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नेतन्याहू की बाइडेन से फोन पर बात, लेकिन ठंडे पड़ गए तेवर, ईरानी अटैक के बाद भी चुप क्‍यों इजरायल?

नई दिल्‍ली(New Delhi) । अरब देशों से अकेले ही निपटने के लिए मशहूर रहा इजरायल (Israel)आखिर ईरान के मिसाइल (Iran’s missiles)और ड्रोन हमलों(drone attacks) के बाद भी ज्यादा आक्रामक (aggressive)क्यों नहीं है और बदले की बात पर चुप क्यों है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में फिलहाल यह सवाल अहम है। इजरायल पर आरोप था कि उसने सीरिया में ईरान के कौंसुलेट पर अटैक किया था और उसके टॉप जनरल समेत 12 लोगों को मार डाला था। इसका बदला लेने की धमकी देते हुए ईरान ने उस पर रातोंरात हमला किया और करीब 300 ड्रोन एवं मिसाइल दागे। इनमें से ज्यादातर को इजरायल ने आसमान में ही मार गिराया, लेकिन कुछ मामूली नुकसान भी हुआ है।


प्रतिष्ठा के लिहाज से ईरान का हमला चुनौतीपूर्ण

इजरायल की प्रतिष्ठा के लिहाज से ईरान का हमला एक चुनौती की तरह है। ईरान ने यह भी कहा है कि यदि आप फिर से पलटकर अटैक करेंगे तो फिर उसका भी माकूल जवाब मिलेगा। फिर भी इजरायल अब ज्यादा आक्रामक नहीं है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका ने सक्रिय तौर पर युद्ध में उतरने से इनकार कर दिया है। रविवार को इजरायल की वॉर कैबिनेट की मीटिंग थी। इसमें ज्यादातर सदस्यों ने ईरान से बदला लेने पर सहमति जताई। लेकिन यह बदला कब और कैसे लिया जाए, इसे लेकर स्पष्टता नहीं दिखी। बेंजामिन नेतन्याहू की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय वॉर कैबिनेट के कुछ लोगों ने कहा कि हमें बदला लेने के लिए हमला कर देना चाहिए।

गरम थे तेवर, पर बाइडेन से बातचीत के बाद पड़े ठंडे

इस मीटिंग के बाद फिर बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात की। जो बाइडेन ने स्पष्ट किया कि वह हथियारों और अन्य मदद से इजरायल के साथ हैं, लेकिन अमेरिका सक्रिय तौर पर उसकी ओर से युद्ध में नहीं उतरेगा। उसके बाद से ही इजरायल का रुख थोड़ा ठंडा पड़ गया है। दरअसल इजरायल की यह खासियत रही है कि वह अपनी जंग को वैश्विक रूप देने में सफल रहा है। आमतौर पर नाटो, जी-7 जैसे ग्रुप उसके साथ आते रहे हैं। लेकिन इस बार अमेरिका के दूरी बनाने से अन्य देशों का भी सक्रिय समर्थन मिलना मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में इजरायल नहीं चाहता कि एक साथ दो मोर्चे खुलें और वह हमास के अलावा ईरान से भी जंग लड़े।

हालात विकट हो जाएंगे, ऐसा क्यों बोल रहा अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि खुलेतौर पर यदि युद्ध हुआ तो पश्चिम एशिया के हालात विकट हो जाएंगे। यही वजह है कि अमेरिका के अलावा अरब देश भी दोनों को युद्ध से बचने की सलाह दे रहे हैं। किर्बी ने कहा कि अमेरिका की ओर से इजरायल की रक्षा के लिए मदद होती रहेगी, लेकिन युद्ध में हम शामिल नहीं होंगे। यही नहीं जॉर्डन के किंग ने भी अमेरिका से बात की है और कहा है कि इजरायल को युद्ध से बचने की सलाह दें। रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी के अलावा मिस्र, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी कह रहे हैं कि युद्ध अब यहीं थम जाना चाहिए।

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