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तलाक-ए-हसन के खिलाफ उठी आवाज, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, जानिए क्या है तलाक का यह तरीका

नई दिल्‍ली । मुस्लिमों में तलाक (Divorce) के लिए समान कानून की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में एक याचिका दाखिल की गई है। इसमें मुस्लिमों (Muslims) में तलाक की खास प्रक्रिया तलाक-ए-हसन और अन्य सभी एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक प्रक्रियाओं पर रोक लगाने और इन्हें असांविधानिक करार देने की मांग की गई।

वकील अश्विनी कुमार दुबे के जरिये गाजियाबाद की एक मुस्लिम महिला ने याचिका दाखिल की है। इसमें उसने दावा किया कि वह तलाक-ए-हसन का शिकार हुई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र को लिंग-तटस्थ, धर्म-तटस्थ तलाक के समान आधार और सभी के लिए तलाक की समान प्रक्रिया की गाइडलाइन जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई।


याचिका में दलील दी गई कि तलाक-ए-हसन या इस तरह के अन्य एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक प्रक्रियाएं न तो मानवाधिकारों और न ही लिंग अनुपात के आधुनिक सिद्धांतों से मेल खाती हैं। यही नहीं, ये प्रक्रियाएं इस्लामी मान्यता का भी हिस्सा नहीं हैं। बहुत सारे इस्लामी देशों में भी इन पर प्रतिबंध है। याचिका में दावा किया गया है कि तलाक-ए-हसन के कारण बहुत सारी मुस्लिम महिलाओं और बच्चों की जिंदगी भयावह स्थिति में है।

संविधान के खिलाफ तलाक-ए-हसन
याचिकाकर्ता ने अपनी आपबीती का जिक्र कर बताया, 25 दिसंबर 2020 को उसकी शादी मुस्लिम रीति-रिवाज से संपन्न हुई थी। उसके पिता ने दहेज भी दिया, लेकिन बाद में उसके ससुराल वाले और दहेज की मांग करते रहे। उसे इस शादी से एक बेटा भी है। उसके ससुराल वाले दहेज न मिलने पर उसका मानसिक और शारीरिक शोषण करते।

बच्चा पेट में होने के दौरान उसे कई बार पीटा भी। इसके बाद जब उसके पिता ने और दहेज देने से इनकार किया तो उसके पति ने अपने वकील के जरिये तलाक-ए-हसन के तहत तलाक दे दिया। ये प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और यूएन कन्वेंशन का पूर्ण उल्लंघन है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ की धारा 2 को भी असांविधानिक घोषित करने की मांग
याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) कानून 1937 की धारा 2 को भी असांविधानिक घोषित करने की मांग की। दावा है कि यह धारा अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन करती है।

तलाक देने के तीन तरीके

  • पहला है तलाक-ए-अहसन: इस्लामिक विद्वानों के मुताबिक इसमें पति, बीवी को तब तलाक दे सकता है जब उसके पीरियड्स न चल रहे हों। इस तलाक के दौरान 3 महीने एक ही छत के नीचे पत्नी से अलग रहता है, जिसे इद्दत कहते हैं। यदि पति चाहे तो 3 महीने बाद तलाक वापस ले सकता है। अगर ऐसा नहीं होता तलाक हमेशा के लिए हो जाता है। लेकिन पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं।
  • दूसरा है तलाक-ए-हसन: इसमें पति तीन अलग-अलग मौकों पर बीवी को तलाक कहकर/लिखकर तलाक दे सकता है। वह भी तब, जब उसके पीरियड्स न हों। लेकिन इद्दत खत्म होने से पहले तलाक वापसी का मौका रहता है। तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी लागू रहती है, लेकिन बोलने के तुरंत बाद खत्म हो जाती है। इस तलाक के बाद भी पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं। लेकिन पत्नी को हलाला (दूसरी शादी और फिर तलाक) से गुजरना पड़ता है।
  • तीसरा है तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत: इसमें पति किसी भी समय, जगह, फोन पर, लिखकर पत्नी को तलाक दे सकता है। इसके बाद शादी तुरंत टूट जाती है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता है।
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