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जी-20 के ध्येय वाक्य का महत्व

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

किसी वैश्विक संगठन ने पहली बार भारतीय सूक्ति को अपना ध्येय वाक्य बनाया है। वस्तुतः यह भारतीय चिंतन के बढ़ते प्रभाव और लोकधर्म की प्रतिध्वनि है। इसे विश्व सहजता से स्वीकार कर रहा है। लोगों को धीरे-धीरे यह समझ में आ रहा है कि वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन के माध्यम से किया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि परिवार भाव से ही सबका भला होगा। भारत ने विश्व को एक परिवार माना है। जी-20 का ध्येय वाक्य भी ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ है। विश्व के लिए परिवार की बहुत आवश्यकता है। कई देशों में वहां के राजनीतिक दलों को अपने चुनाव घोषणा पत्र में लिखना पड़ रहा है कि हम पारिवारिक मूल्यों को लागू करेंगे। आज परिवार में एकता की बात होती है, लेकिन यह बात विरोधाभासी है। परिवार का मतलब ही एकता है, लेकिन आज परिस्थिति ऐसी हो गई है कि परिवार में एकता की बात की रही है।


दत्तात्रेय होसबाले कहते हैं कि मनुष्य को संस्कार परिवार से ही मिलता है। परिवार ठीक नहीं होने पर बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाता है। परिवार में आत्मीयता व परस्पर सामंजस्य का भाव कम हो गया तो बच्चे समाज के अच्छे नागरिक नहीं बन पाएंगे। परिवार ठीक रहेगा तो सब ठीक रहेगा। इसलिए परिवार में जीवन मूल्य सिखाएं, तभी मानवता सुखी रहेगी। सद्भावना और सत्कर्म से जो संस्कार होता है उससे राष्ट्र व समाज का कल्याण होता है। आदर्श परिवार बनाने के लिए सबके प्रति स्नेह का भाव व सबको जोड़कर एक समाज के नाते मिलकर रहने से समाज की शक्ति बढ़ेगी। एक-दूसरे के प्रति प्रेम आत्मीयता सहयोग व समन्वय की भावना होनी चाहिए। दूसरे के विकास में मन को प्रसन्नता होती है। इसी को परिवार कहते हैं। परिवार के संदेश को हमने संगठन में भी लिया है। इसलिए हम जहां भी कार्य करें वहां टीम भावना से कार्य करें। प्रेम, समन्वय व सहयोग की भावना जो परिवार में होती है, उसी भाव व भावना को लेकर संघ कार्य कर रहा है।

जी-20 का लोगो जारी करते समय प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि यह केवल एक प्रतीक चिह्न नहीं है। यह एक संदेश है। एक भावना है, जो हमारी रगों में है। यह एक संकल्प है, जो हमारी सोच में शामिल है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के मंत्र के जरिए विश्व बंधुत्व की भावना को हम जीते आए हैं। यह लोगो और थीम में प्रतिबिंबित हो रहा है। लोगो में कमल का फूल, भारत की पौराणिक धरोहर, आस्था,बौद्धिकता को चित्रित कर रहा है। भारत में अद्वैत का चिंतन जीव मात्र के एकत्व का दर्शन रहा है। ये दर्शन, आज के वैश्विक द्वंद्व और दुविधाओं के समाधान का माध्यम बनेगा। आज विश्व इलाज की जगह आरोग्य की तलाश कर रहा है। आयुर्वेद, योग को लेकर लेकर दुनिया में एक नया विश्वास और उत्साह है। हम उसके विस्तार के लिए एक वैश्विक व्यवस्था बना सकते हैं।

दुनिया में अब मोटे अनाज का महत्व बढ़ रहा है। यह भारत की दुनिया को देन है। भारत की भूमिका बहुत अहम है। भारत एक ओर विकसित देशों से घनिष्ठ रिश्ते रखता है तो दूसरी ओर विकासशील देशों के दृष्टिकोण को भी अच्छी तरह से समझता है। उसकी अभिव्यक्ति करता है। इसी आधार पर हम अपनी जी-20 अध्यक्षता की रूपरेखा ‘ग्लोबल साउथ’ के उन सभी मित्रों के साथ मिल कर बनाएंगे जो विकास के पथ पर दशकों से भारत के सहयात्री रहे हैं। भारत एक बेहतर भविष्य के लिए, साथ लाने के विजन पर काम कर रहा है। एक पृथ्वी एक परिवार एक भविष्य यह भारतीय विचार है। यही संस्कार, विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। विश्व गुरु भारत ने सम्पूर्ण मानवता के लिए वसुधैव कुटुम्बकम का विचार दिया था। किसी अन्य सभ्यता संस्कृति के लिए यह दुर्लभ चिंतन था। इसमें सभ्यताओं के बीच संघर्ष की कोई संभावना नहीं थी। लेकिन कालान्तर में ऐसे संघर्ष का दौर भी चला। दुनिया में शांति और सौहार्द की अभिलाषा रखने वालों को भारतीय विरासत में ही समाधान दिखाई दे रहा है। अन्य कोई विकल्प है भी नहीं।

यह विषय दुनिया को युद्ध मुक्त करने तक ही सीमित नहीं है। भारत ने पृथ्वी सूक्त के माध्यम से मानवता को पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति संवर्धन का भी संदेश दिया। कोरोनाकाल में भारतीय जीवनशैली और आयुर्वेद को दुनिया में पुनः प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। इस काल में अपने को विकसित समझने वाले देश भी आयुर्वेद की शरण में जाने को लाचार हो गए। सुखद यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व कल्याण के दृष्टिगत दुनिया को भारतीय विरासत से परिचित करा रहे हैं। उनके प्रयासों से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। विगत आठ वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ा है।

जी-20 के प्रतीक चिह्न में सात पंखुड़ियों वाले कमल के फूल पर गोलाकार विश्व है। इसके नीचे भारतीय संस्कृति का प्रसिद्ध ध्येय वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अंकित है। प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी कहा था कि भारत युद्ध नहीं बुद्ध का देश है। प्रतीक चिह्न में कमल का फूल भारत की पौराणिक धरोहर, आस्था और बौद्धिकता को चित्रित करता है। कमल की सात पंखुड़ियां दुनिया के सात महाद्वीपों और संगीत के सात स्वरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रतीक चिह्न इस आशा को जगाता है कि दुनिया एक साथ आगे बढ़ेगी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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