- महंगाई के दौर में श्रम का भी नहीं हुआ सही मूल्यांकन
- रोजाना 200 रूपए भी नहीं कमा पाते 117 लाख मजदूर
भोपाल। सरकार (Government) ने व्यवस्था संभालने वाले शासकीय कर्मचारियों के वेतन में जहां बेतहाशा वृद्धि की है, वहीं दूसरी ओर अपने श्रम से देश या प्रदेश (Pradesh) को संवारने वाले मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने पर विचार नहीं किया है। 100 दिन रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना (MNREGA scheme) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यह इसलिये भी आश्चर्यजनक लगता है क्योंकि यहां पंजीकृत 117 लाख मजदूरों को बढ़ती महंगाई के इस दौर में 200 रूपये रोज भी नहीं मिल पा रहे हैं।
यह स्थिति तब सामने आ रही है, जबकि मप्र में अकुशल कर्मचारियों के लिये भी न्यूनतम मजदूरी जिलाधीश द्वारा 280 रूपये निर्धारित किया गया है। यह बात दूसरी है कि कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के इस दौर में महंगाई भत्ते के साथ कोई नई मजदूरी दर अभी निर्धारित नहीं की गई है। बावजूद इसके भारत सरकार द्वारा मनरेगा (MNREGA) श्रमिकों को दी जाने वाली प्रतिदिन मजदूरी के मुकाबले अभी भी 87 रूपये ज्यादा है। क्योंकि इस योजना के तहत मप्र में काम करने वाले मजदूरों को रोजाना 193 रूपये से ज्यादा नहीं दिये जा रहे है। जबकि यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश में 117 लाख यानी प्रति 7 व्यक्ति में एक बेरोजगारी दूर करने के लिये मनरेगा में काम कर रहा है।
सबसे कम मजदूरी दे रहा है मप्र
पड़ोसी राज्यों के मुकाबले मप्र में भारत सरकार द्वारा निर्धारित की गई 193 रूपये की यह सबसे कम मजदूरी दर है। हालंाकि अभिन्न कभी अंग रहे छत्तीसगढ़ में भी इसी दर से मजदूरों को भुगतान किया जा रहा है। बावजूद इसके महाराष्ट्र में 238, गुजरात में यह 224, राजस्थान 220 और उत्तर प्रदेश में यह 201 रूपये के हिसाब से भुगतान की जा रही है। जबकि देश भर में सबसे ज्यादा मजदूरी 309 रूपये हरियाणा, 308 रूपये सिक्किम और 280 रूपये गोवा जैसा छोटे राज्यों में मिल रही है।
खेतिहर मजदूरी पर निर्भर है 70 लाख
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में करीब 70 लाख लोग खेतिहर मजदूरी पर निर्भर है। यह प्रदेश की कुल जनसंख्या का करीब 10 फीसद है। इनकी मजदूरी भी बमुश्किल 300 रूपये से ज्यादा नहीं होती है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में बढ़ती महंगाई को देखते हुए सरकार ने भी इनकी मजदूरी बढ़ाने पर भी ध्यान नहीं दिया है। यह अभी भी228 रूपये है।
असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है 2 करोड़
राज्य में 2 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे है। इनमें सीमांत लघु कृषक व कृषक श्रमिकों को छोड़ दिया जाए तो खनिकर्म में 0.64 लाख, विनिर्माण में 14.95 लाख, संनिर्माण में 8.97, व्यापार, होटल रेस्टोरेंट में 17.47, परिवहन में 3.95 लाख और अन्य में 11.78 लाख लोग कम मजदूरी के बाद भी अपनी आजीविका चलाने के लिये मजबूर है।
रोजगार के लिये दूसरे राज्यों भर निर्भर 7 लाख
परिश्रम के बाद भी वाजिब मजदूरी नहीं मिलने के कारण प्रदेश के करीब सात लाख मजदूर रोजगार के लिये दूसरे राज्यों में निर्भर है। बीते साल कोरोना संक्रमण में वापस लौटे इन श्रमिकों की संख्या सरकार ने 7 लाख 37 हजार बताई है। महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, तेलंगाना, पंजाब, कर्नाटक, गोवा, केरल, राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्यों से लौटे इन प्रवासी श्रमिकों व उनके परिवार के सदस्यों को लेकर सरकार ने दावा किया है कुल 13,10,186 हितग्राहियों को भारत आत्मनिर्भर योजना के अंतर्गत निशुल्क राशन उपलब्ध कराया गया है। वहीं 3,24,715 श्रमिकों को संबल योजना और 15,722 श्रमिकों को मध्य प्रदेश भवन संनिर्माण मण्डल की योजनाओ से लाभ दिलवाने का प्रयास किया गया है।
उच्च कुशल को 400 भी नहीं
मप्र में उच्च कुशल श्रमिकों के दिन भर का पारिश्रमिक का निर्धारण सरकार ने 400 भी नहीं किया है। श्रम विभाग के निर्देशानुसार इनकी प्रतिदिन की मजदूरी 398 रूपये सेे ज्यादा नहीं है। वहीं कुशल श्रमिक के मामले में यह 354 रूपये में अटक जाती है। जबकि अर्धकुशल 309 और अकुशल अभी भी कानूनन 280 रूपये ही पाने के हकदार है। वहीं दूसरी ओर सरकार ने संविदा और दैवेभो कर्मचारियों से इतर शासकीय कर्मचारियों के लिये सातवां वेतनमान के तहत दिया जाने वाला वेतन 2 हजार प्रतिदिन से कम नहीं किया है। जबकि राज्य में संविदा, कार्यभारित, आकस्मिक निधि से वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों से इतर नियमित कर्मचारियों की संख्या 6 लाख 47 हजार 795 ही है।