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स्पर्म का रोज यूं जाया होना ऐसे पड़ता है भारी, बरतें सावधानी

नई दिल्ली: हर पुरुष की ख्वाहिश होती है कि एक उम्र के बाद उसकी भी फैमिली और बच्चे हों. लेकिन कई बार कुछ लोगों का यह सपना पूरा नहीं हो पाता. कई बार पुरुषों को बच्चे पैदा करने के लिए कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. समय के साथ ही पुरुषों में बच्चा पैदा ना करने की यह समस्या और भी ज्यादा बढ़ती जा रही है. इसे देखते हुए भारत और जर्मनी के फर्टिलिटी एक्सपर्ट की एक टीम ने स्पर्म क्वॉलिटी और इजैक्‍युलेशन(स्पर्म का निकलना) के बीच के संबंध के बारे में जानने की कोशिश की है.

कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, MAHE-मणिपाल और जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूएनस्टर के रिसर्चर्स ने इजैक्‍युलेशन की लेंथ और इससे स्पर्म पर पड़ने वाले इसके असर के बीच के संबंध के बारे में जाने की कोशिश की है. एक जुलाई को ‘एंड्रोलॉजी’ में इस स्टडी की सूचना दी गई थी, जो अमेरिकन सोसाइटी ऑफ एंड्रोलॉजी और यूरोपियन एकेडमी ऑफ एंड्रोलॉजी का ऑफिशियल जर्नल है.

ऐसा माना जाता है कि लंबे समय तक इजैक्‍युलेशन से दूर रहने से सीमन में स्पर्म कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है लेकिन फर्टिलिटी एक्सपर्ट प्रेग्नेंसी प्लान कर रहे लोगों को दो इजैक्‍युलेशन के बीच 2 से 3 दिन का आदर्श अंतराल रखने की सलाह देते हैं. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इंटरकोर्स के बीच बहुत कम गैप रखने से भी प्रेग्नेंसी की संभावना कम हो जाती है.

इस स्टडी के लिए, 10 हजार पुरुषों के दो इजैक्‍युलेशन के बीच के गैप और स्पर्म क्वॉलिटी को आंका गया. इसके नतीजे में पाया गया कि अगर आप प्रेग्नेंसी के लिए ट्राई कर रहे हैं तो स्पर्म की अच्छी क्वॉलिटी के लिए औसत गुणवत्ता के स्पर्म वाले पुरुषों को दो इजैक्‍युलेशन के बीच दो दिनों का गैप जरूर रखना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ, जिन लोगों की स्पर्म क्वॉलिटी काफी ज्यादा खराब है, उन्हें इसे बेहतर बनाने के लिए दो इजैक्‍युलेशन के बीच 6 से 15 दिनों का गैप रखना चाहिए.


कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के क्लिनिकल एम्ब्रियोलॉजी विभाग के एचओडी और प्रोफेसर डॉ सतीश अडिगा ने जर्मनी के सेंटर ऑफ रिप्रोडक्टिव मेडिसिन एंड एंड्रोलॉजी, म्यूएनस्टर के सहयोग से मणिपाल में इस स्टडी के दौरान टीम को लीड किया.

मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के वाइस चांसलर लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) वेंकटेश ने कहा , “इनफर्टिलिटी को अक्सर महिलाओं के मुद्दे के रूप में देखा जाता है. लेकिन भारत में यह पाया गया है कि इनफर्टिलिटी के लिए लगभग 50 फीसदी मेल फैक्टर ही कारण होता है. ज्यादातर मामलों में ऐसा स्पर्म की खराब क्वॉलिटी के कारण होता है. वेंकटेश ने कहा कि हमारी इस नई स्टडी से उन लोगों को मदद मिलेगी जो बच्चे पैदा करने में बार-बार विफल हो रहे हैं.

इस स्टडी पर कमेंट करते हुए केएमसी मणिपाल के डीन डॉ. शरथ राव ने कहा कि पुरुषों में फर्टिलिटी की समस्या पर आज भी खुलकर बात नहीं होता है और इसे अनदेखा किया जाता है. यही वजह है कि कई बार इसका ना तो पता चलता है और ना ही इलाज कराया जाता है. उन्होंने कहा कि इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं, उससे पुरुषों में इनफर्टिलिटी की समस्या से किस तरह निपटना है, इसके बारे में पता लगेगा.

स्टडी के बारे में डॉ अडिगा ने कहा, “हमारे ऑब्जर्वेशन से पता चला है कि इजैक्‍युलेशन लेंथ स्पर्म की फर्टिलिटी क्षमता को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. एक सफल प्रेग्नेंसी के लिए सीमन में मौजूद स्पर्म काउंट काफी नहीं होता. ऐसा इसलिए क्योंकि एक बार जब सीमन वजाइना में जाता है, तो स्पर्म को एग की ओर तैरना पड़ता है जिसके लिए स्पर्म की गतिशीलता, संरचना और डीएनए की गुणवत्ता भी काफी जरूरी होती है.

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