मध्‍यप्रदेश

सुप्रीम कोर्ट ने MP सरकार से मांगा 7 दिन में जवाब, जानिए किस मामले में घिरी शिवराज सरकार

भोपाल: सड़क की लागत से कई गुना टोल वसूली (Toll Collection) पर मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में घिर गई है. देश की सुप्रीम अदालत ने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) सरकार से जवाब मांगा है. कहा जा रहा है कि यदि राज्य सरकार (state government) तय समय सीमा में जवाब नहीं देती है तो सुप्रीम कोर्ट एकतरफा सुनवाई शुरू कर देगा. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल स्पेशल पिटीशन में कहा गया है कि राज्य में लेवड़-नयागांव, जावरा-नयागांव और भोपाल-देवास फोरलेन पर लागत से कई गुना ज्यादा टोल वसूली हो चुकी है.

पूर्व विधायक पारस सकलेचा की इस एसएलपी पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सात दिन में जवाब देने के निर्देश दिए हैं. पिटीशन में बताया गया है कि जावरा-नयागांव फोरलेन पर 2020 तक 1461 करोड़ रुपए की टोल वसूली हो चुकी है,जबकि इस मार्ग की लागत सिर्फ 471 करोड़ रुपए थी. इसी प्रकार भोपाल-देवास फोरलेन पर लागत से तीन गुना 1132 करोड़ रुपए की वसूली हो चुकी है. लेवड़-जावरा रोड पर 1325 करोड़ रुपए टोल वसूला जा चुका हैं,जबकि इसकी लागत 605 करोड़ रुपये थी.


याचिकाकर्ता के अनुसार इन सड़कों पर अनुबंध के अनुसार 2033 तक टोल वसूली की जानी है. इससे निवेशक को लागत से कई गुना ज्यादा फायदा मिलेगा. पब्लिक पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ आएगा. याचिका में कहा गया है कि इंडियन टोल एक्ट 1851 के सेक्शन 8 के तहत टोल राज्य का रेवेन्यू है. सड़क प्राकृतिक संसाधन है, जो जनता की संपत्ति है इसलिए सरकार सड़क पर मनचाहा टोल नहीं वसूल सकती. अभी सड़कों पर लागत से ज्यादा टोल वसूली हो रही है जो गैरकानूनी है.

दरअसल,चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने 24 नवंबर 2022 को सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत के तर्क सुनने के बाद राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव और एमपी सड़क विकास निगम के एमडी को नोटिस जारी किया था. इस मामले में 1 जनवरी और 23 मार्च की सुनवाई के दौरान भी सरकार की ओर से कोई जवाब पेश नहीं किया गया.

अब 24 अप्रैल को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 7 दिन में जवाब मांगा है. इस मामले में राज्य सरकार के वकील एडिशनल एडवोकेट जनरल सौरभ मिश्रा के मुताबिक टोल मामले में नोटिस मिला है. जवाब तैयार कर समय सीमा में पेश कर दिया जाएगा. हालांकि, लागत से ज्यादा टोल वसूली के मामले को हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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