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ना 370 बहाल होगा, ना ही चुनावी मैदान में उतरेंगी महबूबा, अब कौन संभालेगा पार्टी?

नई दिल्ली: पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती का एक बयान फिर चर्चा में है, चर्चा इसलिए ज्यादा है क्योंकि इस बार महबूबा ने जो ऐलान किया है वो न सिर्फ जम्मू कश्मीर की राजनीति को प्रभावित करने वाला है, बल्कि उनका अपना और अपनी पार्टी का भविष्य भी तय करने वाला है.महबूबा मुफ्ती ने एक दिन पहले ही ये ऐलान किया है कि जब तक कश्मीर में आर्टिकल 370 बहाल नहीं होता, तब तक वह चुनाव नहीं लड़ेंगी.

विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने साफ तौर पर ये घोषणा कर दी है. महबूबा मुफ्ती ने हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए विचार करने की बात कही है. महबूबा के इस बयान के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि महबूबा मुफ्ती के बाद पीडीपी की कमान कौन संभालेगा.

महबूबा के ऐलान के क्या हैं सियासी मायने ?
कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में गुपकार गठबंधन हुआ था. पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस समेत सात दल इसका हिस्सा बने थे. गठन के चार माह बाद ही डीडीसी चुनाव हुए और ये गठबंधन ध्वस्त नजर आया. इसके बाद से अपनी राजनीतिक अस्मिता बचाने के लिए संघर्ष कर रही पीडीपी और महबूबा मुफ्ती ने अकेले आर्टिकल 370 पर फोकस कर एक ऐसे एजेंडे को जन्म दिया जिससे उनकी छवि कट्टरपंथ की हो गई.

कश्मीर में ही ऐसे कई इलाके हैं जहां अपने बयानों से महबूबा मुफ्ती की साख में बट्टा लगा है. हालांकि कश्मीर की अवाम का एक हिस्सा है जो आर्टिकल 370 को लेकर महबूबा मुफ्ती को अपना नेता मानता है, मगर इनकी आबादी इतनी नहीं जो महबूबा मुफ्ती को वापस सरकार में ला पाएं. महबूबा ये जानती हैं कि यदि कश्मीर में चुनाव होते हैं तो उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, लेकिन फिर भी वे अपनी छवि को बरकरार रखना चाहती हैं. डीडीसी के चुनाव में ये नजर भी आया था जब पीडीपी 27 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर खिसक गई थी. पहले नंबर पर 74 सीटों के साथ भाजपा रही थी, दूसरे पर 67 सीटों के साथ नेशनल कांफ्रेंस, 49 निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे.

महबूबा चुनाव नहीं लड़ेंगी तो कौन होगा पीडीपी का चेहरा
महबूबा मुफ्ती जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद की राजनीतिक विरासत को सहेजने में नाकाम नजर आती हैं, समय-समय पर इसकी बानगी दिखती रही है. पीडीपी के मजबूत चेहरे माने जाने वाले अल्ताफ बुखारी, मुजफ्फर हुसैन बैग हौर हसीब द्राबू जैसे नेता अब पार्टी में नहीं हैं. ऐसा कहा जाता है कि इन नेताओं ने भी महबूबा मुफ्ती का साथ सिर्फ उनके कट्टरपंथी लहजे को लेकर छोड़ा है. पार्टी के लिहाज से देखें तो महबूबा मुफ्ती के बाद पार्टी में सबसे बड़ा कद अल्ताफ बुखारी का ही था, जो अब अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं.


क्या इल्तिजा मुफ्ती बनेंगी उत्तराधिकारी
महबूबा मुफ्ती का ये बयान अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती के लिए एक लांच पैड की तरह भी माना जा रहा है. ऐसा भी हो सकता है कि विधानसभा चुनावों में महबूबा मुफ्ती खुद चुनाव न लड़कर अपने इस ऐलान पर कायम रहें, लेकिन पार्टी को विधानसभा चुनाव में उतारकर इल्तिजा मुफ्ती को चेहरा बना दें. राजनीतिक विश्लेषक विष्णु शंकर कहते हैं कि भारतीय राजनीति में ये होता आया है, यहां किसी नेता के संन्यास लेने पर उनकी राजनीतिक विरासत पुत्र का पुत्री ही संभालते हैं.

महबूबा मुफ्ती ऐसा कर सकती हैं, क्योंकि इल्तिजा मुफ्ती काफी एक्टिव रहती हैं और कश्मीर के मसलों पर भी खुलकर विचार रखती रही हैं. आर्टिकल 370 हटाने के बाद जब अगस्त से अक्टूबर 2020 तक महबूबा मुफ्ती हिरासत में रहीं थीं तो पार्टी का काम काज इल्तिजा मुफ्ती ने ही संभाला था. हालांकि यदि महबूबा ऐसा करती हैं तो पार्टी को फायदा पहुंचने की बजाय नुकसान ज्यादा हो सकता है, क्योंकि पार्टी में जो शीर्ष नेता बचे भी हैं, वे परिवारवाद की दुहाई देकर पार्टी से किनारा कर सकते हैं.

लगातार कमजोर हो रही पीडीपी
कश्मीर की राजनीति में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी लगातार कमजोर हो रही है. अब तक दो बार राज्य की सत्ता में रहे इस दल का संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद के समय बोलबाला हुआ करता था, लेकिन 2016 में उनके इंतकाल के बाद से पार्टी की हालत खस्ता होती गई. फिलहाल पार्टी की कमान महबूबा मुफ्ती संभाल रही हैं, लेकिन कश्मीर के लोगों को उन पर वह भरोसा नहीं जो उनके वालिद मुफ्ती मोहम्मद सईद पर हुआ करता था. यही कारण है की पीडीपी के कई बड़े नेता भी महबूबा मुफ्ती का साथ छोड़ चुके हैं.

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