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भगवान जगन्नाथ के रथ में एक भी कील का नहीं होता प्रयोग, जाने रथ से जुड़ी ये खास बातें

नई दिल्‍ली । आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा (Orissa) में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरूआत होने वाली है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा (Puri Jagannath Rath Yatra) इस बार 01 जुलाई, शुक्रवार से शुरू होगी। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। तीनों के रथ अलग-अलग होते हैं और भारी भीड़ द्वारा ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथों को खींचा जाता हैं।


कुछ रोचक तथ्य

  • भगवान जगन्नाथ श्रीहरि भगवान विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक हैं।
  • जगन्नाथ के रथ का निर्माण अक्षय तृतीया से शुरू होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ में एक भी कील का प्रयोग नहीं होता। यह रथ पूरी तरह से लकड़ी से बनाया जाता है।
  • वसंत पंचमी से लकड़ी के संग्रह का काम शुरू हो जाता है। रथ के लिए लकड़ी एक विशेष जंगल, दशपल्ला से एकत्र किए जाते हैं। भगवान के लिए ये रथ केवल श्रीमंदिर के बढ़ई द्वारा बनाया जाता है।
  • भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है और ये रथ अन्य दो रथों से थोड़ा बड़ा भी होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।
  • भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते है,बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ होता है।
  • ज्येष्ठ पूर्णिमा पर जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को 108 घड़े के जल से स्नान कराया जाता है। इस महान अवसर को सहस्त्रधारा स्नान कहा जाता है। जिस कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह पूरे साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है।
  • इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि 30 जून को सुबह 10:49 बजे से शुरू होकर 1 जुलाई को दोपहर 01:09 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि होने के कारण जगन्नाथ रथ यात्रा शुक्रवार 1 जुलाई से शुरू होगी।
  • भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर पर सात दिनों तक रहते हैं। फिर आठवें दिन आषाढ़ शुक्ल दशमी पर रथों की वापसी होती है। इसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
  • ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। जगन्नाथ मंदिर ही एक अकेला ऐसा मंदिर है जहां का प्रसाद ‘महाप्रसाद’ कहलाता है।महाप्रसाद को मिट्टी के 7 बर्तनों में रखकर पकाया जाता है। महाप्रसाद को पकाने में सिर्फ लकड़ी और मिट्टी के बर्तन का ही प्रयोग किया जाता है।
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