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ब्रह्मांड में खत्‍म होते हुए तारे भी कर सकते हैं नए ग्रह का निर्माण, खगोलविदों की इस रिपोर्ट में खुलासा

वाशिंगटन। ब्रह्मांड (universe) में जब तारे अपनी मृत्यु (death) के करीब होते हैं तो उनमें एक नए ग्रह (new planets) को जन्म देने की संभावना होती है। वह अपने चारों ओर मरने वाले तारों से बचे हुए पदार्थों की एक डिस्क (धूल व गैस) की मदद से एक ग्रह की उत्पत्ति (the origin of the planet) कर सकते हैं। एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पत्रिका (Astronomy and Astrophysics Magazine) में प्रकाशित अध्ययन में खगोलविदों (astronomers) ने दावा किया कि धूल और गैस से बनी प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क (protoplanetary disk) के लिए जरूरी नहीं है कि वह नवजात तारों के आसपास ही बनें।
तारों की निर्माण प्रक्रिया से स्वतंत्र रूप से भी विकसित हो सकती हैं। इस तरह के निर्माण का उदाहरण द्विज तारों के आसपास देखने को मिल सकता है। द्विज तारों (बाइनरी स्टार्स) दो तारों का जोड़ा होता है जो एक दूसरे का चक्कर लगाते हुए द्विज तंत्र बनाते हैं। सामान्य तौर पर जब सूर्य जैसे मध्यम आकार का तारा अपने अंत समय के पास पहुंचता है तो उसके वायुमंडल का बाहरी हिस्सा अंतरिक्ष में बिखर जाता है। इसके बाद वह धीरे-धीरे मरने लगता है इस अवस्था में उसे सफेद बौना कहते हैं। लेकिन द्विज तारों में दूसरे तारे के गुरुत्व खिंचाव के कारण मरते हुए तारे का पदार्थ एक सपाट घूमती डिस्क का रूप ले लेता है।



केयू ल्यूवेन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनॉमी के प्रमुख प्रोफेसर हैंस वान विंकेल के अनुसार, यह अध्ययन बेहद महत्वपूर्ण है। यदि इससे इस बात की पुष्टि होती है कि द्विज तारों नहीं, एक तारे के मरने के दौरान ही उसमें नए ग्रह को पैदा करने की संभावना होती है तो ग्रह निर्माण के सिद्धांतों में बदलाव लाने की जरूरत पड़ेगी। खगोलविद जैक्स क्लुस्का के मुताबिक, हमारा अध्ययन बताता है कि ऐसा सभी द्विज तारों के साथ नहीं होता है। ऐसा होने की संभावना 10 प्रतिशत होती है। यानी 10 में से एक द्विज तारों के तंत्र में ऐसा देखने को मिलता है। हालांकि, अभी इस दिशा में पुष्टि के लिए और अध्ययन की जरूरत है।
तारे और ‘ब्राउन ड्वार्फ’ (भूरा बौना व अति सूक्ष्म तारे) तब बनते हैं जब अंतरिक्ष में धूल और गैस का एक क्षेत्र अपने आप गिरने लगता है। यह क्षेत्र सघन हो जाता है, इसलिए गुरुत्वाकर्षण की एक प्रक्रिया में अधिक से अधिक सामग्री उस पर गिरती रहती है। गैस का यह गोला परमाणु संलयन शुरू करने के लिए गर्म होता जाता है। लेकिन शुरुआत में इनका आकार ज्यादा विशाल नहीं होता। यह भी संभव है कि ऐसा ग्रह किसी तारे के चारों ओर कक्षा में जीवन शुरू कर सकता है, लेकिन किसी बिंदु पर अंतरतारकीय (इंटरस्टेलर मीडियम) से बाहर हो जाता है।
हमारे सौरमंडल में पृथ्वी समेत सभी अन्य ग्रह सूर्य निर्माण के कुछ समय बाद ही बने थे। हमारे सूर्य के 460 करोड़ वर्ष पूर्व बनने के बाद कुछ लाख सालों में ही सूर्य के आसपास का पदार्थ प्रोटोप्लैनेट के रूप में जमा होने लगा था। उसी पदार्थ की धूल और गैस से बनी प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से ग्रहों की उत्पत्ति हुई, जिसकी वजह से सभी ग्रह एक तल में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

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