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राजकुमारी गुप्ताः गांधीवाद से क्रांति तक

– प्रतिभा कुशवाहा

देश के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में ऐसे अनगिनत लोग हैं, जिनके योगदान को इंगित करना भी जरूरी नहीं समझा गया। जबकि देशप्रेम के चलते उनका पूरा जीवन कष्टमय बीता और दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए। ऐसा ही एक नाम है बांदा जिले में जन्मीं क्रांतिकारी बेटी राजकुमारी गुप्ता। साल 1902 में एक छोटे से पंसारी की दुकान चलाने वाले के घर जन्मीं राजकुमारी का विवाह बाल्यावस्था में ही कानपुर के मदन मोहन गुप्ता से कर दी गई। चूंकि मदनमोहन आजादी की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस से जुड़ थे इसलिए स्वाभाविक तौर से राजकुमारी भी अपने पति का हाथ बंटाने लगीं। दोनों पति-पत्नी गांधी के विचारों और सिद्धांतों से प्रभावित थे। महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों का राजकुमारी पर काफी प्रभाव था।

जैसे-जैसे वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेती गईं, उन्हें अंग्रेजों का अत्याचार अमानवीय और असहनीय लगने लगा। उन्हें यह भी महसूस हुआ कि केवल अहिंसा के मार्ग पर चलने से ही हम स्वतंत्र नहीं हो सकेंगे। हमें अंग्रेजों को हथियारों की ताकतों से भी परिचय कराना होगा। इसी बात पर विश्वास करते हुए वे क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से जुड़ गईं। वे उनकी गुप्त सूचनाएं और वस्तुएं दूसरे क्रांतिकारियों को पहुंचाने का काम करने लगीं। उनके इन कामों की खबर उनके पति मदन मोहन और ससुराल पक्ष तक को नहीं थी। उनका काम इतना उत्कृष्ट था कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन, इलाहाबाद के ग्रुप में शामिल हो गईं।

09 अगस्त, 1925 को लखनऊ के पास काकोरी ट्रेन लूट के बारे में हम सब खूब जानते हैं, जिसमें सरकारी धन लूटा गया था। काकोरी ट्रेन लूटकांड को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने प्लान किया था। इस कांड से रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खां, राजेंद्र लहरी आदि जुड़े थे। इस सरकारी धन को क्रांतिकारी कामों में लगाने का विचार था। काकोरी ट्रेन लूट कांड में शामिल क्रांतिकारियों के बारे में भी इतिहास में खूब लिखा गया है, पर क्रांतिकारियों के इस सफल मिशन में राजकुमारी का भी अहम किरदार था।

असल में इस डकैती में शामिल क्रांतिकारियों को रिवॉल्वर वगैरह देने का काम राजकुमारी ने ही किया था। तभी इस काम को इतनी सफाई से अंजाम दिया जा सका। उनके इस साहसपूर्ण काम के बाद ही उनके घरवालों को पता चला कि वे क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़ी हुई हैं। वे कहा करती थी कि ‘हम ऊपर से गांधीवादी और नीचे से क्रांतिकारी हैं।’ सरकार विरोधी कामों के कारण कई बार वे जेल भी गईं। 1930, 1932 और 1942 को उन्हें जेल की सजा हुई।

देश की आजादी के संघर्ष में महिलाओं को दोहरा संघर्ष झेलना पड़ा है। एक तरफ राजकुमारी देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रही थीं, वहीं अपने इस तरह के कामों के कारण ही वे अपने घर से दूर कर दी गईं। क्रांतिकारियों की सहायता के लिए हथियार पहुंचाने के काम के चलते वे गिरफ्तार हुईं। तब उनके ससुराल वालों ने उनका साथ छोड़ दिया। यहीं नहीं, उन्होंने बाकायदा अखबार में संदेश देकर उन्हें अपने परिवार से बेदखल कर दिया।

सचमुच यह उनके लिए बहुत ही पीड़ादायी समय होगा। लेकिन राजकुमारी जितना बहादुर होना भी तो आसान नहीं। यह दुखद ही है कि राजकुमारी जैसी वीरांगना को अंग्रेजों के साथ-साथ अपने समाज भी लड़ना पड़ा। वे संपूर्ण जीवन सामाजिक बंधनों, सामाजिक रवैये और परिवार के भीतर के विरोध से लड़ती रहीं। उनका यह दोहरा संघर्ष था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी इतिहास की किताबों में ऐसी वीरांगनाओं का दस्तावेजीकरण नहीं के बराबर है।

(लेखिका हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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