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मुंबई आतंकी हमले को 15 साल पूरे, जाने दहशतगर्दी मचाने वाले आतंकियों का क्या हुआ?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । मुंबई (Mumbai) में हुए 26/11 आतंकी हमले (Terrorist attacks) को रविवार (29 नवंबर) को 15 साल पूरे हो गए हैं। साल 2008 में हुए उस आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे। इस हमले में कई पुलिसकर्मी भी शहीद हो गए थे, जिसमें मुंबई पुलिस के तीन बड़े अधिकारी भी शामिल हैं। पाकिस्तान से आए आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (Terrorist organization Lashkar-e-Taiba) के 10 आतंकियों ने इस भीषण हमले को अंजाम दिया था। इनमें से एक आतंकी अजमल कसाब को जिंदा भी पकड़ा गया था, जिसे साल 2012 में फांसी दे दी गई। आज हम आपको बता रहे हैं कि सीमा पार आतंकी ने देश की आर्थिक राजनधानी में हमले के लिए कैसे साजिश रची थी?

आतंकियों ने ऐसे दिया दहशतगर्दी को अंजाम
तारीख-26 नवंबर, 2008… दिन-बुधवार (शाम का समय)। हर दिन की तरह मुंबई की व्यस्त सड़कों पर लोगों की चहलकदमी जारी थी। उधर, आतंकियों के मुंबई में घुसने का सिलसिला भी जारी था। कोलाबा के समुद्री तट पर एक बोट से दस आतंकी उतरे, छिपते-छिपाते हथियारों से लैस ये आतंकी कोलाबा की मच्छीमार कॉलोनी से मुंबई में घुसे और दो-दो गुटों में बंट गए।


इनमें से दो आतंकी यहूदी गेस्ट-हाउस नरीमन हाउस की तरफ बढ़े, जबकि दो आतंकी छत्रपति शिवजी टर्मिनल (सीएसटी) की तरफ। वहीं, दो-दो आतंकियों की टीम होटल ताजमहल की तरफ और बाकी बचे आतंकी होटल ट्राईडेंट ओबरॉय की तरफ बढ़ गए। इसके बाद इमरान बाबर और अबू उमर नामक आतंकी लियोपोल्ड कैफे पहुंचे और रात करीब साढ़े नौ बजे वहां एक जोरदार धमाका किया। जिसके बाद लोगों में अफरा-तफरी मच गई।

उधर, आतंकियों की एक दूसरी टीम (जिसमें कसाब और अबू इस्माइल खान शामिल थे) सीएसटी पहुंची और अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगी। देखते ही देखते इन आतंकियों ने 50 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं आतंकियों की तीसरी टीम होटल ताजमहल और चौथी टीम होटल ट्राईडेंट ओबरॉय पहुंच गई और यहां भी आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दी। होटल ताजमहल में तो कम, लेकिन होटल ट्राईडेंट ओबरॉय में 30 से अधिक लोग मारे गए।

इस हमले में आतंकियों से लोहा लेते महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे, पुलिस अधिकारी विजय सालस्कर, आईपीएस अशोक कामटे और कॉन्स्टेबल संतोष जाधव शहीद हो गए। कई घंटों तक चली मुठभेड़ में आखिरकार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड्स (एनएसजी) ने नौ आतंकियों को मार गिराया और 10वें आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया। फिर शुरू हुआ उससे पूछताछ का सिलसिला।

कसाब का कबूलनामा
जांच के दौरान कसाब ने बताया था कि उसका पूरा मोहम्मद अजमल आमिर कसाब है और वो 21 साल का है। वो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के उकाड़ा जिले के दिपालपुर का रहने वाला था। उसने बताया था कि वो सरकारी स्कूल में चौथी क्लास तक पढ़ा है। साल 2000 में स्कूल छोड़ने के बाद वो लाहौर में अपने भाई अफजल के पास रहने आ गया। 2005 तक उसने कई जगहों पर छोटे-मोटे काम किए, लेकिन उसी साल उसका अपने पिता के साथ झगड़ा हुआ और वो घर छोड़ कर लाहौर चला गया।

इसी दौरान उसकी मुलाकात मुजफ्फर खान से हुई। उसके बाद दोनों रावलपिंडी गए और वहां चोरी करने की योजना बनाई। लेकिन इसके लिए उन्हें एक बंदूक की जरूरत थी, लिहाजा वो लश्कर-ए-तैयबा के एक स्टॉल पर गए। वहां उन्हें बताया गया कि हथियार तो मिल सकता है, लेकिन उसे चलाना आना चाहिए। इसलिए कसाब ने हथियार चलाना सीखने के लिए लश्कर में शामिल होने का फैसला किया।

वहां उसे कई जगहों पर हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। तीन महीने की कड़ी ट्रेनिंग में उसे व्यायाम, हथियार चलाना, बम गिराना, रॉकेट लांचर और मोर्टार चलाना सिखाया गया। इसके अलावा उसे भारतीय खुफिया एजेंसियों के बारे में भी जानकारी दी गई। फिर हमले को अंजाम देने के लिए एक टीम बनाई गई और उसे भारत भेज दिया गया।

ट्रेनिंग के लिए लश्कर में शामिल हुआ था कसाब
पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी के पूर्व प्रमुख तारिक खोसा ने डॉन अखबार के लिए एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने कई खुलासे किए थे। उनके मुताबिक, जांच में ये बातें सामने आई थीं कि कसाब पाकिस्तान का ही रहने वाला था और उसकी प्राथमिक शिक्षा वहीं पर हुई थी। बाद में वो प्रतिबंधित आतंकी संगठन में शामिल हो गया था।

जांचकर्ताओं के मुताबिक, कसाब की ट्रेनिंग सिंध प्रांत के थाट्टा में एक ट्रेनिंग कैंप में हुई थी, जहां लश्कर के आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती है। मुंबई हमले में मिले हथियार और बम इसी ट्रेनिंग कैंप के थे।

आतंकियों को कराची से मिल रहा था निर्देश
तारिक खोसा ने यह भी खुलासा किया था कि आतंकियों ने मुंबई पहुंचने के लिए पाकिस्तानी नावों के साथ-साथ भारतीय नावों का भी इस्तेमाल किया था। आतंकियों ने मुंबई आने के लिए जिस बोट का इस्तेमाल किया था, उसे कराची के एक शॉप से खरीदा गया था। लश्कर के ही आतंकियों ने उसे खरीदा था। जांचकर्ताओं के मुताबिक, आतंकियों को कराची में बैठे उनके आकाओं द्वारा लगातार निर्देश दिया जा रहा था। हालांकि वो खुफिया तरीके से एक-दूसरे से संपर्क में थे।

हमले वाली रात की कहानी
मुंबई पुलिस के पूर्व एएसआई मोहन शिंदे बताते हैं कि वे उस समय आजाद मैदान पुलिस थाने में हेड कॉन्सटेबल के पद पर तैनात थे। जब आतंकी अबु इस्माइल और कसाब कामा अस्पताल में घुसने की कोशिश कर रहे थे, तब उन्होंने आतंकियों ने काफी देर तक बाहर ही उलझाए रखा, ताकि लोगों को अस्पताल से बाहर निकाला जा सके। इस दौरान उन्हें गोली भी लगी। उन्होंने भी कई फायर किए, लेकिन आतंकी बच निकलने में कामयाब रहे। हालांकि, इस मुठभेड़ में कांस्टेबल विजय खांडेकर और एसआई प्रकाश मोरे शहीद हो गए। इसके अलावा आतंकियों के हमले में एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, पीआई विजय सालसकर और अतिरिक्त कमिश्नर अशोक कामते भी शहीद हो गए।

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