उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

ऑपरेशन के लिए निजी चिकित्सक बुलाने पड़ रहे

  • नाम का रह गया आगर का सरकारी अस्पताल..
  • एक प्रसूता के ऑपरेशन के लिए जिला अस्पताल प्रबंधन को प्रायवेट हॉस्पिटल से बुलाना पड़ा डॉक्टर

आगर मालवा। जिले का सरकारी अस्पताल और उसमें किए जाने बेहतर उपचार के दावे अब केवल दावे रह गए हैं, हकीकत यह है कि यहां का ढर्रा पूरी तरह बिगड़ चुका है। गत दिवस अस्पताल में गंभीर अवस्था में आई एक प्रसूता का सर्जिकल उपचार जिला अस्पताल के चिकित्सक नहीं कर पाए, इसके लिए प्रायवेट अस्पताल से डॉक्टर को बुलाना पड़ा और फिर ऑपरेशन हो पाया। जानकारी के अनुसार नलखेड़ा के ग्राम तांखला की रहने वाली भूरीबाई को प्रसव दर्द उठने के बाद सर्जिकल उपचार की जरुरत पड़ी तो जिला अस्पताल में मौजूद चिकित्सकों केस संभल नहीं पाया और मजबूरी में जिला अस्पताल प्रबंधन को महिला के ऑपरेशन के लिए बाहर से निजी चिकित्सकों को बुलाना पड़ा, महिला का ऑपरेशन जिला अस्पताल में मौजूद और बाहर से बुलाये गए चिकित्सकों ने किया। जिला अस्पताल की इस दयनीय स्थिति को देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि बदहाल चिकित्सीय व्यवस्थाओं के बीच किस तरह मरीजों को अपनी जान जोखिम में डालकर जिला अस्पताल में उपचार करवाना पड़ रहा है। बता दे कि वर्तमान में जिला अस्पताल में महिला रोग विशेषज्ञ पदस्थ हैं उसके बावजूद जिला अस्पताल प्रबंधन ने बाहर से महिला चिकित्सकों को बुलाकर प्रसूता का आपरेशन करवाया।


सबसे बड़ी बात यह है कि जिला अस्पताल में पदस्थ आरएमओ डॉ. शशांक सक्सेना की पत्नी डॉ. अपर्णा सक्सेना जो खुद निजी अस्पताल संचालित करती हैं उनको यहां महिला के ऑपरेशन में सहयोग के लिए बुलाया गया, इसके अतिरिक्त जनरल सर्जन डॉ. ईश्वर नामक एक अन्य चिकित्सक को ऑपरेशन के लिए बुलाया गया। इस प्रकार बाहर से चिकित्सकों को बुलाने पर अस्पताल का अन्य स्टाफ भी हैरान है। 5 माह पूर्व जिला अस्पताल में प्रसूता महिलाओं के सर्जिकल ऑपरेशन भी हुआ करते थे लेकिन इस दौरान आरएमओ डॉ. शशांक सक्सेना व स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रोहित चौधरी के मध्य विवाद हो गया था। इस विवाद के बाद से ही जिला अस्पताल के प्रसूति वार्ड में ऑपरेशन होना बंद हो गया था तब से प्रसूता महिला का कोई गंभीर केस आता तो इसे रैफर कर दिया जाता हैष्। परिजन रैफर के दौरान उज्जैन ले जाने की बजाय आगर के निजी अस्पतालो में प्रसूता महिला को ले जाते । ऐसे में चिकित्सकों की इस लड़ाई में निजी अस्पतालों को खूब फायदा हो रहा हैं।

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