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Rajasthan Political Crisisः विधानसभा अध्यक्ष की याचिका सुप्रीम कोर्ट में मंजूर

पायलट की याचिका पर हाईकोर्ट के ‘डायरेक्शन’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट स्पीकर ने की याचिका दायर
जयपुर। राजस्थान में चल रही राजनीतिक रस्साकशी में बुधवार को एक और मोड़ आया है। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमे की याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी को दिए डायरेक्शन के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी गई है, जिसे मंजूर कर लिया गया है। कोर्ट में स्पीकर का पक्ष कपिल सिब्बल रख रहे हैं, साथ ही इस मामले में कोर्ट से यह गुजारिश की गई है, कि वो इस मामले में आज ही अपना निर्णायक फैसला दे।
डॉ. जोशी ने कहा कि ‘पहले कहा गया कि 21 तारीख तक मैं कोई फैसला नहीं लूं, मैंने उसे स्वीकार किया। कल जो भी कहा मैंने उसे भी स्वीकार कर लिया है। लेकिन इस स्वीकार्यता में ये भी ख्याल रखा जाए कि एक अथॉरिटी का दूसरे अथॉरिटी के रोल का अतिक्रमण ना हो। इसके लिए रोल स्पष्ट हैं। अगर ऐसा नहीं होता है तो ये संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसलिए मैंने आज सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके गुट की अपील पर होई कोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी से राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी असंतुष्ट हैं। सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीपी जोशी ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, विधानसभा का स्पीकर आदि सभी संसदीय पदों पर बैठा व्यक्ति किसी न किसी पार्टी का होता है। संसदीय लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधि अपनी अलग-अलग भूमिका निर्वहन करते हैं। इसलिए कानून ने सभी के लिए रोल तय कर दिए हैं।
आया राम गया राम की वजह से संविधान में संशोधन किया गया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में एक केस में स्पष्ट किया कि दल बदल कानून में डिस्क्वालिफाई करने का अधिकार किसके पास है। जिसमें तय हुआ था कि यह अधिकार स्पीकर के पास है। 1992 के बाद से आज तक एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें कोर्ट ने स्पीकर कर फैसला बदला हो। डॉ. जोशी ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में ताकत है कि लोकसभा और विधानसभा कानून बनाती है, सुप्रीम कोर्ट उसकी व्याख्या करती है। उसके बाद जो कानून तैयार होता है उसे मानने की बाध्यता सबकी होती है। ये संसदीय लोकतंत्र की ताकत है। 1992 के बिल में स्पष्ट कर दिया गया है कि दल-बदल कानून में आखिरी फैसला स्पीकर ही करेगा। उसके बाद जो भी जजमेंट हो जैसे राजेंद्र राणा, मणिपुर, उत्तराखंड जैसे तमाम केस में यही कहा गया है आखिर फैसला स्पीकर का ही होगा।
उन्होंने कहा कि ‘स्पीकर नोटिस देने के लिए स्वतंत्र है। उस पर क्या कार्रवाई होगी इसकी अलग प्रक्रिया है। विधानसभा का अगर कोई सदस्य अगर स्पीकर को किसी विषय के संदर्भ में आवेदन करता है तो स्पीकर के पास उस मामले की जानकारी लेने का अधिकार है। मैंने केवल कारण बताओ नोटिस जारी किया है, इस पर क्या निर्णय लेना है यह मैंने नहीं कहा है।
उन्होंने कहा, दुर्भाग्यवश हमारी न्यायपालिका इसमें गतिरोध पैदा कर रही है। यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। मैं जब विधानसभा का स्पीकर बना तो मैंने पूरी कोशिश की कि इस पद की गरीमा बनी रहे। आज भी मैं उस बात पर कायम हूं। ये किसी को भी अधिकार नहीं है कि वह कोर्ट के बताए कानून की अवहेलना करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करे। इसलिए मैंने कोर्ट ने जो भी जजमेंट दिए हैं मैंने उसका सम्मान किया।

 

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