ब्‍लॉगर

धर्म गुरुओं की मुलाकातों के सियासी मायने!

– कुसुम चोपड़ा

एक कहावत है- बात करने से ही बात बनती है। ऐसा ही कुछ इन दिनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गजों की पंजाब के दो बड़े डेरा प्रमुखों से मुलाकात को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। हाल ही में डेरा राधा स्वामी ब्यास के प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात और फिर शुक्रवार को डेरा भैणी साहिब के प्रमुख उदय सिंह नामधारी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना, अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है।

माना जाता है कि पंजाब की सियासत में धार्मिक डेरे बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इन डेरों के लाखो-करोड़ों की संख्या में अनुयायी हैं। पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों में भी डेरे के अनुयायी हैं। डेरा प्रमुख जिस सियासी पार्टी को समर्थन देने का वादा करते हैं, उनके अनुयायी भी उसी पार्टी को अपना वोट देते हैं। लेकिन इस बार किसी भी डेरे ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले। यहां तक कि डेरा सच्चा सौदा ने तो यह तक कह दिया कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को लेकर चुप्पी साधने वाले नेताओं को अब हम देखेंगे। हालांकि, चुनाव से ठीक पहले गुरमीत राम रहीम को मिली फरलो के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि जल्द ही डेरा के प्रमुख सियासी समर्थन को लेकर कुछ फैसला लेंगे लेकिन उनकी तरफ से इसपर से पर्दा नहीं उठाया गया।

लेकिन इन दिनों जिन दो बड़े डेरा प्रमुखों ने देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के दो दिग्गज नेताओं के साथ मुलाकात की है, उसे लेकर सियासी पंडितों की अपनी-अपनी राय है। हालांकि, डेरा राधा स्वामी ब्यास और डेरा भैणी साहिब की बात करें तो ये दोनों ही आज तक पंजाब में कांग्रेस को ही समर्थन देते आए हैं लेकिन इस बार अंदरूनी कलह के चलते कांग्रेस की जो हालत है, वह किसी से छिपी नहीं है। इसे देखते हुए तो यही लग रहा है कि इन डेरों ने भी अपना पासा पलट लिया है। उधर, भाजपा भी शायद इस बार इसी मौके का फायदा उठाना चाहती है। हालांकि, वह अच्छी तरह से जानती है कि इन मुलाकातों का कुछ खास असर नहीं होने वाला। हां इतना जरूर हो सकता है कि सूबे में कुछ सीटों में इजाफा हो जाए लेकिन जहां तक सत्ता में आने का सवाल है तो वह तो फिलहाल दूर की ही कौड़ी लगती है।

इन दो डेरा प्रमुखों के अलावा शुक्रवार को सिख समुदाय के कुछ बड़े प्रतिनिधियों ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। अब जब पंजाब में वोटिंग शुरू होने में कुछ ही घंटे बचे हैं, ऐसे में इस मुलाकात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस मुलाकात के बाद सिख समुदाय के प्रतिनिधियों ने मोदी सरकार की ओर उनके समुदाय के लिए किये जा रहे कार्यों की जमकर सराहना की। प्रतिनिधियों ने कहा कि प्रधानमंत्री को सिख धर्म की गहरी समझ है, उन्होंने विश्व मंच पर देश और सिख समाज का मान बढ़ाया। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु गोबिन्द सिंह के साहबजादों की शहादत के सम्मान में 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मनाने का जो निर्णय किया है, उसे लेकर भी सिख समाज में काफी खुशी का माहौल है। सिख प्रतिनिधियों की यह मुलाकात भी ऐसे में काफी अहम हो जाती है।

इन मुलाकातों के बाद सियासी गलियारों में चर्चा है कि डेरा राधा स्वामी ब्यास और डेरा भैणी साहिब इस बार भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो अभी तक पंजाब में सत्ता के लिए तरस रही भाजपा के लिए कुछ हद तक चीजें आसान हो सकती हैं।

6 डेरों का पंजाब चुनाव पर पड़ सकता है सीधा असर
पंजाब में यूं तो छोटे-बड़े 980 डेरे हैं, लेकिन इन सबमें 6 ऐसे डेरे हैं, जिनके न सिर्फ लाखों-करोड़ों लोग अनुयायी हैं, बल्कि इनका राजनीतिक रसूख भी काफी बड़ा है। पंजाब में एक चौथाई आबादी किसी न किसी डेरे से ताल्लुक रखती है। इन डेरों में- डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी सत्संग ब्यास, नूरमहल डेरा (दिव्य ज्योति जागृति संस्थान), संत निरंकारी मिशन, नामधारी संप्रदाय और डेरा सचखंड बल्लां शामिल हैं। ये डेरों का प्रभाव इसी बात से समझा जा सकता है कि चुनाव के दौरान ये डेरे 68 विधानसभा क्षेत्रों में सत्ता में उलट-पलट करने की ताकत रखते हैं। हालांकि, पिछले चुनावों से सबक सीखते हुए इस बार डेरे किसी विशेष पार्टी के पक्ष में खुलकर बोलने से बच रहे हैं।

बात करें प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात करने वाले राधा स्वामी सत्संग ब्यास और भैणी साहिब डेरों की तो डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास के इस समय करीब 20-25 लाख तो वहीं डेरा भैणी साहिब के भी लगभग 15 लाख अनुयायी हैं। वहीं दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व प्रमुख और वर्तमान में भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा भी सिख प्रतिनिधियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंचे, जिन्हें लेकर हर कोई इन धार्मिक मुलाकातों के सियासी मायने निकालने में जुटा है। माना जा रहा है कि शनिवार शाम तक डेरे सियासी पार्टियों को समर्थन देने का ऐलान कर सकते हैं, ऐसे में इन धर्मगुरुओं की मुलाकातें अपने आप काफी कुछ बयां कर रही हैं।

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