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यूक्रेन में भारतीय की मौत के बाद बचाव अभियान में देरी के आरोपों से सरकार पर उठ रहे हैं सवाल

नई दिल्ली: अगस्त 1990 में वीपी सिंह सरकार (VP Singh Government) ने भारतीय इतिहास के सबसे सफल रेस्क्यू मिशन में कुवैत से 1,70,000 भारतीयों को एयरलिफ्ट (Airlift) करने में कामयाब हासिल की थी. जिसके बाद कम से कम छह बड़े रेस्क्यू मिशन भारत ने चलाए हैं, जिनमें से तीन रेस्क्यू ऑपरेशन मोदी सरकार ने चलाया और इस वजह से दुनियाभर में उनकी काफी सराहना भी हुई. ऑपरेशन गंगा (Operation Ganga) के तहत यूक्रेन से भारतीयों को बाहर निकालने के लिए नियुक्त किए गए चार मंत्रियों में से एक वीके सिंह भी हैं, जो ऑपरेशन राहत के हीरो थे, जब 2015 में यमन में फंसे हजारों भारतीयों को वापस लाया गया था.

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि यूक्रेन में फंसे छात्रों को बचाने में सरकार की उतनी ही तत्परता क्यों नहीं दिख रही है? 32 साल पहले इराक के कुवैत पर आक्रमण की तुलना यूक्रेन पर हुए आक्रमण के साथ करना जरूरी है. यूक्रेन संकट पर मोदी सरकार भी बिल्कुल उसी तरह फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है जैसा कुवैत संकट के दौरान वीपी सिंह सरकार को करना पड़ा था. जब गंभीर कूटनीतिक जरूरतों की वजह से भारत इराक को आक्रमणकारी कहने से बचता रहा.

इसी तरह, अपनी भू-रणनीतिक चिंताओं की वजह से मोदी सरकार रूस को आक्रमणकारी कहने से बच रही है. कुवैत में फंसे भारतीयों की जान की चिंता और इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की वजह से भारत सरकार को कूटनीतिक रुख अख्तियार करना पड़ा था. इसके बावजूद, सरकार ने 1,70,000 भारतीयों को वहां से बाहर निकालकर इतिहास रच दिया था. हालांकि, मोदी सरकार के सामने चुनौती थोड़ी कम मुश्किल है; क्योंकि वीपी सिंह सरकार की तुलना में इसे लगभग 10 फीसदी भारतीयों – ज्यादातर मेडिकल छात्रों – को यूक्रेन से निकालना है. इसके अलावा, मोदी सरकार के पास वहां फंसे लोगों को यूक्रेन के पड़ोसी मित्र देशों से भी वापस लाने का विकल्प मौजूद है, जो कुवैत पर आक्रमण के दौरान मुमकिन नहीं था.

आई के गुजराल का कूटनीतिक कारनामा
एक बड़ी चीज जो वीपी सिंह सरकार के पास थी लेकिन मोदी सरकार के पास नहीं है, वो था अनुभवी राजनयिक और तत्कालीन विदेश मंत्री आईके गुजराल का अनुभव. ऐसे मुश्किल वक्त में जब भारत सरकार कुवैत पर आक्रमण की निंदा तक नहीं कर सकी तब सद्दाम हुसैन के साथ शांति स्थापित करने की पहल गुजराल ने की थी. भारत की चरमराती अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर इराक और दूसरे अरब देशों पर निर्भर थी. इसलिए, सद्दाम हुसैन की खुली निंदा कर उन्हें नाराज करना समझदारी भरा फैसला नहीं माना जाता.


हालांकि सरकार पहले भी विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाई थी, लेकिन मुश्किल वक्त में दूसरे देशों से अपने नागरिकों को निकालने में कुवैत ऑपरेशन एक तरह की मिसाल बन गया. इसके बाद जो भी रेस्क्यू मिशन हुए, भारतीय सरकार ने उसी पैटर्न को फॉलो करने की कोशिश की और इन मिशन से रेस्क्यू किए गए लोगों के साथ-साथ पूरी भारतीय आबादी का भी दिल जीता.

देरी से कार्रवाई
हालांकि यूक्रेन संकट के दौरान मोदी सरकार थोड़ी देर से ही सही लेकिन उसी तरह के रेस्क्यू ऑपरेशन की तैयारी कर रही है. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण और ऑपरेशन गंगा की घोषणा के बीच छह दिनों से फंसे हुए भारतीय छात्रों की तकलीफ ने देशवासियों के अंदर काफी आक्रोश पैदा किया है. मदद के लिए रोते छात्रों के वीडियो क्लिप और सरकार पर उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं करने के आरोपों से मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा है. लेकिन इस स्थिति को संभाला जा सकता है. सरकार के पास अभी भी फंसे छात्रों का विश्वास जीतने और अपनी और पिछली सरकारों के कारनामों को दोहरा कर अपनी क्षमता पर संदेह करने वालों को चुप कराने का वक्त है. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि चार केंद्रीय मंत्रियों को शामिल करके ऑपरेशन गंगा को कितनी सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाता है.

चुनाव में संकट का इस्तेमाल
यह काफी बुरा था कि मोदी सरकार यूक्रेन से भारतीय छात्रों को बचाने के लिए काफी देर तक टालमटोल करती रही. इससे भी बुरी बात यह है कि उत्तर प्रदेश से करीब 4,500 किलोमीटर दूर युद्ध पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वे चुनावी फायदे के लिए इस संकट का लाभ उठा रहे हैं. आक्रमण के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी भाषणों में मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता पर मोदी का जोर और राज्य में बहने वाली पवित्र नदी के नाम पर इस रेस्क्यू ऑपरेशन को नाम दिए जाने से उनके इरादों पर कई सवाल खड़े हो गए. क्योंकि पिछले किसी भी रेस्क्यू ऑपरेशन का नाम किसी भी धार्मिक प्रतीक से जुड़ा हुआ नहीं था.

दूसरे बचाव अभियान
2015 यमन संकट: 2015 के दौरान यमन संकट में भी मोदी सरकार की प्रतिक्रिया तेज और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की थी. ऑपरेशन राहत ने दुनिया भर में प्रशंसा पाई क्योंकि सरकार ने इस मिशन के जरिए न केवल भारतीयों को वापस लाया बल्कि 41 देशों के विदेशी नागरिकों को भी बचाया. यमन सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच संघर्ष में यमन में हजारों भारतीय फंसे हुए थे. सऊदी अरब द्वारा घोषित नो-फ्लाई जोन के कारण यमन हवाई मार्ग से नहीं पहुंचा जा सकता था. इसलिए शुरुआत में भारत ने समुद्र के रास्ते लोगों को बाहर निकाला. अगले कुछ हफ्तों में, भारत ने 960 विदेशी नागरिकों के साथ लगभग 4,640 भारतीयों को बचाया.

नेपाल में भूकंप: उसी साल, मोदी सरकार एयर फोर्स और नागरिक विमानों द्वारा 5,000 से अधिक भारतीयों को नेपाल से वापस लाई थी. ऑपरेशन मैत्री भारत सरकार और भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किया गया संयुक्त राहत और बचाव अभियान था, जिसे नेपाल में 2015 के भूकंप के झटकों के बाद अंजाम दिया गया था. भूकंप के 15 मिनट के भीतर यह ऑपरेशन शुरू हो गया था. भारत पहला देश था जिसने पूर्ण बचाव और राहत अभियान शुरू किया. भारतीय सेना ने अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और जर्मनी के 170 विदेशी नागरिकों को सफलतापूर्वक वहां से निकाला.

2011 लीबिया संघर्ष: 2011 में ऑपरेशन सेफ होमकमिंग ने संघर्षग्रस्त लीबिया में फंसे 15,000 से अधिक भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की. यह हवाई-समुद्री ऑपरेशन भारतीय नौसेना और एयर इंडिया द्वारा अंजाम दिया गया था. लेबनान से भारतीयों का रेस्क्यू: इसी तरह, भारत ने ऑपरेशन सुकून के तहत अपने 2,280 नागरिकों को बचाया था, जब जुलाई 2006 में इजरायल और लेबनान के बीच सैन्य संघर्ष शुरू हो गया था. ऑपरेशन ‘Beirut Sealift’ कहा जाने वाला यह मिशन ‘डनकर्क’ मिशन के बाद सबसे बड़ा नौसैनिक बचाव अभियान था.

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