आचंलिक

संजय गांधी अस्पताल में मरीज हो रहे परेशान

रीवा। विंध्य के सबसे बड़े संजय गांधी अस्पताल में इन दिनों दवाओं का टोटा है। आलम यह है कि कई महत्वपूर्ण दवाएं मरीजों को नहीं मिल रही हैं। दवाओं के अभाव से डाक्टर, स्टाफ एवं मरीज परेशान हैं। सबसे ज्यादा परेशानी गरीब मरीजों को हो रही है, क्योंकि वह बाहर से भी दवाओं की खरीदी नहीं कर पा रहे हैं। यह हालात सिर्फ संजय गांधी अस्पताल ही नहीं, बल्कि सुपर स्पेशलिटी व जीएमएच में भी बने हुए हैं।बता दें कि विंध्य के सबसे बड़े संजय गांधी अस्पताल में इन दिनों कई महत्वपूर्ण दवाओं के साथ-साथ ऐसी सामग्रियां भी नहीं है जो मरीजों के लिए समान्यत: उपलब्ध होनी चाहिए। आर्थो विभाग के रोगियों के लिए बैंडेज जैसी सामान्य सामग्री प्रबंधन नहीं उपलब्ध करा पा रहा है। इतना ही नहीं, रूई की कमी से भी अस्पताल जूझ रहा है। अस्पताल में शुगर की जांच करने वाली ग्लूको स्ट्रिप तक उपलब्ध नहीं हैं, इसके लिए मरीजों को भटकना पड़ रहा है। शुगर के लिए ग्लारिजिन इंसुलिन इंजेक्शन और मेरोपिनॉन जैसे एंटीबॉयटिक इंजेक्शन तक मरीजों को नहीं मिल पा रहे हैं। अब आप इस बात से ही अस्पताल की वर्तमान व्यवस्थाओं का अंदाजा लगा सकते हैं कि जब सामान्य दवाएं ही अस्पताल में नहीं हैं तो बड़ी दवाओं के लिए कितनी जद्दोजहद मरीजों को करनी पड़ती होगी।

इन दवाओं के लिए ज्यादा परेशानी
अस्पताल में वैसे तो कई महत्वपूर्ण दवाओं की कमी है, लेकिन 15 तरह के ऐसे इंजेक्शन जो महत्वपूर्ण होते हैं वह ही अस्पताल में नहीं मिल रहे हैं। उदाहरण के लिए ओंडम, अर्टीसुनेट मलेरिया के लिए, एसाईक्लोवीर क्यूएसटी मलेरिया के लिए, इप्टॉयन, पिप्जो, मेरोपिनॉन एंटीबॉयटिक इंजेक्शन, सेफ्रोजोन प्लस, ग्लारिजिन इंसुलिन, आईवीएनएसीएल, एनएस 100 एमएल, ग्लूको स्ट्रिप, सिरफ एंटासियल, रॉयल्स ट्यूब, बेंडेज, सिरिंज 20 एमएल जैसी दवाएं व सामग्री नहीं हैं।

जरूरी इंजेक्शन भी नहीं
अस्पताल में न तो सामान्य इंजेक्शन मिल रहे हैं और न ही इमरजेंसी में मरीजों को जीवन दान देने वाले महंगे ह्नूमन एल्बुमिन जैसे इंजेक्शन, जिनकी कीमत हजारों में हैं। लीवर रोगियों के लिए महत्वपूर्ण इन इंजेक्शन के लिए मरीज भटक रहे हैं। अस्पताल में उल्टी के लिए उपयोग किया जाने वाला ओंडम इंजेक्शन भी नहीं मिल रहा है।


मरीजों की जेब पर बोझ
जहां एक तरफ शासन-प्रशासन व मेडिकल कॉलेज प्रबंधन मरीजों को हर तरह की सुविधा प्रदान करने की बात कर रहा है वहीं दूसरी ओर आलम यह है कि मरीजों को दवाओं के लिए ही भटकना पड़ रहा है। मरीजों की जेब पर सीधा बोझ इन दिनों पड़ रहा है। सबसे अधिक आफत गरीब वर्ग के मरीजों को हो रही है। हालांकि अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि दवाओं को आर्डर किया गया है, धीरे-धीरे दवाएं अस्पताल पहुंच भी रही हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दवाओं को स्टॉक देखकर खत्म होने से पहले ही क्यों नहीं मंगाया जाता है। इसमें स्टोर प्रभारी की भी बड़ी लापरवाही बताई जा रही है। क्योंकि दवाओं के हिसाब किताब व उनकी कमी की जानकारी प्रबंधन को देना स्टोर व नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी है।

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