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राष्ट्रवाद की चेतना भरने वाले दिनकर राष्ट्रकवि ही नहीं तेज-पुंज कुंभ थे

– सुरेन्द्र किशोरी 24 अप्रैल 1974 की वह मनहूस शाम न केवल गंगा की गोद में उत्पन्न दिनकर के अस्ताचल जाने की शाम थी, बल्कि हिंदी साहित्य के लिए भी मनहूस साबित हुई। उस रात भारतीय साहित्य के सूर्य राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर सदा के लिए इस नश्वर शरीर को त्याग कर स्वर्ग लोक की […]

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संस्कृति के चार अध्यायः दिनकर की सांस्कृतिक चेतना का महाकाव्य

– सुरेंद्र कुमार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को उनके जन्मदिवस (23 सितम्बर) पर याद किया जा रहा है। दिनकर को याद करना न सिर्फ समाज और राजनीति को नई दिशा देने के लिहाज से महत्वपूर्ण हो सकता है, बल्कि लेखकों को भी उनके दायित्व बोध का अहसास कराने में अहम साबित हो सकता है। दिनकर […]

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जीवन भर गांधी और मार्क्स के बीच झटका खाते रहे दिनकर

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के चिंतक और मुक्ति के लोक नायक की जयंती पर ‘कलम आज उनकी जय बोल’ (राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती 23 सितम्बर पर विशेष) 26 जनवरी 1950 को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत गणतंत्र की स्थापना कर रहा था, तो उस समय लाल किले की प्राचीर से साधारण धोती-कुर्ता पहने […]