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योग की नित्यता ही संसार को रख सकती है निरोग

सियाराम पांडेय ‘शांत’
दुनिया भर में सातवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की तैयारियां तेज हो गई हैं। भारत में योग दिवस को लेकर कुछ अलग ही उत्साह है। वर्ष 2015 में पहली बार 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था। तब भी योग दिवस सद्भाव और शांति की अवधारणा पर केंद्रित था। इस साल की अवधारणा है -योग के साथ रहें, घर पर रहें। जबकि वर्ष 2020 की विचारधारा रखी गई थी- घर में रहकर योग करें। मतलब यह लगातार दूसरा साल होगा जब कोरोना संक्रमण को देखते हुए योग दिवस को उत्सव की तरह नहीं मनाया जा सकेगा। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि योग की नित्यता ही संसार को निरोग रखती है। एक दिन के योग से लाभ तो होता नहीं, नुकसान जरूर होता है। हमें इस बात को भी अपने जेहन में रखनी होगी।
वर्ष 2016 में युवाओं से जुड़ने, वर्ष 2017 में स्वास्थ्य के लिए योग,2018 में शांति के लिए योग और वर्ष 2019 में जलवायु संरक्षण को लक्ष्य कर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था। इस तरह देखा जाए तो योग दिवस तीन बार स्वास्थ्य केंद्रित ही रहा और इसके बाद भी पूरी दुनिया स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही है। इसका मतलब तो यही हुआ कि दुनिया ने अन्य दिवसों की तरह योग दिवस पर ही योगाभ्यास करने का उत्सवी अनुष्ठान किया। बाकी दिनों में उसने खुद को योग से दूर ही रखा। 
योग के लिए लक्ष्य तय करने का तात्पर्य तो यही था कि हम साल के सभी 365 दिन योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएंगे। स्वस्थ रहेंगे, स्वच्छ रहेंगे और लंबा जीवन जीएंगे लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम दिवस विशेष पर ही योग की चिंता करते हैं और बाकी के दिनों में हमारी दिनचर्या ‘वही ढाक के तीन पात’ वाली होकर रह जाती है।  बिना योग के धरती का कोई मतलब है। योग केवल व्यायाम नहीं है। महर्षि पतंजलि ने चित्त वृत्तियों के निरोध को योग कहा है। उन्होंने योग के आठ अंग बताए हैं। यम,नियम,आसन,प्राणायाम ,प्रत्याहार,धारणा, ध्यान और समाधि। इन आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग हैं। यह और बात है कि वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलित हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।
योग सूत्र चार भागों में विभाजित है जिसे समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद तथा कैवल्यपाद कहा गया है। प्रथम पाद का मुख्य विषय चित्त की विभिन्न वृत्तियों के नियमन से समाधि के द्वारा आत्म साक्षात्कार करना है। द्वितीय पाद में यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का विवेचन है। तृतीय पाद में धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन है। चतुर्थ कैवल्यपाद मुक्ति की वह परमोच्च अवस्था है, जहां एक योग साधक अपने मूल स्रोत से एकाकार हो जाता है। दूसरे ही सूत्र में योग की परिभाषा देते हुए महर्षि पतंजलि कहते हैं- ‘योगाश्चित्त वृत्तिनिरोधः’। अर्थात योग चित्त की वृत्तियों का संयमन है। यम के अंतर्गत कायिक, वाचिक तथा मानसिक संयम की बात कही है। इसके लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय चोरी न करना, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे गुणों का अपनाने का मार्गदर्शन किया गया है। मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करते हेतु नियमों का विधान किया गया है। इनके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान का समावेश है। बाहर और भीतर दोनों की शुचिता की बात कही गई है। 
पतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है। नाड़ी साधन और उनके जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने में बहुत सहायक है। इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है। जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं जबकि समाधि चित्त की वह अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। 
समाधि भी दो तरह की बताई गई हैं- सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्तित्वबोधगत होती है जबकि असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है। इस लिहाज से देखा जाए तो योगाभ्यास जीवन में सतत चलने वाली प्रक्रिया है। योग छूकर निकल जाने की प्रक्रिया बिल्कुल भी नहीं है।
गीता में ज्ञानयोग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग, एकेश्वरवाद आदि की बहुत सुन्दर व्याख्या की गई है। मानसकार गोस्वामी तुलसीदास ने भी तो यही लिखा है कि करम प्रधान विस्व करि राखा। जो जस करहिं सो तस फल खाखा। वे यहीं नहीं रुकते आगे बढ़कर कहते हैं कि सकल पदारथ एहि जग माहीं, करमहीन नर पावत नाहीं। उनका इशारा कर्मयोग की ओर है। सत, रज,तम के योग से मानवीय वृत्तियों का जन्म होता है जबकि पंचमहाभूतों के योग से शरीर बना है। इसलिए योग ही ब्रह्म है। गीता में श्रेष्ठ मानव जीवन का सार बताया गया है। 
ऐसी मान्यता है कि भारत भूमि में मानव सभ्यता के उद्भव के साथ ही योग किया जा रहा है। योग विद्या में शिव को आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है। वेदों, उपनिषदों,पुराणों, स्मृति ग्रंथों, जैन धर्म और बौद्ध धर्मों में भी योग का वर्णन प्रभावी ढंग से मिलता है। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के पीछे एक कारण यह भी है कि सूर्य से इस दिन धरती वासियों को ज्यादा ऊर्जा मिलती है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लोगो का भी अपना महत्व है। यह विश्व मानवता के कल्याण, शांति और सद्भाव का परिचायक है। ‘लोगो’ में दोनों हाथों का जोड़ना सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना के मिलन का संकेत तो है ही, मन और शरीर, मनुष्य और प्रकृति तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए समग्र दृष्टिकोण के बीच एक सही सामंजस्य भी है। हरा पत्ता प्रकृति और नीला रंग अग्नि तत्व का प्रतीक है। भूरे रंग का पत्ता पृथ्वी का प्रतीक है। लोगो’ में सूर्य का होना ऊर्जा और प्रेरणा के स्रोत का प्रतीक है।
इसमें संदेह नहीं कि योग के माध्यम से मनुष्य प्रकृति से जुड़ता है। योग से मनुष्य की शारीरिक-मानसिक बीमारियां कम हो जाती हैं। वह नई ऊर्जा से भर जाता है। 
गीता के अध्याय 6 का श्लोक 16 कहता है कि
‘न अति अश्नतः तु योगः, अस्ति न च एकान्तम् अनश्नतः।
न च अति स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न एव च अर्जुन।’
अर्थात एकान्त में बैठकर विशेष आसन बिछाकर साधना करना वास्तव में श्रेष्ठ नहीं है। इसलिए हे अर्जुन तुम इसके विपरीत उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने वाली (योग) भक्ति न तो एकान्त स्थान पर विशेष आसन या मुद्रा में बैठने से तथा न ही अत्यधिक खाने वाले की और न बिल्कुल न खाने वाले अर्थात् व्रत रखने वाले की तथा न ही बहुत शयन करने वाले की तथा न ही हठ करके अधिक जागने वाले की सिद्ध होती है।
पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है । यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है। विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आएं एक अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं। उसके बाद 21 जून को “अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमन्त्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अन्दर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाया जा रहा है लेकिन जिस तरह इसे दैनंदिन दिनचर्या में शामिल करने की जरूररत थी, वैसा हम नहीं कर पाए हैं। इसलिए भी यह दिवस इस धरा के हर व्यक्ति से इतनी अपेक्षा तो रखता ही है कि जिसका एक अंग आसन व्यक्ति को ढेर सारे शारीरिक उपद्रवों से बचाता है, उसके सभी अंगों को जीवन में उतारा जाए तो व्यक्ति क्या से क्या न हो जाए।
-(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से जुड़े हैं)
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