ज़रा हटके

प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का प्रकृति पर गंभीर असर, 100 सालों में विलुप्त हुए ये 15 जीव

नई दिल्ली । बड़ा जानवर (animals) छोटे को खाता है. प्रकृति (Nature) की यही प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है. लेकिन इंसान इकलौता ऐसा जीव है, जिसकी लालच की वजह से कई जानवर खत्म हो गए. जंगल काटे गए. शिकार किया गया. प्रदूषण (pollution) बढ़ा. जलवायु परिवर्तन (Climate change) हुआ. वैश्विक गर्मी बढ़ी. इसलिए 100 सालों में 15 जीव खत्म हो गए. अब पृथ्वी पर इनका नामोनिशान नहीं मिलता. इसी में आता है पैराडाइज पैरट (Paradise Parrot). ये 1920 के दशक में विलुप्त हो गया. 1927 के बाद से देखा नहीं गया. ये दीमक के बमीठे में अपना घोंसला बनाते थे. अब न बमीठे बचे न इनका घर. इनके विलुप्त होने की बड़ी वजह थी बढ़ता चारागाह, जंगलों की कटाई, जंगल की आग, शिकार, कुत्ते और बिल्लियों द्वारा मारा जाना.

सिलियन वूल्फ (Sicilian Wolf) भी 20 के दशक में ही खत्म हो गए. यह ग्रे वूल्फ की ही एक उप-प्रजाति थी, जो 1924 में खत्म हो गई. ये सिसली और उसके आसपास 21,500 सालों से रह रहे थे. लेकिन 20वीं सदी में विलुप्त हो गए. वजह आजतक पता नहीं चली. लेकिन आशंका सिर्फ शिकार की ही है.

तस्मानियन टाइगर (Tasmanian Tiger) 30 के दशक में विलुप्त होने वाले ऐसे जीव थे, जिन्हें आखिरी बार 1936 में देखा गया था. उसके बाद ये कभी नहीं दिखे. आगे से ये किसी भेड़िये की तरह दिखते थे. जबकि शरीर के पिछले हिस्से पर बाघों जैसी पट्टियां बनी होती थीं. ये आमतौर पर ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में ही पाए जाते थे. मुख्य रूप से शिकार ही वजह थी. लेकिन कुछ जंगली जीवों ने भी इनका शिकार किया था. जिससे आबादी कम होती चली गई. इसके अलावा बीमारियों ने भी इन तस्मानियन टाइगर्स की जान ले ली.


जेरसेस ब्लू तितली (Xerces Blue Butterfly) को आखिरी बार 1941 में देखा गया था. इसके बाद यह खूबसूरत तितली दुनिया से लापता हो गई. इसके विलुप्त होने की असली वजह इंसानों द्वारा विकसित किए जा रहे शहर थे. इसके पंख चमकीले नीले होते थे, जिन पर सफेद बिंदु बने होते थे.

जापानीज सी लायन (Japanese Sea Lion) को 50 के दशक में विलुप्त हो चुके थे. हालांकि इनका एक आखिरी जीव 1970 में अंतिम बार देखा गया था. ये समुद्री लायन जापानी आर्किपेलागो और कोरियन प्रायद्वीप के आसपास ही रहते थे. ये रेत पर ब्रीडिंग करते थे. इंसानों ने इनका शिकार 1900 तक बड़े धड़ल्ले से किया. जिसकी वजह से इनकी मात्रा कम होती चली गई. फिर ये विलुप्त हो गए.

क्रेसेंट नेल टेल वालाबी (Crescent nail-tail wallaby) भी 50 के दशक में धरती से गायब हो गए. इन्हें वोरोंग भी बुलाया जाता था. ये छोटे मार्सूपियल जीव थे. घास खाते थे. झाड़ियां खाते थे. आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम और मध्य ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते थे. इन्हें आखिरी बार 1956 में देखा गया था. इसके बाद ये कभी नहीं दिखे. शहरों के बनने से इनके घरों का खात्मा हो गया. ये नई जगह पर खुद को बचा नहीं पाए. इसलिए जीव खत्म हो गए.

बूबल हार्टेबीस्ट (Bubal Hartebeest) भी 50 के दशक में ही खत्म हो गया था. ये आमतौर पर सहारा रेगिस्तान के उत्तरी इलाके में पाया जाता था. यह एक एंटीलोप था. ये रेत के रंग का ही होता था. मोरक्को और मिस्र में भी दिखते थे. 19वीं सदी में इनकी संख्या तेजी से घटने लगी. वजह थी कोलोनियल मिलिट्री द्वारा इनकी पूरी आबादी को मार डाला गया. कहते हैं कि आखिरी जीव को 1902 में मारा गया था. लेकिन कुछ जीव बच गए थे, जो 20वीं सदी में आते-आते खत्म हो गए. क्योंकि ये इंसानों के बढ़ते वर्चस्व में जीवित नहीं रह पाए.

काकावाही (Kakawahie) पक्षी को आखिरी बार 1963 में देखा गया था. ये शहद खाते थे. आमतौर पर हवाई द्वीप पर ही मिलते थे. यह पक्षी 5.5 इंच लंबा होता था. सुंदर नारंगी रंग में रंगा हुआ. या यूं कहें कि स्कारलेट रेड कलर में. जंगलों का नाश होने से ही इन पक्षियों का घर बिखर गया. मच्छरों की वजह से पक्षियों को बीमारियों ने जकड़ लिया. शहरों के बनते ही कुत्ते और बिल्लियां इनका शिकार करने लगे.

कैस्पियन टाइगर (Caspian Tiger) को 1970 में ही विलुप्त मान लिया गया था. लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा 2003 में की गई थी. ये बाघ आमतौर पर पूर्वी तुर्की, उत्तरी ईरान, मेसोपोटामिया, कैस्पियन सागर के आसपास का इलाका, मध्य एशिया से लेकर अफगानिस्तान तक मिलते थे. इन्हें चीन, रूस और यूक्रेन में भी देखा जाता था. ये साइबेरियन और बंगाल टाइगर के बीच की आकृति के होते थे. इन्हें बालखाश टाइगर, हिरकैनियन, तुरैनियन, मजनदारन टाइगर भी बुलाया जाता था. ये इंसानों द्वारा शिकार किए जाने की वजह से समाप्त हो गए.

यूनान लेक न्यूट (Yunnan Lake Newt) भी 70 के दशक में खत्म हो गए. ये एक खास तरह के सैलामैंडर यानी छिपकलियां होती थीं जो चीन के यूनान प्रांत में पाई जाती थीं. 1979 के बाद इन्हें कहीं भी नहीं देखा गया. माना जाता है कि इनका रहवास खोने, प्रदूषण और अन्य प्रजातियों के जीवों के आने की वजह से ये विलुप्त हो गए.

गोल्डेन टोड (Golden Toad) तो 80 के दशक में खत्म हुए. सुनहरे रंग के इन मेंढकों को आखिरी बार 1989 में देखा गया था. ये आमतौर पर कोस्टा रिका के क्लाउड फॉरेस्ट में पाए जाए थे. इनके विलुप्त होने के पीछे की वजह है तेजी से होता जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और फंगस इन्फेक्शन.

रोटंड रॉकस्नेल (Rotund Rocksnail) 90 के दशक में खत्म हो गए. यह घोंघे की एक प्रजाति थी, जो सिर्फ अमेरिका में पाई जाती थी. अब यह विलुप्त हो चुकी है. इसके खत्म होने की कोई खास वजह तो कहीं नहीं बताई गई है लेकिन माना जाता है कि जलवायु परिवर्तन से इसे काफी नुकसान हुआ है.

पाइरीनियन आइबेक्स (Pyrenean Ibex)… ये बेचारे तो साल 2000 से 2003 के बीच खत्म हुए हैं. आमतौर पर फ्रांस के कैंटाब्रियन माउंटेंस और उत्तरी पाइरीनीस में पाए जाते थे. इन्हें भी शिकार करके खत्म कर दिया गया. इनकी सींगों, खालों और हड्डियों के लिए इनका शिकार किया जाता था. इसके अलावा इनके इलाके में अन्य घास चरने वाले जीवों के आने की वजह से चारा भी कम हो गया था.

पिंटा जायंट टॉरटॉयस (Pinta Giant Tortoise) तो दस साल पहले ही विलुप्त हुए हैं. इन्हें आखिरी बार 2012 में देखा गया था. ये सिर्फ और सिर्फ इक्वाडोर के पिंटा आइलैंड में पाए जाते थे. जलवायु परिवर्तन की वजह से इनके रहवास को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा है. 17वीं सदी से इनके मांस के लिए इनका शिकार किया जाता था. पिंटा आईलैंड पर बकरियों के आने की वजह से घास और झाड़ियों की कमी होने लगी. इनका खाना भी कम पड़ गया.

वेस्ट अफ्रीकन ब्लैक राइनोसेरोस (West African Black Rhinoceros) को आखिरी बार 2011 में देखा गया था. उसके बाद से 11 साल हो गए, इस जीव का वंशज नहीं दिखाई दिया है. यह पश्चिमी अफ्रीका में पाया जाने वाला काले रंग का गैंडा था. इसका खात्मा ज्यादा शिकार की वजह से हुआ है.

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