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राजस्थान में रिकॉर्डतोड़ मतदान ने सियासी दलों की बढ़ाई धड़कनें, जाने गहलोत सरकार के लिए क्या है संकेत ?

जयपुर (Jaipur) । राजस्थान (Rajasthan) में 30 वर्षों से हर चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन होता आया है। इन 6 चुनावों में 4 बार मतदान प्रतिशत (voting percentage) बढ़ा और 2 बार कम हुआ है। लेकिन सत्ता परिवर्तन जरूर हुआ। 30 वर्षों में भाजपा (BJP) ने 2013 में जनता दल के साथ तो कांग्रेस (Congress) ने 2008 में बसपा विधायकों को पार्टी में विलय कर सरकार बनाई है। अब 2023 में मतदान 73 प्रतिशत हुआ है। जो कि गत चुनाव के मुकाबले में भी फिलहाल कम है। लेकिन अभी फाइनल आंकड़़े नहीं आए है। देर रात वोटिंग होती रही है। सत्ता परिवर्तन होगा या कांग्रेस सरकार रिपीट होगी। यह 3 दिसंबर को ही पता चलेगा।

राजस्थान विधानसभा चुनाव के इस रिकॉर्डतोड़ मतदान ने सियासी दलों की धड़कनें बढ़ा दी है। वोटिंग के बाद सियासी गलियारों तक एक ही चर्चा है कि आखिर इस वोटिंग के संकेत क्या हैं? गहलोत सरकार रिपीट होगी या बीजेपी को सत्ता मिलेगी। राजस्थान में मारपीट और फायरिंग के बीच 25 नवंबर को वोटिंग हुई थी। 199 विधानसभा सीटों के लिए कई जगह देर रात तक भी लोग कतार में खड़े हुए नजर आए राज्य चुनाव आयोग के मुताबिक 74. 13 फीसदी वोटिंग हुई है। सबसे ज्याद वोटिंग जैसलमेर के पोकरण 87. 79 प्रतिशत और तिजारा में 85.15 फीसदी वोटिंग हुई। जबकि सबसे कम मारवाड़ जंक्शन 61.10 औऱ आहोर में 61. 19 फीसदी हुई।


ओपीएस और पेपर लीक के क्या है संकेत
सियासी जानकार रिकाॅर्ड तोड़ मतदान के अलग-अलग सियासी मायने निकाल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अधिक मतदान होना सरकार के खिलाफ जाता है, ऐसा माना जाता है। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि मतदाताओं ने गहलोत सरकार की वापसी की संकेत दिए हा। उनका तर्क है कि 2018 में जिन सीटों में ज्यादा मतदान हुआ था वहां पर कांग्रेस को जीत मिली थी। राजनीति विश्लेषकों के मुताबिक सरकारी कर्मचारी औऱ पेंशनरों के वोट एक जगह पर ही जाते हुए दिखाई दिए है। जबकि राज्य में जुडे़ नए वोटरों के वोट भी एक जगह ही जाते हुए दिखाई दे रहे है। इसके अलग-अलग मायने निकाले जा रहे है। गहलोत सरकार ने ओपीएस लागू की ही। पुरानी पेंशन योजना की बहाली का सरकार को लाभ मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। जहकि नव मतदाता पेपर लीक जैसे घटनाओं से दुखी दिखाई दिए। ऐसे में कहा जा सकता है कि युवा वोटरों की नाराजगी सरकार को भारी पड़ सकती है।

राजस्थान में 0.33 प्रतिशत वोट से भी सत्ता बदली
सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान में 0.33 प्रतिशत वोट से भी सत्ता बदली है। 1993 में 0.33 प्रतिशत से भाजपा ओर 2018 में 0 54 फीसदी से अधिक वोट से कांग्रेस की सरकार बनी थी। 2013 में 75 फीसदी रिकार्ड वोटिंग हुई थी। जिसमें बीजेपी की सरकार बनी थी।इस बार हुई बंपर वोटिंग सेमतदान में वर्ष 2018 का रिकॉर्ड टूटा है। राजस्थान में अभी तक 74.13 प्रतिशत आंकड़ा मतदान का पहुंच चुका है। जबकि पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। 20 से अधिक सीटों के आंकड़ें अभी आना बाकी है। मतलब मतदान के सारे रिकॉर्ड टूट सकते हैं। जयपुर में 75 प्रतिशत पर हो गया है।सियासी जानकारों का कहना है कि खास बात ये भी है कि 40 प्रतिशत मत के करीब पहुंचने वाला दल जोड़ तोड़ से सरकार तो बनाने में कामयाब रहे है लेकिन बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है। 1993 में 38.69 प्रतिशत मत के साथ भाजपा को 95 सीटें मिली थी। यही हाल 2018 के विधानसभा चुनावों के भी रहे जब कांग्रेस कुल 39.30% वोट हासिल कर 100 सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन सरकार बनाने के लिए उसे अन्य निर्दलियों का साथ लेना पड़ा।

क्या पायलट फैक्टर रहा है हावी
सियासी जानकारों का कहना है कि पूर्वी राजस्थान में गुर्जर वोटर निर्णायक भूमिका में रहते आए है। हार-जीत में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। पूर्वी राजस्थान की सियासत का केंद्र बिंदु दौसा जिले सचिन पायलट के पिता स्वर्गीय राजेश पायलट की कर्मस्थली रहा है। सचिन पायलट का खासा प्रभाव माना जाता है। बता दें राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा भीड़ पूर्वी राजस्थान में ही उमड़ी थी। दौसा जिले में रिकाॅर्ड भीड़ से खुद राहुल गांधी हैरान हो गए थे। यहीं नहीं राहुल गांधी के सामने सचिन पायलट को सीएम बनाने के नारे भी खूब लगे थे। सियासी जानकारों का कहना कि राजस्थान में 0.33 प्रतिशत वोट से भी सत्ता बदल जाती है। ऐसे में पिछली बार की तुलना में बढ़े हुए मतदान प्रतिशत का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। दूसरी तरफ सचिन पायलट के अधिकांश समर्थक विधायक भी पूर्वी राजस्थान से ही आते है। इस बार भी चुनावी मैदान में है। कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट के कहे अनुसार टिकट दिए है। बता दें विधानसभा चुनाव 2018 में 0.54 फीसदी अधिक वोट से कांग्रेस की सरकार बन गई थी।

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