ब्‍लॉगर

हवा में घुलता जहर-सांसों पर कहर

– योगेश कुमार गोयल

दीवाली से कई दिन पहले ही दिल्ली-एनसीआर की हवा में जहर घुल चुका है। वायु प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ रहा है कि दमघोंटू हवा में लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। वैसे तो वर्तमान में मुंबई में भी वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ श्रेणी में दर्ज की गई है और वहां बीएमसी द्वारा बिगड़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं लेकिन देश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तो वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में है। दिल्ली हो या नोएडा अथवा आसपास के अन्य इलाके, एक्यूआई 300 के ऊपर जा चुका है तथा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में यह 400 के पार पहुंच जाएगा, तब लोगों को सांस लेने में काफी तकलीफ महसूस होने लगेगी। वैसे अभी से सांस संबंधी परेशानियों के साथ बड़ी संख्या में लोग अस्पताल पहुंचने लगे हैं। ‘सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च’ (सफर) के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गई है। सफर की स्थापना भारत में महानगरों के प्रदूषण स्तर और वायु गुणवत्ता को मापने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की पहल के तहत 2010 में की गई थी।


भारत मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता बहुत खराब रहेगी, जिसका कारण तापमान में कमी और पराली जलाने से होने वाला उत्सर्जन है। केंद्र सरकार के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (डीएसएस) ने पराली जलाए जाने की गतिविधियों में वृद्धि की आशंका जताई है, जिससे अगले कुछ दिनों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब होने की आशंका है। चिंता का विषय यह है कि हर साल दिल्ली सहित हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में इस सीजन में खेतों में बड़े स्तर पर पराली जलाई जाती है, जिसके चलते प्रदूषण का यही आलम देखने को मिलता है। यह बेहद चिंता की बात है कि किसानों से खेतों में पराली नहीं जलाए जाने के निरंतर अनुरोधों के बाद भी इस बार दशहरे के मौके पर तो जैसे किसानों में पराली फूंकने की होड़ सी लगी दिखी। खेतों में जलती पराली, विकास के नाम पर अनियोजित तथा अनियंत्रित निर्माण कार्यों के चलते बिगड़ते हालात, वाहनों और औद्योगिक इकाइयों के कारण अत्यधिक प्रदूषित हो रहे वातावरण के भयावह खतरों को हम इसी प्रकार साल-दर-साल झेलने को विवश हैं। हालांकि पर्यावरण तथा प्रदूषण नियंत्रण के मामले में देश में पहले से ही कई कानून लागू हैं लेकिन उनकी पालना कराने के मामले में पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग में सदैव उदासीनता का माहौल देखा जाता रहा है। देश की राजधानी दिल्ली तो वक्त-बेवक्त ‘स्मॉग’ से लोगों का हाल बेहाल करती रही है। न केवल दिल्ली-एनसीआर में बल्कि देशभर में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण का खतरा निरन्तर मंडरा रहा है। वायु, जल तथा अन्य प्रदूषण के कारण अब हर साल देशभर में लाखों लोग जान गंवाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक मानव निर्मित वायु प्रदूषण के ही कारण प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं।

अब देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां लोग धूल, धुआं, कचरा और शोर के चलते बीमार न हो रहे हों। पयार्वरण तथा मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर. बॉयड का कहना है कि विश्वभर में इस समय छह अरब से भी ज्यादा लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है और सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि इसमें करीब एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिनमें करीब छह लाख बच्चे भी शामिल होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वातावरण में बढ़ रहा वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी समस्यादायक स्थिति पैदा कर सकता है, जिससे रेसपिरेटरी, न्यूरोबिहेवियरल, कार्डियोवैस्कुलर तथा इम्यून सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। बहुचर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में बताया गया है कि वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों को बल्कि स्वास्थ्य को तमाम अन्य तरीकों से भी प्रभावित करता है। हवा की खराब गुणवत्ता के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और बैक्टीरियल संक्रमण के खतरे बढ़ सकते हैं। वायु की खराब गुणवत्ता व्यक्ति में ऑटिज्म, तनाव और स्ट्रोक जैसे तमाम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर सहित अन्य बीमारियों को भी बढ़ावा देती हैं। वायु प्रदूषण के कारण हवा में कई प्रकार की हानिकारक गैसें सम्मिलित हो जाती हैं, जिनसे सिरदर्द, खांसी, ज़ुकाम और एलर्जी जैसी आम समस्याएं भी देखने को मिलती हैं।

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट शिकागो (ईपीआईसी) के निदेशक और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन तथा उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन के बाद कुछ समय पहले कहा जा चुका है कि भारत की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जगहों पर रहता है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से ज्यादा है। देश में करीब 84 फीसदी व्यक्ति ऐसी स्थानों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है और भारत की एक चौथाई आबादी बेहद प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर है। चूंकि वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर इतना घातक होता है कि सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक इसकी जद में होते हैं, इसीलिए शिकागो विश्वविद्यालय के माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं कि वायु प्रदूषण पर अब गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि करोड़ों-अरबों लोगों को अधिक समय तक स्वस्थ जीवन जीने का हक मिल सके।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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