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बिहार के इस गांव का पानी तक नहीं पीते थे देश के पहले राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, जानें क्‍यों

सिवान। प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की आज पुण्यतिथि है, इस मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिभा और विद्वता के कई किस्से मशहूर हैं। खासतौर पर जब परीक्षा के दौरान उनके कॉपी में लिखा गया था कि ‘एग्जामिनी इज बेटर देन एग्जामिनर’ (Examinee is better than examiner)। राजेंद्र बाबू अपनी परंपराओं से भी गहराई से जुड़े थे।



पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और रिश्ते में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाती मनोजेश्वर प्रसाद उर्फ मनोज बाबू सिवान जिले के रफीपुर गांव के नर्मदेश्वर प्रसाद के पुत्र हैं। उन्होंने बताया कि राजेंद्र प्रसाद उनके गांव रफीपुर का अन्न तो दूर पानी तक नहीं पीते थे।

मनोज बाबू ने बताया कि जब कभी राजेंद्र प्रसाद रफीपुर गए तो पड़ोस के गांव से उनके पीने के लिए पानी लाया जाता था। उन्होंने कहा कि वे एक तरफ इतने उच्च शिक्षा हासिल कर देश के बड़े ओहदे तक पहुंचे थे। वहीं दूसरी तरफ गांव की परंपराओं से इस कदर जुड़े थे कि आखिरी वक्त तक वे बेटी के घर का बना सामान नहीं खाते थे। राजेंद्र प्रसाद के बड़े भाई महेंद्र बाबू की बेटी श्यामा देवी की शादी नर्मदेश्वर प्रसाद से हुई थी। राजेंद्र बाबू ने ही भतीजी श्यामा देवी का कन्यादान दिया था, इसलिए वे हमेशा रफीपुर को बेटी का गांव मानते थे।

रिश्ते में नाती लगने वाले मनोज बाबू नाना राजेंद्र प्रसाद की गोद में खेलते हुए बड़े हुए हैं। इस दौरान उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी उनके साथ रहने का सौभाग्य मिला। उन दिनों को याद करते हुए मनोज बाबू ने बताया कि राजेंद्र प्रसाद को सादा भोजन और सादगी भरा जीवन पसंद था। जब भी गांव-इलाके से कोई उनसे मिलने जाता तो वे बड़े आत्मीयता से उससे मिलते थे। सबसे खास बात कि राष्ट्रपति रहते हुए भी अपने लोगों से वे भोजपुरी में ही बातें किया करते थे। इस संबंध में मनोज बाबू ने एक प्रसंग सुनाया। जब गांव से एक व्यक्ति उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंचा। राजेंद्र बाबू उससे मिले। इस दौरान वे भोजपुरी में बात कर रहे थे जबकि मिलने आया व्यक्ति हिंदी बोल रहा था। कुछ देर सुनने के बाद वे उसे झिड़कते हुए बोले ‘भोजपुरी भुला गइलअ का हो’ (भोजपुरी बोलना भूल गए हो क्या)? मनोज बाबू ने बताया कि राजेंद्र बाबू के समय राष्ट्रपति भवन में भोजपुरिया समाज का होली मिलन समारोह का आयोजन होता था। जहां फगुआ (बिहार का होली का गीत) गाया जाता था। इस दौरान वे सबसे मिल कर होली की शुभकामनाएं देते थे।

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