वार्टर भी हैं। वहीं कुछ बड़े अधिकारियों के बंगले हैं, तो सांसद से लेकर प्राधिकरण अध्यक्ष को भी यहीं पर कार्यालय और आवास उपलब्ध कराए गए हैं। चूंकि यह जमीन बीच शहर में अत्यंत बेशकीमती है, लिहाजा इसका व्यवसायिक उपयोग किया जा सकता है और होटल शॉपिंग मॉल जैसे प्रोजेक्ट भविष्य में आ सकेंगे। वहीं हाउसिंग बोर्ड के खुद के एलआईजी-शॉपिंग कॉम्प्लेक्स जैसे पुराने प्रोजेक्ट भी इस पॉलिसी के तहत लिए जा रहे हैं।
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