बदायूं । रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) देशभर में कल मनाया जाएगा, लेकिन बदायूं (badaun) के कादरचौक इलाके के 14 गांव ऐसे हैं, जहां रक्षाबंधन एक दिन पहले यानी आज ही मना लिया जाएगा। आल्हा ऊदल (alha udal) के जमाने से चल रही परंपरा को स्थानीय ग्रामीण पूरी शिद्दत के साथ निभाते चले आ रहे हैं।
कादरचौक क्षेत्र (Kadar Chowk area) के यह 14 गांव भंटेली कहलाए जाते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि यहां पहले जमींदारी प्रथा लागू थी। स्थानीय जमींदार लोग महोबा शासक के अधीन थे। ठाकुर सोरन सिंह, वीरेंद्र सिंह, लाखन सिंह यादव की जमींदारी में 14 गांव आते थे, जो चंदेल वंशज के अधीन थे। 1182 ईस्वी में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण कर दिया था।
उस समय महोबा पर चंदेल शासक परमाल का राज था। उनकी रानी चंद्रबली ने मुंहबोले भाई आल्हा से अपनी व राज्य की सुरक्षा की बात कही। लड़ाई रक्षाबंधन वाले दिन होनी तय थी। ऐसे में आल्हा ने अपने अधीन आने वाले 14 गांवों में एक दिन पहले ही रक्षाबंधन मनाने की घोषणा कर दी और अगले दिन युद्ध में शामिल होने चले गए।
सदियों पुरानी परंपरा को आज भी कादरचौक, लभारी, चौडेरा, मामूरगंज, गढिया, ततारपुर, कचौरा, देवी नगला, सिसौरा, गनेश नगला, कलुआ नगला, किशूपरा गांव के लोग निभाते हैं और एक दिन पहले ही रक्षाबंधन मनाते हैं।
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस बहाने अपने पूर्वजों की गाथा को भी याद कर लिया जाता है। चंदेल वंश, आल्हा और पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी रस्म है। – प्रमोद कुमार उपाध्याय, रिटायर्ड प्रधानाध्यापक
महोबा शासन में यहां के जमींदार आल्हा पक्ष के साथ थे। उसी युद्ध में जाने की वजह से एक दिन पहले त्योहार मनाया था जो अब तक चल रहा है। आल्हा-ऊदल के इतिहास से संबंधित पुस्तक में इसका प्रसंग छपा हुआ है। – नेत्रपाल, प्रधान कचौरा
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