भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

एक चुनाव में दो आरक्षण पर सवाल

  • कांग्रेस का आरोप राज्यपाल को नहीं है अध्यादेश लाने का अधिकार

भोपाल। प्रदेश में पंचायत चुनाव की घोषणा के साथ ही चुनाव प्रक्रिया पर विवादों में पड़ गई है। कांग्रेस ने चुनाव प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए कहा है कि राज्यपाल को परिसीमन निरस्त कर संवैधानिक नियमों को दरकिनार कर अध्यादेश लाने का अधिकार नहीं है। साथ ही कांग्रेस ने एक चुनाव में दो आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरपंच एवं जनपद के चुनाव पुरानी आरक्षण प्रक्रिया से हो रहे हैं, तो फिर सिर्फ जिला पंचायत अध्यक्षों के लिए नया आरक्षण क्यों कराए जा रहे हैं। पूर्व पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल ने कहा कि पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस सीधे तौर पर कोर्ट नहीं जाएगी, लेकिन कोर्ट जाने वालों को समर्थन देगी।



पूर्व पंचायत मंत्री पटेल ने कहा कि संवैधानिक परंपराओं और नियमों को ताक पर रखकर मध्यप्रदेश में गलत तरीके से पंचायत चुनाव कराने की घोषणा की गई है। पटेल ने कहा कि संविधान और पंचायत राज की भावना को अनदेखा करते हुए तानाशाही तरीका अपनाया गया है। सरकार पंचायत चुनाव को दलीय चुनाव में बदलना चाहती है। परिसीमन को तानाशाही तरीके से रद्द करने का कोई कारण नहीं बताया गया। पंचायतों को भी नहीं मालूम कि परिसीमन रद्द हो चुका है। उन्होंने कहा कि जब पेसा अधिनियम लागू कर दिया गया है तो अनुसूचित क्षेत्रों में क्या स्थिति होगी यह किसी को मालूम नहीं है। बिना तैयारी के चुनाव की घोषणा से नए मतदाताओं को वोट डालने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।

राज्यपाल को अध्यादेश का अधिकार नहीं
राज्यपाल केवल उन्हीं विषयों पर अध्यादेश ला सकते हैं जिन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है। भारतीय संविधान इस देश का सर्वाेच्च कानून है जिस के प्रावधानों को बदलने, छेड़छाड़ करने हेतु संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के दायरे से परे जाकर अध्यादेश लाना असंवैधानिक है। संवैधानिक प्रावधानों को बदलने हेतु अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है।

15 दिन में कराने होंगे अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के चुनाव
राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव को लेकर यह व्यवस्था दी है कि चुनाव परिणाम घोषित होने के 15 दिन के भीतर जिला पंचायत एवं जनपद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्षों के चुनाव कराने होंगे। यह व्यवस्था इसलिए की गई है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के चुनाव में अनावश्यक विलंब न हो। वर्ष 2014 में जिला और जनपद के अध्यक्षों का चुनाव करने के लिए 1 महीने का समय तय था, लेकिन उस दौरान खासतौर पर राजनीतिक दलों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अनियमितताएं सामने आई थी। इसमें खासतौर पर चुने हुए सदस्यों की खरीद-फरोख्त ज्यादा हुई थी। इस स्थिति को देखते हुए चुनाव पूरी पारदर्शिता से हों इसलिए राज्य निर्वाचन आयोग ने यह बदलाव किया है।

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