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रेपो रेट में अब तक की सबसे बड़ी बढ़त: इस सेक्टर में बनाएं निवेश की रणनीति

मुंबई। देश में बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रेपो रेट (Repo Rate) को बढ़ाकर 5.9 प्रतिशत कर दिया, लेकिन फिर भी देश में महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तय सीमा से ज्‍यादा है। वहीं, आरबीआई (RBI) द्वारा रेपो रेट बढ़ाने से होम, पर्सनल और कार लोन जैसे लोन की ब्‍याज दरों में इजाफा होगा, जिसके चलते ईएमआई बढ़ जाएगी।

दूसरी तरफ विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार चार बार में रेपो दर में 1.90 फीसदी की बढ़त कर वैश्विक केंद्रीय बैंकों की आक्रामक मौद्रिक नीतियों का समर्थन किया है। आगे भी कुछ समय तक दरों में इसी तरह की आक्रामक नीति अपनाई जाएगी, जब तक कि महंगाई दर केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य के अंदर नहीं आ जाती है। अब तक जो घटनाएं घट चुकी हैं, वे आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर होने वाले किसी बड़े बदलाव के संकेत दे रहे हैं।

यह आश्चर्य की बात नहीं होगी कि अगर मौजूदा रिकवरी में तेजी आती है तो निफ्टी निकट भविष्य में 17,500 के आस-पास आ जाएगा। ऐसे में पोर्टफोलियो रणनीति की बात करें तो बाजार के मौजूदा उथल-पुथल के माहौल में ऑटो, बैंक, रक्षा, इंजीनियरिंग, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में निवेशकों को दांव लगाना चाहिए। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो रक्षात्मक और अर्थव्यवस्था की वृद्धि होने पर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।



पहले ही बाजार पर पड़ चुका है दरों को बढ़ाने का असर
इस बार जब आरबीआई ने रेपो दर में 0.50 फीसदी का इजाफा किया तो इसका बाजार पर सकारात्मक असर देखा गया। सेंसेक्स एक हजार अंक से ऊपर बढ़कर बंद हुआ। साथ ही रुपया भी मजबूत हुआ। दरअसल, पहले से ही अनुमान था कि आरबीआई दरों को बढ़ाएगा। साथ ही तीन बार पहले भी दरें बढ़ीं थीं, जिनका बाजार पर जो भी असर होना था वो हुआ। इसलिए इस बार बाजार ने आरबीआई के फैसले को सकारात्मक लिया और बाजार में भयंकर तेजी देखी गई।

आरबीआई का यह कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर बनी हुई है। पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि आरबीआई की अपेक्षाओं से पीछे रही है, हालांकि, क्षमताओं के बेहतर उपयोग और पूंजीगत खर्च पर सरकार जोर दे रही है। ऐसे में दूसरी छमाही यानी अक्तूबर से मार्च तक में स्थितियां सुधरने की उम्मीद है। बावजूद इसके खुदरा महंगाई आरबीआई के दायरे से ऊपर बनी हुई है, इसलिए आगे इसकी राह कैसी होगी, इस पर अभी अनिश्चितताओं के बादल हैं। निवेशकों ने सुरक्षात्मक रूख अपनाना शुरू कर दिया है। अमेरिकी डॉलर दो दशक के उच्च स्तर पर तेजी से मजबूत हुआ है। कई उभरते हुए बाजारों की मुद्राओं की साख हाल के समय निचले स्तर तक गिर गई है।

उभरते बाजार की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक विकास में काफी चुनौतियों का सामना कर रही हैं। ऐसे माहौल में निवेशकों को लंबे समय वाले डेट फंड से दूर रहना चाहिए। क्योंकि डेट फंड में उतार-चढ़ाव रह सकता है।

आरबीआई की घोषणा के बाद बैंक के जमा पर ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद है। हालांकि, लंबे समय यानी दो से तीन साल की अवधि में बेहतर रिटर्न पाने के लिए शेयर बाजार ही सही हैं। भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था का सीधा असर बाजार पर होता है। ऐसे में थोड़े समय के लिए निवेशक भले ही बैंक जमा की ओर जा सकते हैं, पर लंबे समय में उनको इक्विटी का ही रास्ता अपनाना होगा।

आरबीआई वर्तमान में प्रावधान के लिए बैंकों द्वारा अपनाए जाने वाले संभावित घाटे के नजरिए पर एक चर्चा पत्र जारी करेगा। यह एक रूढ़िवादी नजरिया प्रतीत हो रहा है। इससे बैंकों की आय का मार्ग आसान हो जाएगा। बैंकिंग प्रणाली में जून-जुलाई के दौरान 3.8 लाख करोड़ रुपये की अधिक तरलता थी। अगस्त -सितंबर में यह 2.3 लाख करोड़ रुपये तक कम हो गई। इसके लिए भी आरबीआई कोशिश कर रहा है।

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