खरी-खरी

आउट करो ‘लिव इन’ को… बख्श दो शराफत के जीवन को

कानून के खंजर से अरमानों का खून…
जब सभ्यता का कत्ल हो जाएगा… मर्यादा की मौत पर मातम मनाया जाएगा… संस्कृति का चीरहरण खुलेआम नजर आएगा… तब रिश्तों का जीवन कहां रह जाएगा… जब संविधान कानून के हाथों नोंचा जाएगा… फड़तुस कानून बनाकर समाज को रौंदा जाएगा… वर्षों से चली आ रही सामाजिक संस्कृति, परिपाटी, सभ्यता और सम्मान की हत्या करने के लिए कानून ही खंजर उठाएगा तो कोई नराधम-हैवान-पिशाच और नीच किसी मासूम नासमझ को नोंचने-खसोटने और जी-भरकर लूटने के बाद उसके टुकड़े-टुकड़े कर फ्रिज में ठूंसने और जंगलों में बिखेरने की हिमाकत से कैसे बाज आएगा… फिर चैनलों पर हंगामा मचाया जाएगा… अखबारों की सुर्खियां बनाया जाएगा…लेकिन ऐसे नापाक लोगों की हिमाकतों के हथियार बने कानून पर कोई उंगली नहीं उठाएगा… जरा-जरा सी बात पर आसमान सर पर उठाने वाले समाजों के ठेकेदार फिल्मों का प्रदर्शन रुकवाने के लिए सडक़ों पर आ जाते हैं…अधर्मी बयानों पर हंगामा मचाते हैं… सामाजिक किरदारों तक का यदि चित्रण गलत नजर आए तो सवाल-जवाब करने लग जाते हैं…जो मंदिर-मस्जिद में चप्पल पहनने वाले तक को नोंच डालते हैं…वो अपने घर की बहन-बेटियों की नासमझी और नादानी का दुरुपयोग करने वाले कानून पर उंगली क्यों नहीं उठाते हैं…अदालतों ने लिव इन, यानी बिना किसी रिश्ते के, बिना किसी बंधन के, बिना परिवार की रजामंदी के दो लोगों को सामाजिकता और संस्कृति को नोंचते, साथ में रहनेे और युवतियों को नारीत्व तक सौंपने की मंजूरी दे डाली… और हम खामोश रह जाते हैं…फिर जब हमारे जिगर के टुकड़े लुट जाते हैं तो आंसू बहाते हैं…जिस बेटी को जीवनभर पालते हैं…उसके लिए कई अरमान दिल में पालते हैं…वो जब बगावत कर जाती है…गंदे कानून के हौसलों का हथियार हाथ में लिए परिवार का कलंक बन जाती है…परिवार की आंखों के सामने कोई दुष्ट रावण बनकर उनकी बेटी का हरण कर जाता है तो परिवार न केवल देखता रह जाता है, बल्कि समाज के तानों से हर दिन अपने दिल पर जख्म बनाता है…आखिर किस मंशा से यह कानून बनाया…जो रिश्ता बना ही नहीं उसमें बंधन कैसे होगा…जो रिश्ता ही नहीं है वो तो व्यभिचार ही होगा…जो कानून तलाक के लिए कड़े कानून बनाता है… दो न चाहने वालों पर जबरन रिश्ता बनाए रखने के लिए कानून लादता है…वो नापाक रिश्तों का सहभागी कैसे बन जाता है… आज सवाल केवल एक हैवान की हिंसा पर गुर्राने, आक्रोश दिखाने का नहीं, बल्कि ऐसे हैवानों के हथियार बने कानून पर आवाज उठाने का है…यह कानून बेटियों को बिगाड़ रहा है, वहीं युवकों को भी गंदे रास्ते पर डाल रहा है…सर्वोच्च अदालत लव जिहाद पर संज्ञान ले रही है…सामाजिकता को देश की धरोहर मान रही है…फिर क्यों ऐसे कानून को आंचल में पाल रही है, जो लव जिहाद को हवा देता हुआ आंधियों में बदल रहा है…जिसके तूफान में समाज में विध्वंस फैल रहा है…बदल डालो ऐसे कानून को और चौराहे पर लटकाओ उस पिशाच को, जिसने लव जिहाद के गुनाह के रास्ते पर चलते हुए लिव इन जैसे कानून के हथियार से पाप का रिश्ता बनाया और उस रिश्ते के नाम की चाहत पालने वाली मासूम को टुकड़ों में काटने का हैवानी कारनामा दिखाया…

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