ब्‍लॉगर

अतीत के बोझ से दबी समाजवादी पार्टी

– विकास सक्सेना

कहा जाता है कि इंसान का अतीत उसका पीछा कभी नहीं छोड़ता, उसके बुरे कर्म जब तब उसके सामने आकर खड़े हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जनता का समर्थन हासिल करने के लिए वह जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं लेकिन अतीत में उनकी सरकार के दौरान किए गए काम, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी कारनामे कहते हैं, उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहे हैं।

प्रदेश में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति से लेकर दंगाइयों और अपराधियों पर कार्रवाई करने में जिस तरह से जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव किया गया, उसका खामियाजा सपा को मौजूदा विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। फिलहाल अहमदाबाद बम धमाकों के मामले में फांसी की सजा पाने वाले आतंकी मोहम्मद सैफ के पिता शादाब अहमद का सपा से संबंध अखिलेश यादव के लिए नई मुसीबत लेकर आया है। इस तरह की खबरों से अखिलेश सरकार के दौरान आतंकी घटनाओं के आरोपितों के मुकदमों को वापस लेने के राष्ट्रघाती प्रयास जनता के स्मृति पटल पर फिर से ताजा हो गए हैं।

गुजरात दंगों का बदला लेने के लिए आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन और स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इण्डिया (सिमी) के आतंकियों ने 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में 70 मिनट के भीतर 21 जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके किए थे जिसमें 56 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों गंभीर रूप से घायल हो गए थे। सीबीआई की विशेष अदालत में 13 साल तक चली सुनवाई के बाद 49 आरोपितों को दोषी मानते हुए 38 को फांसी की सजा सुनाई गई जबकि 11 को आखिरी सांस तक जेल में रखने का आदेश दिया गया है। फांसी की सजा पाने वाले एक आतंकी मोहम्मद सैफ के पिता शादाब अहमद समाजवादी पार्टी से जु़ड़े हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ शादाब अहमद की तस्वीरें सार्वजनिक करते हुए दावा किया कि वह विधानसभा चुनाव में सपा के लिए वोट मांग रहा है। ये तस्वीरें सपा समर्थकों को असहज कर रही हैं।

अहमदाबाद बम धमाकों पर अदालत के फैसले के बाद से प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के सभी छोटे-बड़े नेता सपा पर हमलावर हैं। प्रदेश की जनता को एकबार फिर आतंकवाद के आरोपितों पर अखिलेश यादव की ‘रहमदिली’ याद दिलाई जा रही है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को रिझाने के लिए समाजवादी पार्टी ने तत्कालीन सरकारों पर बेकसूर मुस्लिम नौजवानों को झूठे मुकदमों में फंसाने के गंभीर आरोप लगाते हुए वायदा किया था कि सपा की सरकार आने इन मुस्लिम नौजवानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेकर उन्हें जेलों से रिहा किया जाएगा।

विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनी तो उन्होंने जेलों में बंद मुस्लिम युवकों की रिहाई के लिए मुकदमे वापसी की तैयारी शुरू की। ऐसा करते समय उन्होंने अपराध की गंभीरता तक को नजरअंदाज कर दिया। मुस्लिम समुदाय को लुभाने के लिए अखिलेश यादव की सरकार ने 07 मार्च 2006 को वाराणसी के संकट मोचन मंदिर और बनारस कैण्ट रेलवे स्टेशन समेत कई स्थानों पर हुए सिलसिलेवार बम धमाकों, 31 दिसम्बर 2006 को रामपुर स्थित सीआरपीएफ शिविर पर हुए आतंकी हमले और 23 नवम्बर 2007 को लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद की कचहरी पर हुए सिलसिलेवार बम धमाकों जैसी गंभीर आतंकी घटनाओं तक के आरोपितों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की कोशिश की थी। लेकिन न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण सरकार आतंकवाद की घटनाओं के आरोपितों पर दर्ज मुकदमे वापस नहीं ले सकी थी।

दुर्दांत आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के जिन आरोपितों के मुकदमे अखिलेश सरकार ने वापस लेने की कोशिश की उनमें से कई को न्यायालय ने दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी। लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद कचहरी में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोपी यूपी हूजी चीफ तारिक कासमी को अदालत ने वर्ष 2020 में उम्रकैद की सजा सुनाई। इसी तरह रामपुर स्थित सीआरपीएफ के शिविर पर आतंकी हमले के चार दोषियों को फांसी, एक को उम्रकैद और एक दोषी को दस साल कैद की सजा सुनाई गई।

अदालत के फैसलों से साफ है कि अखिलेश यादव की सरकार कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने के लिए आतंकवाद की घटनाओं में शामिल लोगों के मुकदमे वापस लेने का राष्ट्रघाती कदम उठाने जा रही थी। इतना ही नहीं इन आरोपितों को गिरफ्तार करने वाले पुलिस के अधिकारियों का उत्पीड़न करने में भी उस समय सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कचहरी सिलसिलेवार बम धमाकों के एक आरोपी खालिद मुजाहिद की पेशी के लिए फैजाबाद कचहरी ले जाते समय तबीयत खराब होने से 18 मई 2013 को मौत हो गई। बम धमाकों के आरोपी की मौत से अखिलेश यादव इतना बौखला गए कि उन्होंने तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल, पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह समेत 42 पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों पर गंभीर धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया।

सिर्फ आतंकियों पर रहमदिली दिखाने के मामले में ही नहीं बल्कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अखिलेश यादव ने जिस तरह जातिवाद और क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया उसके चलते भी समाज का एक बड़ा तबका उनसे काफी खफा है। इन चुनावों में अखिलेश यादव का सबसे ज्यादा जोर गैर यादव पिछड़ी जातियों को सपा के खेमे में लाने को लेकर है। इसीलिए उन्होंने सुभासपा, अपना दल (के), महान दल समेत कई छोटे क्षेत्रीय दलों से समझौता किया है। साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी जैसे नेताओं को धूम धड़ाके के साथ सपा में शामिल किया।

हालांकि सपा सरकार के दौरान सरकारी नियुक्तियों में बरती गई भारी अनियमितताएं अब अखिलेश यादव के गले की फांस बन गई हैं। पीसीएस 2011 में पिछड़े वर्ग के 86 अभ्यर्थियों का चयन हुआ जिसमें 50 सिर्फ यादव जाति के थे। इसी तरह इतिहास प्रवक्ता पद पर 15 पदों के लिए हुए साक्षात्कार में सात यादव अभ्यर्थी ही सफल घोषित किए गए। पिछड़ों के आरक्षित पदों पर ज्यादातर यादव जाति के उम्मीदवारों की नियुक्तियों को गैर यादव पिछड़े भूले नहीं हैं। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने के लिए कॉरपस फंड बनाने के ऐलान ने उनके दावे की कलई खोल दी है। कॉरपस फंड को भी शेयर मार्केट में लगाकर उस पर मिले लाभ से पुरानी पेंशन देने की बात कर्मचारियों के गले नहीं उतर रही। चुनावी मौसम में पुरानी पेंशन के वायदे के कर्मचारियों को लुभाने में जुटे अखिलेश यादव और कर्मचारियों को भी अच्छी तरह पता है कि प्रदेश में नई पेंशन योजना सपा की सरकार के दौरान मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने लागू की थी और इसका नोटिफिकेशन 2012 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद किया गया था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तो यहां तक कहना है कि नई पेंशन योजना लागू होने के बावजूद अखिलेश सरकार ने कर्मचारियों के खाते न खुलवाकर उनका सबसे ज्यादा नुकसान किया है। नियमों को ताक पर रखकर इटावा, मैनपुरी और रामपुर जैसे क्षेत्रों में ए श्रेणी के शहरों से भी अधिक बिजली आपूर्ति का मामला लोगों को अभी तक याद है। ऐसे में सत्ता से हटने के पांच साल बाद भी अखिलेश यादव को अपनी सरकार के दौरान किए गए कामों पर सफाई देनी पड़ रही है। एक बड़े वर्ग को लगता है कि अखिलेश यादव ने अपनी सरकार के दौरान ऐसी गलती नहीं की थी जिसे माफ कर दिया जाए बल्कि सपा समर्थक मुस्लिम और यादव मतदाताओं को रिझाने के लिए उन्होंने जानबूझ कर राष्ट्रघाती साजिशों को अंजाम दिया था।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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