भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

सूरमा के बतोले : आरिफ मिर्जा

खींचो न कमानो को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो अख़बार मिकालो

उन्नीस वीं सदी में जब मुल्क में अंग्रेज़ो की हुकूमत अपने उरूज पे थी अकबर इलाहाबादी का ये शेर धूम मचा रहा था। अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ उनका ये कलाम अखबारों की ताक़त को उकेरता था। ये साल उर्दू सहाफत के 200 साल का जश्न भी मना रहा है। उर्दू सहाफत, उर्दू अखबार और रिसालों का मुल्क की आज़ादी की लड़ाई मे बड़ा अहम रोल रहा है। हालांकि उर्दू, फारसी और हिंदी शुरू से ही मुल्क के आमफहम की ज़बान रही है लेकिन अंग्रेजों में फूट डालो और राज करो कि नीति के तहत इस भाषा को हिन्दू और मुस्लिम में बांट दिया। गर उर्दू सिर्फ मुसलमानों की ज़ुबान होती तो इस ज़ुबान का पहला अख़बार ‘जामे जहांनुमा’ 27 मार्च 1822 को कलकत्ते से लाला हर हरिदत्त न निकालते।



उस अखबार के एडिटर सदा सुखलाल हुआ करते थे। उर्दू सहाफत के दो सदी के सफर पे भोपाल से शाया होने वाले रिसाले राग भोपाली ने स्पेशल नम्बर निकाला है। इस विशेषांक का इजरा आज इक़बाल लायब्रेरी हाल में रखा गया। राग भोपाली के चीफ एडिटर शैलेन्द्र शैली ने बड़ी मेहनत से इस दस्तावेज़ को तैयार किया है। इसमे भोपाल से शाया होने वाले उर्दू अखाबरों का भी जि़कर है। उर्दू सहाफत पे राग भोपाली का ये अंक सहेजने लायक़ है। इसमें उर्दू और महिला पत्रकार, भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में उर्दू का योगदान, उर्दू सहाफत के इतिहास जैसे मौज़ू पे फरहत रिज़वी, इक़बाल मसूद, डॉ. मेहताब आलम, बद्र वास्ती, जावेद आलम, मो. नोमान खां, मुनव्वर अहमद और अलीम बज़मी के अहम मज़मून शामिल किए गए है। शैलेन्द्र शैली ने कहा की फासीवादी ताकतों की चपेट में आये गोदी मीडिया ने कमिटेड सहाफत को बहुत नुकसान पहुंचाया है। आज का कारपोरेट उर्दू सहाफत को मुख्यधारा का मीडया ही नहीं मानता। इस मौके पे उर्दू को खत्म करने की साजिशों पर भी वक्ताओं ने विचार रखे।

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