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सिंधू बॉर्डर की सांझी सत में बच्चों की पाठशाला

नई दिल्ली । आंदोलन में बच्चों को प्लास्टिक का सामान उठाते हुए उनको पढ़ाने की इच्छा जागी थी। पता नहीं था कि जो कदम वो अकेला उठा रहा है, उसका साथ देने वाले कई हाथ उसके साथ उठ पड़ेंगे। सिंधू बॉर्डर पर किसान आंदोलन में आए पटियाला के गुरविंदर सिंह ने बताया कि उसने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की है। पटियाला में अपना कारोबार है। पिता सरबजीत सिंह आंदोलन में आते-जाते रहते हैं जबकि भाई मनिंदर सिंह लंगर लगाकर किसानों का हाथ बटा रहा है। गुरविंदर ने बताया कि शिक्षा कभी भी पैसों से नहीं खरीदी जा सकती है। शिक्षा को देने वाला और लेना वाला निस्वार्थ भाव और सच्चे दिल से अगर लगता और देता है तभी शिक्षा बांटी जाती है। यहीं सोचकर उसने सिंधू बॉर्डर पर कूड़ा बिन्ने वाले बच्चों और उनके माता पिता से बातचीत कर बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था।

50 किताबों और कुछ रंगों से बच्चों की पाठशाला शुरू की
गुरविंद्र ने बताया कि उसने जो कुछ अपने शिक्षकों और परिवार से सीखा,वो सबकुछ वह सामने वाले को देना चाहता हूँ। क्योंकि इसमें कोई पैसे का सौदा नहीं है। शुरुआत में सांझी सत जिसको चौपाल कहा जाता है। उसने एक टेंट में शुरूआत की थी। पचास किताबों और कुछ रंगों को उसने 13 बच्चों को बुलाकर पढ़ाने की शुरूआत की। बच्चों को पहनने के लिए गर्म कपड़े, कॉपी-किताबें व रंग दिये। बच्चों को कहानी किस्से सुना पढाना शुरू किया। उनकी ख्वाबों के संसार को उनके द्वारा ही रंगों से भरवाने की कोशिश की। हैरान करने वाली बात यह है कि कुछ बच्चों ने अपने गांव को अत्याधुनिक तरीके का ड्राइंग में दिखाने की कोशिश भी की। उनसे पूछने पर पता चला कि वह यह सब टीवी में देखते हैं और लोगों से सुनते हैं। आलम यह है कुछ ही दिनों में 70 बच्चे चौपाल में आने लगे हैं। जिनकी संख्या आगे भी बढ़ती जा रही है।

एक से सात और फिर 40 वॉलिंटियर की टीम हो गई
गुरविंद्र बताते हैं आज टीम में परमिन्द्र गोल्डी,दिनेश चड्ढा,सुखविन्द्र सिंह,सतनाम सिंह नागरा,इन्द्र बाजवा और अमृत पाल सिंह है। बाकी करीब चालीस वॉलिंटियर है। जिसमें केरल महाराष्ट्र,झारखंड आदी के लडक़े लड़कियां है। जिसमें से कुछ तो अपने साथियों के साथ अपने घरों से हिल स्टेशन के लिए निकले थे। लेकिन सिंधू बॉर्डर पर आंदोलन को देखकर वह यहीं के रहे गए। चौपाल में जो भी कोई बच्चों को पढ़ाना या फिर उनके लिए कुछ करना चाहता है। वह खुद यहां पर आता है और अपनी टाईम देता है। हमारी एक ही इच्छा है कि इन बच्चों का भी कुछ भविष्य बने, बढ़े होकर इतना तो कुछ कर ही ले कि वह खुद और अपने परिवार का पेट भर सके। उनको इस तरह से कूड़ा बिनने की जरूरत नहीं पड़े।

नास्ता, लंच और डिनर के साथ फ्री में पढ़ाई देकर बच्चे भी उत्साहित
चौपाल में आने वाले हिमाशु,ज्योति,सुरज,चेतना आदी ऐसे बच्चे हैं,जिनके माता पिता काम करते हैं या फिर कूड़ा बिनने का काम करते हैं। कूड़ा बेचने के बाद उनको शाम को कुछ ही रुपये मिल पाते हैं। जिससे वह अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकते हैं। लेकिन किसान आंदोलन में जिस तरह से नास्ता,लंच और डिनर फ्री में मिल रहा है। उसके बाद माता पिता अपने बच्चों को चौपाल में पढ़ाई करवाने के लिए भेज भी रहे हैं और अपने जानकारों को इस बारे में बताकर उनके बच्चों को पढ़ाई करवाने के लिए जोर भी डाल रहे हैं। वह खुद पढ़ाई की महत्वता को दूसरों को बता रहे हैं।

चौपाल में बच्चों के बनाए पोस्टर लेकर हो रहा है आंदोलन
चौपाल टीम ने बताया कि बच्चे जो पढऩे लिखने में शून्य थे। आज वह पढ़ाई व ड्राइंग करके आंदोलन के लिए पोस्टर बनवाने में सहायता कर रहे हैं। वह खुद पोस्टर बना रहे हैं। जिनपर किसान आंदोलन जिंदाबाद व अन्य नारे लिखे हुए हैं। बच्चों के बनाए पोस्टर लेकर किसान भाई आंदोलन में हाथों में लेकर घुम घुमकर अपना विरोध प्रकट कर रहे हैं। इसके अलावा सरकार के कार्टून और लंगर का चित्र बना रहे हैं। इस बीच कुछ बच्चे खाली टाईम में आंदोलन में ही अपनी टीम बनाकर पोस्टर लेकर नारेबाजी भी कर रहे हैं। बच्चों को ऐसा करके खुशी मिल रही है। लेकिन उनको यह नहीं पता कि उनकी आंदोलन में कितनी बड़ी भागीदारी हो रही है। जिसके बारे में शायद उनको जब पता चलेगा जब वह बड़े हो जाएंगे।

बचपना याद आ जाता है बच्चों को पढ़ाते हुए-सांझी सत टीम
परमिन्द्रर गोल्डी, दिनेश चड्ढा आदी सांझी सत के मेम्बर बताते हैं कि वह तो घुमने के लिए निकले थे। लेकिन किसान आंदोलन को देखकर वह यहां पर ठहर गए। बच्चों को पढ़ाना होगा,एक टीम बनेगी और आने वाले प्लान पर काम करना होगा। उन्होंने नहीं सोचा था। चौपाल में बच्चों को पढ़ाते हुए अपना बचपना याद हो जाता है। उनको पढ़ाते हुए हमकों खुशी मिलती है। यहीं नहीं ये बच्चे भी अपने तौर पर हमारी सहायता करके आंदोलन का हिस्सा बन चुके हैं। बच्चे खुद चौपाल को साफ सुधरा रखने और सामान को सही जगह पर रखवाने व उसका ध्यान रखने जैसी चीजें कर रहे हैं। बच्चे रात को जरूर अपने घर चले जाते हैं,लेकिन सुबह ही वह चौपाल में आकर सभी का हाथ बटवाते हैं।

चौपाल में टाईमिंग से होता है काम
चौपाल टीम ने बताया कि सुबह चाय नाश्ता करने के बाद वह सुबह के न्यूजपेपर में आंदोलन की खबरों को देखकर रणनीति तय करते हैं। 11 से दो बजे तक बच्चों की पाठशाला होता है। जिसमें हिन्दी,अंग्रेजी समेत कई भाषा का ज्ञान देने समेत ड्राइंग सिखाई जाती है। लंच करने के बाद छह से आठ मीटिंग होता है। जिसमें किसान यूनियन के नेता भी हिस्सा लेते हैं। जिसमें करीब अब दो सौ लोग मौजूद होते है। जिनको वह न्यूज पेपरों में आई न्यूज के बारे में और कुछ नई चीजों के बारे में बताते हैं। जो आगे अपनी मीटिंग में उन बातों को शेयर करते हैं। शाम को बच्चों के साथ मनोरंजन के लिए कुछ फिल्में देखा करते हैं। ये वो फिल्में होती है,जिनसे हमको कुछ सीखने को मिलता है। इनके कई धार्मिक फिल्में भी होती है।

लाइब्रेरी में पचास से हो गई पांच हजार किताबें
चौपाल टीम के सदस्य बताते हैं चौपाल में शुरूआत में पचास किताबें थी। जैसे लोगों को इस बारे में पता चलता गया। लोग किताबें लाने लगे। आज आलम यह है कि पचास किताबें अब पांच हजार हो गई है। जिनमें से एक हजार किताबें तो उन्होंने फ्री में बांट भी दी है। इसके अलावा चार हजार किताबें लोग पढऩे के लिए ले जाते हैं और शाम या फिर अगले दिन वापिस कर देते हैं।

टिकरी बॉर्डर अन्य बॉर्डर पर भी चौपाल की शुरूआत
गुरविन्द्र सिंह ने बताया कि सिंधू बॉर्डर पर चौपाल चल गई है। अब वह इसी तरह से टिकरी बॉर्डर पर स्टेज के पीछे इसकी शुरूआत कर रहे हैं। दो से तीन दिनों में वह दूसरे बॉर्डर पर चौपाल की शुरूआत कर देगें। टिकरी बॉर्डर पर किताबों को भेज भी दिया गया है। वॉलिंटियर वहां पर जाकर इंतजाम भी कर रहे हैं। जिससे जल्द जल्द से बच्चों को पढ़ाया जा सके।

बच्चे क्या माता पिता भी आए तो खुशी मिलेगी-चौपाल टीम
चौपाल टीम का कहना है कि शिक्षा ऐसी चीज हैं जो मरते दम तक ली जा सकती है। उसको कोई आपसे छीन नहीं सकता है। बच्चों को वह शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि बच्चों के माता पिता और भाई बहन भी चौपाल में आकर पढाई करें। वह इतना तो पढ़ लेें जिससे उनको अपना नाम व पता लिखने और गिनती का ज्ञान हो जाए। जिससे सामने वाला उनके अनपढ़ होने का फायदा न उठा लें।

पैसे नहीं होते हैं नहीं तो हम भी बच्चों को पढ़ाते-माता पिता
चौपाल में आने वाले कुछ बच्चों के माता पिता ने बताया कि वह नरेला और अलीपुर की झुगगी बस्ती में रहते हैं। चौपाल में जो भईया लोग हमारे बच्चों को पढा रहे हैं। उससे हम खुश है। बच्चे भी पढऩा चाहते हैं। लेकिन बाबू जी एक दिन का पेट वह अपना और बच्चों का भर सके। यहीं रोज सुबह उनकी चिंता होती है। जिसको देखते हुए वह रोज सडक़ों पर कूड़ा बिनने के लिए निकल जाते हैं। कौन नहीं चाहता कि उनका बेटा भी पढे लिखे। लेकिन हमारी मजबूरी है। कूड़ा बिनने में हम अपने बच्चों को भी लगा लेते हैं,जिससे बीस तीस रुपये ज्यादा मिल जाए और कुछ साग सब्जी अगले दिन के लिए खरीद ली जाए।

कुछ इस तरह से हैं चौपाल की सात सदस्य टीम
गुरविन्द्र सिंह पटियाला के रहने वाले हैं वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं। दिनेश चड्ढा रोपड़ रूप नगर के रहने वाले हैं जो पेशे से वकील हैं,इन्द्र बाजवा एक मॉडल थे,मुम्बई में उन्होंने काफी समय मॉडलिंग की। अब वह अपने गांव बाजवा कलां में एक संस्था चलाया करते हैं। जबकि परमिन्द्र गोल्डी दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई कर चुके हैं।

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