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NIV-ICMR का अध्ययन, बढ़ते तापमान में नष्ट नहीं होता वायरस

नई दिल्‍ली। कोरोना वायरस (corona virus) धीरे-धीरे पूरी दुनिया में अपने पैर पसार चुका है। इसे लेकर दुनिया भर में सरकारें अपने नागरिकों को सतर्क कर रही हैं और इस वायरस के संक्रमण से बचने के लिए जानकारी साझा कर रही हैं, लेकिन इसे लेकर अफ़वाहों का बाज़ार भी गर्म है, और इस कारण लोगों के मन में कई तरह के अभी भी सवाल हैं।

एक अध्‍यन में दावा किया गया है कि कोरोना का वायरस 50 डिग्री तक बिना किसी प्रभाव के अपना काम करता रहता है। 50 से ऊपर तापमान जाने पर यह जलना शुरू होता है और 80 डिग्री के बाद भी यह पूरी तरह नष्ट नहीं होता। 80 डिग्री की तपिश झेलने के बाद भी इसका कुछ हिस्सा सक्रिय रहता है। कोरोना वायरस पर गर्मी और बढ़ते तापमान पर पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी और आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने पहला अध्ययन किया है। 

इस अध्ययन के अनुसार 50 डिग्री पर जलने के साथ ही इसकी बाहरी संरचना में मौजूद छतरीनुमा आकार के स्पाइक प्रोटीन नष्ट होने लगते हैं और भीतरी संरचना में जगह-जगह चकत्ते के निशान रहते हैं। यह निशान बिलकुल वैसे होते हैं जैसे किसी कीड़े के काटने के बाद त्वचा पर पड़ते हैं।



विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस का 60 से 70 फीसदी भाग नष्ट होने के बाद भी 30 से 40 फीसदी हिस्सा जलने से बच जाता है। अनुमान है कि इस हिस्से को भी नष्ट करने के लिए करीब 100 डिग्री तापमान की आवश्यकता पड़ सकती है।
वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस को 2, 4,12, 36, 45, 50, 65 और 80 डिग्री तापमान पर रखते हुए अध्ययन किया गया। 50 डिग्री से कम तापमान पर वायरस के साइटोपैथिक प्रभाव में कोई बदलाव नहीं हुआ। वहीं 50 डिग्री या उससे अधिक तापमान जाने पर सबसे पहले बाहरी संरचना नष्ट होने लगी। जैसे जैसे तापमान बढ़ता चला गया, वायरस की भीतरी सरंचना को नुकसान होता गया। 80 डिग्री तापमान पर जब वायरस का अधिकांश हिस्सा जल चुका था, लेकिन कुछ हिस्सा फिर भी बाकी था।

कोरोना महामारी की शुरुआत में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे का कहना था कि धूप (सूर्य की रोशनी) में कोरोना वायरस नष्ट हो जाता है। इसलिए उन्होंने लोगों को यहां तक सलाह दी कि वायरस से बचने के लिए धूप लें। अभी तक तापमान को लेकर वायरस की प्रतिक्रिया पर कोई अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन यह देखने को जरूर मिला है कि 25 से 35 डिग्री तापमान पर वायरस अचानक बढ़ने लगता है और तेजी से नए मामले भी सामने आने लगते हैं। पिछले और इस साल मार्च माह में यही स्थिति देखने को मिली थी, क्योंकि उस दौरान पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान 20 डिग्री से कम था और वहां नए मामले भी नहीं थे।

एनआईवी के वैज्ञानिकों के अनुसार जब तापमान को लेकर देश के विभिन्न इलाकों को देखा गया तो पता चला कि अब तक 50 डिग्री या उससे ऊपर कुछ ही इलाकों में पारा पहुंचा है। ज्यादातर जगहों पर तापमान 50 से नीचे ही रहता है। ऐसे में इस तापमान में वायरस पर कोई असर नहीं पड़ता। पिछले साल की बात करें तो राजस्थान के चुरू इलाके में 50 डिग्री तापमान दर्ज किया गया था। चूंकि इंसान इतना तापमान सहन नहीं कर सकते। इसलिए मौसम के साथ वायरस के नष्ट होने की परिकल्पना नहीं की जा सकती।

पिछले साल कोरोना को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि सर्दियों में शायद इसके प्रसार में तेजी आए क्योंकि यह भी इन्फ्लूएंजा के समान कार्य कर रहा है। इन्फ्लूएंजा वायरस को प्रसारित होने में सर्द मौसम काफी सहायक होता है। जबकि इससे पहले गर्मी और बरसात को लेकर भी कयास लगाए गए थे। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने पहली लहर निकलने के बाद अक्तूबर माह से ही सर्दियों का हवाला देते हुए बयान दिए थे लेकिन अब वैज्ञानिक तौर पर यह साबित हो चुका है कि सर्दी, गर्मी और बरसात में कोरोना वायरस एक जैसा ही प्रभाव देगा क्योंकि 2 से 45 डिग्री तापमान पर वायरस में कोई बदलाव नहीं हुआ।

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