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1 अप्रैल विशेष: बरकरार है मूर्ख दिवस की प्रासंगिकता

– योगेश कुमार गोयल विश्वभर के लगभग सभी देशों में पहली अप्रैल का दिन ‘फूल्स डे’ अर्थात् ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में ही मनाया जाता है। कोई छोटा हो या बड़ा, इस दिन हर किसी को जैसे हंसी-ठिठोली करने का बहाना मिल ही जाता है और हर कोई किसी न किसी को मूर्ख बनाने की […]

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विजय दशमी की प्रासंगिकता

– गिरीश जोशी क्या हमारे पूर्वजों ने विजय दशमी उत्सव को शस्त्र और शास्त्र का पूजन करने भगवान राम की विजय का स्मरण कर रावण के पुतले का दहन करने की परंपरा का पालन करने के लिए हमारी जीवन पद्धति में शामिल किया था या इस उत्सव के कुछ ओर निहितार्थ रहे हैं। आज इस […]

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खेल दिवस की प्रासंगिकता और युवाओं की उम्मीदें

– रमेश ठाकुर जिदंगी खेल है। खेल ही जिंदगी। बेशक दोनों के मायने अलग हैं। मगर वास्तविकता आपस में कहीं न कहीं मेल खाती है। ‘खेलकूद’ के महत्व को दर्शाता है राष्ट्रीय खेल दिवस। शायद ये बात सभी जानते भी होंगे। ‘हिट इंडिया, तो फिट इंडिया’ का जबसे नारा बुलंद हुआ है, तब से इस […]

ज़रा हटके ब्‍लॉगर

“भगवान बुद्ध के चिंतन की प्रासंगिकता”

-डॉ अशोक कुमार भार्गव, आईएएस भगवान बुद्ध भारत की सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर है। उनका समग्र जीवन दर्शन मानवीय कल्याण के हितार्थ ज्ञान की खोज के लिए मात्र 29 वर्ष की आयु में परम वैभव के साम्राज्य और सांसारिक सुखों के आकर्षण के परित्याग की पराकाष्ठा है। उनका जन्म 583 ईसा पूर्व नेपाल की […]

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राष्ट्रीय डाक सप्ताह विशेषः बरकरार है डाक विभाग की प्रासंगिकता

– योगेश कुमार गोयल 1874 में बर्न में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना की वर्षगांठ के रूप में प्रतिवर्ष 9 अक्तूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है और इसी के साथ हर साल भारतीय डाक विभाग द्वारा ‘राष्ट्रीय डाक सप्ताह’ की शुरुआत होती है, जो 9 से 15 अक्तूबर तक मनाया जाता है। […]

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विश्व शांति और स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता

– शिव प्रकाश हम सभी स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण 11 सितंबर 1893 के संदर्भ में उसकी ऐतिहासिकता एवं सार्वभौमिकता पर चर्चा करते हैं। हिंदू धर्म के सर्व कल्याणक, सर्व समावेशी एवं वसुधैव कुटुंबकम के अधिष्ठान को प्रकट करने वाला वह भाषण था। पराधीनता के कालखंड में स्वामी विवेकानंद के भाषण ने भारत एवं भारतीयता […]

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वर्तमान दौर में शरीया क़ानून की प्रासंगिकता?

– तनवीर जाफरी अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर गत 15 अगस्त को क्रूर तालिबानों के बलात क़ब्ज़े के बाद उनके द्वारा एक बार फिर यह घोषणा की गयी है कि अफ़ग़ानिस्तान में शरीया क़ानून लागू किया जायेगा। इस्लामी शरीयत (क़ायदे/क़ानूनों ) की नीतियों के अनुसार चलने वाली व्यवस्था को आम तौर पर शरीया या शरीया […]

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अपनी प्रासंगिकता खो रहा किसान आंदोलन

– डॉ नीलम महेंद्र आज सोशल मीडिया हर आमोखास के लिए केवल अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एकशक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं रह गया है बल्कि यह एक शक्तिशाली हथियार का रूप भी लेचुका है। देश में चलने वाला किसान आंदोलन इस बात का सशक्त प्रमाण है। दरअसल सिंघु बॉर्डरऔर गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले […]